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“मेरे एक मुस्लिम मित्र ने बताया कि क्यों उसने मोदी को वोट दिया”

मेरा एक मित्र है सलीम। गाँव में रहकर पढ़ाई-लिखाई करता है। इस लोकसभा चुनाव के नतीजों से सलीम बहुत खुश था। मुझे फोन कर बताया कि वह दिल से चाहता था नरेंद्र मोदी चुनाव जीतकर सत्ता में वापसी करें। इसलिए उसने मोदी को ही वोट दिया। यह बात सुनकर आपकी ही तरह मैं भी हैरान था। झट्ट से पूछा कि ऐसा क्या दिखा उसे मोदी में और उसकी यह खुशी ‘मोदी’ की जीत के लिए है या ‘बीजेपी’ की?

सलीम ने बताया कि उसके घर में अब धुंआ नहीं होता क्योंकि अम्मी गैस पर खाना बनाती है। अब उसकी अम्मी और बहनों को शौच के लिए खोतों में नहीं जाना पड़ता। मोदी ने उसके घरवालों के इलाज के लिए पांच लाख रुपये देने का वादा किया है।

क्या मोदी ने मुसलमानों के सामने बीजेपी का मतलब बदल डाला?

मुसलमान वोटर्स भारतीय जनता पार्टी को ‘अनटचेबल’ की श्रेणी में रखते आए हैं। उनका वोट किसी एक पार्टी को सत्ता में लाने के लिए नहीं, बल्कि बीजेपी का वोट काटने या उसे सत्ता से हटाने के लिए इस्तेमाल किया गया। मुसलमानों के दो प्रख्यात चेहरे ओवैसी और आज़म खान ने हर मौके पर उन्हें ध्रुवीकरण का पीड़ित बनाया।

मुस्लिम वोटरों ने इन नेताओं का सगा धर्म देखकर इनकी बातों पर विश्वास करते हुए खुद को विकास से कोसों दूर कर लिया। वे भूल गए कि राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता है। मुसलमानों के ध्रुवीकरण ने हिंदू वोटरों को भी एक सहमत विचारधारा के गुच्छे में बांध दिया, जिसका सीधा फायदा बीजेपी और अन्य छोटी दक्षिणपंथी पार्टियों को मिलता आया है।

नरेन्द्र मोदी। फोटो साभार: Getty Images

2019 के चुनाव में इस ध्रुवीकरण की नींव कमज़ोर पड़ती दिखी। इस चुनाव में नरेंद्र मोदी का कद बीजेपी और दक्षिणपंथी विचारधारा से उपर था। उनकी एक अपनी विचारधारा, जिसे हम ‘मोदी विचारधारा’ कह सकते हैं, खड़ी हो गई। इस मोदी विचारधारा ने मुसलमानों को अपनी ओर आकर्षित किया और बीजेपी की दक्षिणपंथी विचारधारा रूपी गंगा को भगवान शंकर की तरह खुद में समाहित कर लिया। मुसलमानों ने मोदी को एक मसीहा के तौर पर देखा जो किसी एक पार्टी में नहीं बंधा है।

मोदी विचारधारा अटल जी की विचारधारा की एक किताब मात्र है, जिसपर भगवा रंग का कवर लगा है। अटल जी सार्वजनिक तौर पर खुद को धर्मनिरपेक्ष मानते थे। मोदी की धर्मनिरपेक्षता सबके सामने आती है मगर बीजेपी का बुर्का पहनकर वह सार्वजनिक तौर पर खुद को धर्मनिरपेक्ष कभी नहीं मानेंगे। ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ जैसे बयान उनकी निरपेक्षता की वकालत परदे के पिछे से झांक कर करते हैं।

मोदी को अफगानिस्तान, सउदी अरब और मालदीव जैसे मुस्लिम देशों में सर्वोच्च सम्मान से नवाज़ा गया है। उन्होंने भारत में सौ नए मदरसे बनाने का ऐलान किया है। सौभाग्य योजना, जन आरोग्य याजना और किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं ने मुसलमानों को मोदी का सॉफ्ट कॉर्नर दिखाया।

इन योजनाओं का लाभ उन घरों को भी मिला जहां मूर्ति के सामने हाथ जोड़े जाते हैं और वहां भी जहां अल्लाह की इबादत में सिर झुकता है। जब कोई मुस्लिम देश मोदी को अपने सर्वोच्च सम्मान देगा तो मोदी के देश में रहने वाले मुसलमानों को मोदी पर प्यार तो आएगा ही। यही मोदी विचारधारा है।

धारा 370 और नागरिक संशोधन विधेयक का क्या?

इतनी अच्छी चीज़ों का ज़खीरा अपने संग दो-तीन बुरी चीज़ भी लाया। आज का मुसलमान देश में होने वाली हर घटनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया इस प्रकार देता है जिससे उसकी देशभक्ति एक खास गुट के सामने साबित हो जाए। हमें यह समझना होगा कि कश्मीर के मुसलमान और बाकी भारत के मुसलमान की सोच में बहुत फर्क है।

फोटो साभार: Getty Images

कश्मीर के अलगाववादी, जिन्ना की तस्वीर वाले कागज़ पर पाले गए असमाजिक तत्व हैं। इन मुसलमानों के साथ मोदी सरकार क्या कदम उठाए, देश के बाकी मुसलमानों पर इसका बिरले ही कोई फर्क पड़ेगा। दूसरा, नागरिक संशोधन विधेयक गैर-संवैधानिक तरीके से भारत में प्रवेश किए बांग्लादेशी मुसलमानों को बाहर निकालने के लिए है। इस विधेयक से भी देश के मुसलमानों को फर्क नहीं पड़ने वाला है। अब वे इस बात को फेसबुक पर लिखकर बताएंगे तभी उन्हें देशभक्त का टैग मिलेगा, यह गलत है।

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