उठ जाग ऐ मस्ज़िद भोर भई,
तेरे दर पे मंदिर आये हैं,
ईसाईयों की सांठ-गांठ,
हरमंदिर के बाशिंदे आए हैं।
ईद के मुबारक मौके पर,
स्वादिष्ट व्यंजन लाए हैं,
रस से तर जलेबियाँ,
सेवइयों का समागम लाये हैं।
जब बस्ते थे हम पास अटल,
उस पल के तराने लाये हैं,
हो इक बार फिर वो आमीन मंज़र,
इस उम्मीद की हिमाकत लाये हैं।
मीठे-मीठे भजनों की बोली,
सूफी तरानों की महफिल लाये हैं,
उस चाँद के पावन दर्शन पर,
हम तेरे संग झूमने आये हैं।
उठ जाग ऐ मस्ज़िद भोर भई,
तेरे दर पे मंदिर आये हैं,
ईसाईयों की सांठ-गांठ,
हरमंदिर के बाशिंदे आये हैं।