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जून के महीने में उड़ीसा में मनाया जाता है पीरियड्स का उत्सव

पीरियड्स यह शब्द सुनकर आपके मन में पहला विचार क्या आया? यही ना कि लड़कियां इस समय अपवित्र हो जाती हैं, घर के लोगों के साथ बैठकर खाना नहीं खा सकती हैं। मंदिर और भगवान से जुड़े हुए काम का तो आप पूछो ही मत, अगर तुलसी के पास गईं, तो वह मुरझा जाएंगी, अचार खराब हो जाएगा ब्ला ब्ला।

ये सब विचार उसी गंदे रक्त की भांति हैं, जो इस समय उस लड़की को केवल शारीरिक ही नहीं मानसिक दर्द भी देता है। आप में से कितने को (जो लड़कियों के दाग को देखकर उनका मज़ाक उड़ाते होंगे) यह पता है कि उनके रेगुलर पीरियड्स उनके अच्छे स्वास्थ्य को इंगित कर रहे हैं।

उड़ीसा में मनता है पीरियड्स का उत्सव

फोटो सोर्स- Youtube

जहां एक ओर पीरियड्स को एक वर्जित शब्द की भांति प्रयुक्त किया जाता है, वहीं दूसरी ओर इसे एक उत्सव की भांति मनाया जाता है। उड़ीसा में राजा-प्रभा के नाम से प्रचलित यह उत्सव लड़कियों के पहली बार पीरियड्स होने पर हर साल जून में मनाया जाता है। चार दिन का यह उत्सव, जिसमें पहला दिन पहिली राजा, दूसरा दिन मिथुना संक्रांति और तीसरा दिन भू दाहा या बासी रजा होता है।

चौथे दिन तक लड़कियां खाना बनाने और क्रीड़ा जैसी गतिविधियों से परहेज करती हैं और चौथे दिन जिसे वसुमती स्नाना कहा जाता है, एक औपचारिक स्नान होता है। इस पर्व में महिलाओं के अलावा पुरुष भी भाग लेते हैं।

यह कैसी विडंबना है, जहां एक और ऐसे उत्सव मनाना लड़कियों को पीरियड्स को आसानी से अपनाने के लिए प्रेरित करता है और आत्मविश्वास जगाता है कि यह कोई बुरी चीज़ नहीं है, वहीं दूसरी और ऐसी विकृत मानसिकता और भ्रांतियों से लड़कियों के मनोबल को इतना गिरा दिया जाता है कि विकसित होने की उम्र में अपने अंदर ऐसे परिवर्तन को अपनाने और इन सबके बारे में खुलकर बात करने में उन्हें झिझक महसूस होती है।

उड़ीसा का यह उत्सव ऐसी मानसिक रूप से विकृत लोगों के लिए एक तमाचा है, जो सिखाता है कि लड़कियों में पीरियड्स अपनाने योग्य है।

जब एक टीन-ऐज लड़की को ज़रूरत है कि वह अपने इन बदलावों के बारे में सबसे अपने विचारों को साझा करे, उसे तब ही इन सबको छुपाने को कहा जाता है। सबसे अहम बात तो यह है कि यह जानते हुए भी कि हम सबका अस्तित्व इसी की वजह से है, इसे छुपाकर रखा जाता है।

28 मई मेंस्ट्रुल हाइजीन डे के रूप में मनाया गया, जो ऐसे सभी लड़खड़ाते, गंदे विचारों को तोड़ने के लिए बहुत ज़रूरी है। इस बदलते दौर में अगर आप और हम ऐसे ही इन तथाकथित वर्जित शब्दों के बारे में बात करते रहें, तो जल्द ही हमारा समाज पीरियड्स के नाम से घबराएगा नहीं, अपना मुंह नहीं छिपायेगा।

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