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अलीगढ़: “यह उग्र भीड़ केवल हिंसक होना जानती है, इन्हें मुद्दों से मतलब नहीं”

अलीगढ़ वाली घटना

अलीगढ़ वाली घटना

अलीगढ़ की घटना सुनकर और देखकर मन आहत है। क्रोधित हूं मगर कुछ लिखने की इच्छा नहीं है। कलम ठंडे खून सा जम गया है। दो दिन से सोशल मीडिया पर फैलते इस जघन्य अपराध से नज़रें फेर रहा था। परीक्षा है लेकिन पढ़ने का मन नहीं कर रहा है क्योंकि मन में उथल-पुथल है।

इन सबके बीच खुद को लिखने से रोक नहीं सका‌। यूट्यूब पर एक वीडियो देख रहा था जिसके ज़रिये यह जानकारी मिली कि बच्ची के पिताजी ने पड़ोसी से कुछ पैसे उधार लिए थे, जिसे समय पर ना चुका पाने की वजह से दरिंदों ने बच्ची की जघन्य हत्या कर बदला ले लिया।

जाने कहां खो गए बेटी बचाओ के नारे

मोदी सरकार पार्ट-2 बनने के बाद से देशभर में अभी भी जश्न का माहौल बना हुआ है। बधाइयों का ताता लगा हुआ है क्योंकि भई अब चुनाव तो हो चुका है। घड़ियाली आंसू और अच्छी लॉ एंड आर्डर व्यवस्था का ढोंग तो अगले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में वोट के खातिर करना है। ‘बेटी बचाओ’ जैसे नारे तो उस वक्त मंच की आवाज़ से बुलंद करेंगे।

उत्तर प्रदेश कैबिनेट के मंत्री मुस्कुराते हुए कह रहे हैं, “ऐसी घटना तो हो जाती है।” इनकी मुस्कुराहट बताती है कि यह कितना इस घटना और प्रदेश की कानून व्यवस्था को लेकर गंभीर हैं।

सेलेब्रिटीज़ को ट्रोल किया जा रहा है

सोशल मीडिया पर कुछ लोग इस पूरी घटना को कठुआ से जोड़ने लगे हैं। उस वक्त आसिफा के लिए न्याय की गुहार लगा रहे लोगों में से मुख्य रूप से बॉलीवुड सेलेब्रिटीज़ को ट्रोल किया जा रहा है।

वहीं, कुछ लोग हैं जो दो कदम आगे बढ़ते हुए बच्ची और आरोपी में धर्म और जाति ढूंढ रहे हैं। समाज में ऐसे लोग वैमनस्यता फैलाने का कारोबार करते हैं। इनके कारोबार के प्रमुख नेता लोग होते हैं।

अरे भई, तभी तो हिन्दू या इस्लामिक राज्य का सपना साकार होगा। संविधान की मूल उद्देश्य की धज्जियां उड़ेंगी। लोकतंत्र को इतिहास का पाठ बना देंगे। एक दिन यही कारोबारी और इनके एजेंट लोग धर्म और कट्टरता की खूनी होली खेलेंगे तो कभी रमज़ान में गोली मारेंगे।

अपराध में भी धर्म और जाति का एंगल डालना शर्मनाक

यह दोहरापन लोग कहां से लेकर आते हैं कि इन्हें अपराध में भी धर्म और जाति नज़र आ जाती है। ट्विंकल शर्मा के लिए न्याय की गुहार सरकार से लगाओ, पुलिस व्यवस्था से लगाओ और सिस्टम से लगाओ क्योंकि यह लोग आपके संरक्षण के लिए बने हैं ना कि सड़ी-गली राजनीति और राजनीतिज्ञ का चाटुकार होने के लिए। यह लोग संवैधानिक पद पर हैं।

तख्तियां पकड़े हुए लोग लाइमलाइट और ग्लैमर की दुनिया के होते हैं। इन्हें अवसरवादी भी कह सकते हैं। यह ना तो संवैधानिक पद पर होते हैं और ना ही सिस्टम का हिस्सा होते हैं। आप लोग क्यों इनसे न्याय की गुहार लगाते हैं? यही लोग उग्र भीड़ में तब्दील हो रहे हैं, जिन्हें मुद्दों से कोई मतलब नहीं। इन्हें तो केवल खुद को हिंसक बनकर दिखाना है।

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