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महाराष्ट्र में महिलाओं के गर्भाशय निकाले जाने पर क्यों खामोश थी सरकार?

महिला किसान

महिला किसान

भारत में मरीज़ दर के हिसाब से डॉक्टरों की उपलब्धता कितनी है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। हमारे देश में 11 हज़ार लोगों के लिए एक डॉक्टर है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन के मुताबिक 1000 लोगों के लिए एक डॉक्टर अनिवार्य है। यहीं नहीं, WHO के मानकों के मुताबिक जीडीपी का कम-से-कम 6% हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च होना चाहिए।

इन सबके बीच आलम यह है कि वास्तव में 2% से भी कम पैसा स्वास्थ्य सेवाओं पर लगाया जाता है। देश की आज़ादी से लेकर अब तक गरीबी एक समस्या रही है। 1992 के बाद गरीबी कम हुई है लेकिन इस गति को अच्छा नहीं कहा जा सकता।

4500 महिलाओं के गर्भाशय निकाले गए

गरीबी और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति को समझने के बाद महाराष्ट्र के बीड ज़िले से आई खबर को समझना आसान हो जाएगा। बीड ज़िले में लगभग 4500 ओरतों के गर्भाशय को गैर-कानूनी तरीके से निकाला गया है। यह कोई 1 साल में नहीं हुआ है, बल्कि कई सालों से चल रहा है। सुदाम मुंडे केस में भी बीड राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय बना हुआ था। दोनों घटनाएं काफी निराशाजनक और नकारात्मक हैं।

बुनियादी सुविधाओं में पिछड़ा होना इसकी असली वजह है। यहां हज़ारों की संख्या में भूमिहीन मज़दूर हैं, तो वहीं 2-4 एकड़ ज़मीन वाले किसान लाखों की संख्या में हैं। किसान उस स्थिति में पर्याप्त उत्पादन नहीं ले सकता क्योंकि खेती की कमी के साथ-साथ सिंचाई की सुविधा भी बहुत कम है।

औरंगाबाद का अच्छा औद्योगिक विकास हुआ है। मराठवाड़ा के सभी लोगों को औरंगाबाद में रोज़गार नहीं दिया जा सकता। ऐसी विपरीत स्थिति में बीड ज़िले के साथ-साथ अन्य पिछड़े ज़िलों के मज़दूर और किसान, गन्ना कटाई के लिए पुणे सांगली सातारा जैसे ज़िलों में जाते हैं।

गन्ना खेतों में परिवार के साथ जाती हैं घर की महिलाएं

अपने परिवार के साथ घर की महिलाएं भी गन्ना कटाई के लिए दूसरे ज़िलों में जाती हैं। 2 महीने से लेकर 6 महीने तक शुगर फैक्ट्री के आसपास के गाँवों में काम करना होता है। पीरियड्स होने पर महिलाएं काम पर नहीं जा सकतीं क्योंकि यह काम काफी मेहनत भरा होता है।

3 से 5 दिन तक मज़दूरी नहीं मिलती है क्योंकि इस दौरान काम नहीं होता है। कई ठेकेदार काम पर ना आने से उल्टा ज़ुर्माना लगा देते हैं। छोटी-छोटी बीमारियों के लिए डॉक्टर के पास जाते हैं और डॉक्टर गर्भाशय निकालने का सुझाव देते हैं।

इस दौरान डॉक्टरों द्वारा गलत सलाह दी जाती है। जैसे- गर्भाशय निकालना बहुत ज़रूरी है अन्यथा आपको कैंसर जैसी बीमारी से गुज़रना पड़ सकता। वे औरतें सरकारी अस्पताल में जाती हैं और वहां पर ऑपरेशन नहीं किया जाता क्योंकि ज़रूरत ही नहीं होती है।

प्राइवेट अस्पतालों की मिलीभगत

इसी कड़ी में बहुत महिलाएं प्राइवेट अस्पताल का रुख करती हैं। प्राइवेट अस्पताल में ऑपरेशन का खर्च 20 हज़ार से 40 हज़ार रुपए होता है। इतना पैसा मज़दूरों के पास नहीं होता है, फिर वे ठेकेदार से अगले साल का एडवांस लेकर ऑपरेशन करवाती हैं। अगले साल फिर वे महिलाएं गन्ना कटाई के लिए जाती हैं क्योंकि पिछले साल का कर्ज़ चुकाना होता है। यह प्रक्रिया कई सालों तक चलती है। कुछ महिलाएं सिर्फ इसलिए गर्भाशय निकलवाती हैं ताकि उन्हें गन्ना कटाई में आसानी होने के साथ-साथ पैसे की भी बचत हो।

महिला किसान

ऐसा कहा जा सकता है कि प्रथम दृष्टया यह ठेकेदार और प्राइवेट डॉक्टर की मिलीभगत का नतीजा है। प्रदेश की महिला एवं बाल कल्याण मंत्री पंकजा मुंडे इसी ज़िले से आती हैं फिर भी महिलाओं की स्थिति गंभीर है। इस मुद्दे को राष्ट्रीय मीडिया में जब उठाया गया तब सरकार ने जांच करने का फैसला लिया है। आशा है जल्द से जल्द जांच पूरी हो और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।

इस समस्या का समाधान क्या हो सकता है? ऐसा नहीं है कि दूसरे ज़िलों के किसान और मज़दूर काम पर नहीं जाते हैं लेकिन उनकी संख्या काफी कम है। बीड के साथ-साथ मराठवाड़ा के अन्य पिछड़े ज़िलों में सिंचाई की सुविधा, औद्योगिक विकास और अच्छी शिक्षा व्यवस्था की ज़रूरत है। प्रदेश का विकास इस समस्या का समाधान है। मुझे उम्मीद है कि इस घटना के बाद राज्य सरकार, प्रदेश की सभी समस्याओं पर ध्यान देते हुए सराहनीय काम करेगी।

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