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“मुज़फ्फरपुर कैमरा माइक वाले पत्रकारों के लिए गोवा बन गया है, जहां TRP की पार्टी है”

muzaffarpur child death

कल व्हाट्सऐप पर कहीं से एक वीडियो घूमते-घूमते पहुंचा, आज तक चैनल का एक क्लिप था, जिसमें पत्रकार अंजना ओम कश्यप मुज़फ्फरपुर के एसकेएमसीएच के ICU में इंसेफेलाइटिस का इलाज कर रहे एक डॉक्टर पर बिगड़ पड़ी थी। “इतने मरीज़ हैं, बेड कहां से लाएंगे, इलाज कैसे करेंगे, अस्पताल मौत के लिए ज़िम्मेदार है” और ढेर सारी बातें।

वैसे ही ठीक दो दिन पहले TV9 भारतवर्ष चैनल के एक रिपोर्टर भाजपा के एक नेता जी का ICU में जूता उतरवाते हुए पाए गए, बहुत वाह-वाही हुई, पत्रकार हो तो ऐसा हो (रिपोर्टर ने पत्रकारिता के जुनून में आकर अपना जूता उतारना मुनासिब नहीं समझा था)।

फोटो सोर्स- सोशल मीडिया

खैर, पत्रकारों की भी अपनी प्राथमिकताएं हैं, जैसे कि आज तक वाली राष्ट्रवादी मोहतरमा, जहां देश की समस्याओं के हल लिए ज़िम्मेदार आधिकारिक व्यक्ति से उनके प्रिय भोजन और प्रिय वेश-भूषा के बारे में सवाल पूछना उचित समझती हैं और दिन रात अपने कार्य में लगे डॉक्टर को बिना इजाज़त ICU में घूसकर उसके कार्य को बाधित करती हैं। यह मोहतरमा सरकार से सवाल पूछना बिल्कुल उचित नहीं समझती क्योंकि सरकार तो बस यह बताने के लिए है कि आम चूसकर खाते हैं कि काटकर। वहीं रविश कुमार जैसे कुछ पत्रकार और एक्टिविस्ट कॉम्प्लेक्स में आकर सिस्टम की कमियों पर बात करते हैं।

दरअसल, बात यह है कि मुज़फ्फरपुर कैमरा और माइक वाले पत्रकारों के लिए गोवा बन गया है। टीआरपी है, पार्टी है, दारू-शराब नहीं है लेकिन नशा भरपूर है।

नेताओं को भी फर्क कहां पड़ता है

अब बात बिहार के नेताओं की, मुज़फ्फरपुर से पटना की दूरी मेरे अनुभव से ज़्यादा-से-ज़्यादा 3-4 घंटे की है लेकिन मुख्यमंत्री जी को आने में हफ्ता लग जाते हैं। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री के लिए वर्ल्डकप का स्कोर ज़्यादा महत्वपूर्ण है। देश के गृहमंत्री क्रिकेट में सर्जिकल स्ट्राइक का मज़ा ले रहे हैं। प्रधानमंत्री योगा का टिप्स दे रहे हैं। संसद में जय श्री राम और अल्लाह-हु-अकबर के नारे लग रहे हैं। एकदम रामराज्य जैसा माहौल है देश में। कोई ज़िम्मेदार नहीं है लेकिन प्रसन्न सभी हैं। पिछले 15 साल से लगातार श्रीमान नीतीश कुमार की सरकार है और सालों से एक ही ज़िला में एक ही बीमारी और सैकड़ों मौतों का गवाह पूरा देश है।

विपक्ष, यह एक ऐसा संगठन या गिरोह है (मैं आपके ऊपर छोड़ता हूं आप जो समझें), जो बस चुनाव के समय भाषण देने आता है। बिहार के नेता प्रतिपक्ष, तेजस्वी यादव लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद से गायब हो गए हैं, अब उन्हें बिहार की जनता की परेशानियों की बिल्कुल परवाह नहीं है। इनका मुंह तभी खुलता है, जब नीतीश कुमार से चाचा-मामा का रिश्ता बैठाना होता है।

तेज प्रताप यादव राज्य के पूर्व स्वाथ्य मंत्री भी गायब हैं। जब मौतों की खबर टीवी चैनलों पर लगातार चलने लगती हैं, तो पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी का राजनीति से भरा हुआ एक ट्वीट आता है। राहुल गांधी और मुख्य विपक्षी पार्टी कॉंग्रेस को भी मासूमों की मौतों से कुछ लेना-देना नहीं है, वह भी बस अपना उल्लू सीधा करने में व्यस्त हैं। हां, जब चुनाव आएगा तो सबको वहीं बिहार, वहीं मुज़फ्फरपुर, वहीं जनता याद आएगी और वोट के भिखारी बनकर पहुंच जाएंगे लेकिन फिर भी मौतों के लिए ना सरकार ज़िम्मेदार है ना विपक्ष।

इस पूरी कहानी पर ‘मालिकज़ादा मंजूर अहमद’ की लिखी हुई यह पंक्तियां खूब सटीक बैठती हैं।

देखोगे तो हर मोड़ पर मिल जाएंगी लाशें

लेकिन ढूंढोगे तो कातिल ना मिलेगा।

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