23 साल के जीवन में ज़्यादा कुछ तो नहीं देखा मगर यह तो देखा ही है कि इससे पहले भी कई पार्टियां जीतती रही हैं और जीतकर सरकारें बनाती रही हैं। इन सबके बीच ऐसा पहली बार देख रहा हूं कि किसी पार्टी की जीत के आंकड़ों के आधार पर उसके खिलाफ उठ रही आवाज़ों को दबाया जा रहा है।
ऐसा करने वाले लोग दो तरह के हैं। पहले तो वे जो खुलेआम सोशल मीडिया पर गाली और जान से मारने की धमकी देकर आलोचना करने वालों का मुंह बंद करना चाहते हैं। दूसरे वे हैं जो शालीनता का नकाब ओढ़े हुए हैं। यह दूसरी प्रजाति ज़्यादा खतरनाक है। एक विशेष समुदाय के लिए दिल में भरी हुई नफरत और एक विशेष व्यक्ति के लिए दिल में बढ़ रही भक्ति को दबाते हुए दबी ज़ुबान में कहते हैं, “जनता के फैसले का सम्मान करना चाहिए, जनता ने उन्हें चुना है तो अब उनके बारे में कुछ भी कहना लोकतंत्र का अपमान है।”
मतलब अब भाजपा ही लोकतंत्र है, हिंदुत्व ही एक विचारधारा है और मोदी जी का मतलब तो देश है ही। साहब, आप पूरी 542 सीटों पर भी अपने सांसद बैठा लेंगे तो आपके आका की आलोचना खत्म नहीं होगी। 99 प्रतिशत वोट भी उन्हें मिले तो 1 प्रतिशत को उनकी आलोचना का अधिकार होगा। आप फेसबुक और ट्विटर पर ट्रोल की सेना छोड़िए, धर्म के नाम पर लोगों को भड़काइए या हर घर के बाहर अपना एक गुंडा खड़ा कर दीजिए। कहीं ना कहीं से एक आवाज़ निकलेगी जो आपको सुननी पड़ेगी क्योंकि यह लोकतंत्र है और यही इसकी खूबसूरती है।
भीड़ के फैसले को अंतिम फैसला मान लेना लोकतंत्र नहीं है
भीड़ के फैसले को एकमात्र और अंतिम फैसला मान लेना लोकतंत्र नहीं है, बल्कि भीड़ की आवाज़ों के बीच आलोचना की एक धीमी आवाज़ की कद्र करना, उसको सुनना लोकतंत्र है। दरअसल, तानाशाही के स्कूल में आपके साहब थोड़े नए हैं। इस देश ने ऐसे प्रधानमंत्री रूपी तानाशाह देखे हैं जिन्होंने पूरे विपक्ष को ही सलाखों के पीछे डाल दिया था।
उन्होंने तो अखबारों की बिजली कटवा दी थी। अपने खिलाफ बनने वाली फिल्मों पर रोक लगवा दी थी। इतना सब होने के बाद भी आवाज़ें उठीं और उस सत्ता का अंत हुआ। मैं नहीं कहता कि आपकी सत्ता का भी अंत हो क्योंकि मेरे एक वोट से यह संभव नहीं है। जनता ने आपको वोट दिया है और सरकार चलाने का अधिकार संविधान ने दिया है। बस आलोचनाओं को सुनने की आपको डालनी होगी क्योंकि आप जितनी ज़्यादा मज़बूती से सत्ता में आएंगे, आलोचनाएं उतनी तीखी होती जाएंगी।
इस बार आप 303 सीटें जीते हैं, बेहतर काम करिए और इन जीती हुई सीटों को बढ़ाइए। विपक्ष की टेंशन मत लीजिए, वे तो काफी पहले खत्म हो चुका है, चुनाव के वक्त कहीं से लौट आएगा। विपक्ष संसद में नहीं होगा तो जंतर-मंतर में होगा, वहां भी नहीं होगा तो इस आभासी दुनिया में तो होगा ही जहां आप यह पढ़ रहे हैं।