Site icon Youth Ki Awaaz

एक देश एक चुनाव के लिए करने होंगे ये बदलाव और सुधार

एक देश एक चुनाव पर 19 जून को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा एक सर्वदलीय बैठक बुलाई गई और इस पर एक आम राय बनाने की कोशिश की गई। देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग-अलग होने के कारण भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी वित्तीय बोझ पड़ता है।
वहीं आचार संहिता के कारण केंद्र सरकार को कई नीतिगत कदम उठाने में अनावश्यक देरी का सामना करना पड़ता है। इन वजहों से यह मामला जोड़ पकड़ने लगा है कि एक देश एक चुनाव को लागू किया जाए। उपरोक्त पक्षों के अलावा कई ऐसे मुद्दे हैं जिनकी चर्चा आवश्यक है।

चुनावी खर्च का निर्धारण करने में होगी कठिनाई।

2014 में लोकसभा चुनाव में खर्च की सीमा 40 लाख से बढ़ाकर 70 लाख कर दी गई थी, जबकि विधानसभा में इसे 16 लाख से बढ़ाकर 28 लाख कर दिया गया। ऐसे में एक साथ चुनाव होने पर चुनावी खर्च का निर्धारण करने में कठिनाई होगी, वहीं स्थानीय राजनीतिक पार्टियों को राष्ट्रीय पार्टियों के समक्ष चुनाव लड़ने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

ग्रामीण और अशिक्षित लोगों के बीच चुनावों को लेकर कई अहम जानकारी की कमी होती है, जिसके कारण चुनाव के दौरान उनके सामने उम्मीदवारों के चयन, चुनावी घोषणा और चुनाव चिन्ह को लेकर असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

सुरक्षा इंतज़ामों का मसला।

चुनाव में सुरक्षा इंतज़ामों का पक्ष अहम होता है और विधानसभा में प्रति बूथ पर प्राप्त वोट का महत्व लोकसभा चुनाव की अपेक्षा अधिक होता है। ऐसे में जीत और हार का अंतर कम होने के वक्त विवाद उत्पन्न होना एक आम बात हो गई है, जिसके दृश्य पंचायत चुनाव में आसानी से देखे जा सकते हैं। ऐसे में सभी बूथों पर अतिरिक्त सुरक्षा बल की आवश्यकता होगी।

लोकसभा चुनाव सात चरणों में संपन्न हुआ। इसे संपन्न कराने में राज्य पुलिस के साथ-साथ अर्धसैनिक बलों का अहम योगदान रहा लेकिन चुनाव के दौरान कई राज्यों द्वारा अतिरिक्त अर्धसैनिक बल की मांग की गई। केंद्र में वर्तमान सत्ताधारी पार्टी ने भी पश्चिम बंगाल में ऐसी ही मांग की थी।

हालांकि चुनाव आयोग द्वारा अर्धसैनिक बल के सभी पांच बलों को चुनाव में लगाया गया था, जिसमें केंद्रीय रिज़र्व पुलिस फोर्स के साथ-साथ सीमा सुरक्षा बल भी शामिल थी जिस पर देश की सीमा की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी है। क्या देश के पास पर्याप्त बल है ताकि देश की सुरक्षा में कोई कमी किए बिना चुनाव में पर्याप्त सुरक्षा दी जा सके?

बड़े स्तर पर चुनाव सुधारों की ज़रूरत।

मसला यह है कि चुनाव सुधार पर कई समितियों ने कई सुधारों की बात कही है, जिसमें कुछ मामलों में ही सुधार हुआ है जबकि कई मामलों में अभी भी सुधार की ज़रूरत है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कई उम्मीदवार दो सीटों से चुनाव लड़ते हैं। पार्टी के आदेश पर विजेता उम्मीदवार को अपनी सीट छोड़ने की परंपरा कोई नई नहीं है। तो क्या ऐसे मामलों में चुनाव खर्च पर रोक लगाने की आवश्यकता नहीं है?

लोकसभा चुनाव के दौरान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को लेकर कई पार्टियों द्वारा असंतोष व्यक्त किया गया। वीवीपैट की गणना संबंधित आवेदन को चुनाव आयोग ने अस्वीकार कर दिया था। ऐसे में कई राजनीतिक पार्टियों में असंतोष अभी भी बरकरार है। तो क्या सर्वप्रथम इस असंतोष को समाप्त करने की ज़रूरत नहीं है?

कई विकसित देशों ने उभरे मतभेद के कारण इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का प्रयोग करना बंद कर दिया है। वास्तविकता तो यह है कि चुनाव सुधार की ज़रूरत कई स्तरों पर है, जिसमें चुनाव में अपराध, चुनावी खर्च, पेड न्यूज़ आदि शामिल है। इन पर ठोस रणनीति और कानून का अभाव है। ऐसे में एक राष्ट्र एक चुनाव केवल एक पक्ष को आगे लेकर चल रहा है।

Exit mobile version