भारत में लोकतंत्र है और लोकतंत्र में इंसान को अपनी बात कहने का अधिकार होता है। इसी अधिकार का प्रयोग करते हुए लोगों ने हमारे देश को भी भला-बुरा कहा। पिछले कुछ सालों में असहिष्णुता यानि इनटॉलेरेंस शब्द बड़े चलन में था, जिसके बोलने भर से ज़ुबान ऐंठ-सी जाती है।
पिछले दिनों मॉब लिंचिंग के ज़रिये एक लेखक की हत्या के बाद यह कह दिया गया कि भारत में असहिष्णुता बढ़ गई है। कुछ लोगों ने देश छोड़कर जाने की भी बात की, हालांकि वे अब तक खा तो यहीं का रहे हैं। एक विशेष सम्प्रदाय के लोग भारत में अपने आपको असुरक्षित महसूस करने लगे थे। उन्हें देश में डर लगने लगा था। उन्हें भारत से ज़्यादा पाकिस्तान से मोहब्बत होने लगी थी।
खैर, आजकल यह शब्द लोगों की जुबान पर कम ही आ रहे हैं। यद्यपि ऐसा कहने वाले बहुत हैं कि हिंदुस्तान सभी का देश है। सभी को धार्मिक आज़ादी मिलने के साथ-साथ उनके रीति-रिवाज़ों और त्यौहारों का भी सम्मान होना चाहिए।
हम सभी का सम्मान तो करते हैं लेकिन केवल ईद में हिन्दू ही क्यों शरीक हो, होली में मुस्लिम क्यों नहीं? इफ्तार, मंदिर में हो तो दिवाली मस्जिद में क्यों नहीं? खैर, यह धार्मिक सद्भाव की बातें पश्चिम बंगाल के संदर्भ में अपवाद यानि कि बक्से में चली जाती हैं। मैंने पढ़ा कि बंगाल में एक वीरभूम ज़िला है, जहां दुर्गा पूजा मनाने पर प्रतिबंध है क्योंकि वहां दुर्गा पूजा मनाने से एक विशेष समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत हो जाती हैं।
हिंदू बाहुल्य क्षेत्रों में रमज़ान में नमाज़ पढ़ने या ईद मनाने के लिए बैन करते हुए मैंने कभी नहीं सुना क्योंकि हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं होती ही नहीं हैं। पश्चिम बंगाल के कुछ ज़िलों में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं। कुछ हज़ार गाँवों में तो हिन्दू हैं ही नहीं। इसपर कोई रिपोर्ट पब्लिश नहीं हो रही है।
हाल ही में बंगाल की दीदी का एक वीडियो वायरल हुआ। ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने पर ममता दीदी खुद गाड़ी से उतर कर लोगों को धमका रही हैं। मैं तो यह नहीं समझ पा रहा हूं कि इस नारे से उन्हें दिक्कत क्या है? ऐसे ही अगर किसी और धर्म के लोगों को धमकाया जाता तो अभी तक अवॉर्ड वापसी गैंग अपने-अपने तमगे वापस देने का इंतज़ार कर रहा होता।
वहीं, बंगाल में तृणमूल काँग्रेस के नेता ने कह दिया कि अगली बार से हिंदुओं को वोट नहीं देने देंगे और सभी ने बस सुन लिया। यह कोई नया मामला नहीं है, इसके पहले भी ममता बनर्जी का मीम शेयर करने के लिए प्रियंका शर्मा को जेल भेजा जा चुका है और उससे भी पहले जादवपुर यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर को ममता बनर्जी का कार्टून शेयर करने के कारण भी जेल यात्रा कराई जा चुकी है, क्योंकि ऐसा करना मुख्यमंत्री के रूप में दीदी का अपमान है।
वहीं, दूसरी तरफ जब ममता बनर्जी कहती हैं कि प्रधानमंत्री को थप्पड़ मारने का मन करता है या जब वह कहती हैं कि एक्सपायरी प्रधानमंत्री से मैं बात नहीं करती, तो ऐसे में क्या प्रधानमंत्री पद की गरिमा बढ़ जाती है?
बंगाल में लोकसभा चुनाव के दौरान कई बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या हुई, तब भी लोकतंत्र खतरे में नहीं पड़ा। तृणमूल काँग्रेस के नेता पोलिंग बूथ पर जाकर लोगों को धमका रहे हैं कि वे बीजेपी को वोट ना करें, तब भी कोई फर्क नहीं पड़ा।
यहां तक कि चुनाव परिणाम आने के बाद एक सांसद महोदय कहते हैं, “अगली बार हिंदुओं को वोट नहीं करने देंगे, तब भी नहीं।” एक युवक झूठी खबर फैलाता है कि धर्म के आधार पर उसके साथ मारपीट की गई तो मीडिया इसे सर आंखों पर बिठा लेता है। वहीं, दूसरी तरफ एक शख्स की पीट- पीटकर हत्या कर दी जाती है, तो सभी खामोश रहते हैं। क्या यह लोकतंत्र की हत्या नहीं है? क्या यह हमारे प्यारे देश के बुरे भविष्य की नींव नहीं है?