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“वृंदावन में लूट के गिरोह ने बंदरों से हमारा सामान छिनवा दिया”

वृंदावन में बंदर

वृंदावन में बंदर

मेरे पास दो दिन की छुट्टी थी इसलिए सुझाव आया कि मथुरा और वृंदावन घूम सकते हैं। ब्रजभूमि है, कृष्ण से जुड़ी तमाम लीलाएं और यमुना का नीर। यह सब सोचकर मन में कौतुहूल भी था मगर वहां जो देखा और अनुभव किया उसका धर्म और कर्म से कम, छल और छलावे से लेना देना ज़्यादा था

मथुरा में प्रवेश करते ही खुद को पंडे या गाइड कहने वाले लोग आपको घेर लेंगे और कहेंगे 100 रुपये में दर्शन कराएंगे। आपकी गाड़ी का दरवाज़ा अगर खुला मिल गया तो यह आपके हां या ना कहने के पहले ही आपकी गाड़ी में बैठ भी जाएंगे

दूर दराज़ से आए और इलाके से अपरिचित लोग आसानी से इनकी बातों में आ जाते हैं लेकिन बाद में पता चलता है कि यह 100  रुपए आपको काफी महंगे पड़ने वाले हैं

मंदिर में गाइड ने हमें पंडित के हवाले कर दिया

मथुरा में ऐसा ही एक पंडनुमा गाइड हमें गोकुल ले गया बिना हमें ठीक से बताए कि वह हमें कहां ले जा रहा हैरास्ते में वह कुछ बातें बार-बार दोहराता रहाजैसे- गाय को दान देना चाहिए और इससे ही उद्धार होगा वगैरह-वगैरह दरअसल, यह पूरा रैकेट है। गाइड आपको मंदिर के बाहर तक ले जाता है और अंदर मौजूद किसी पंडित के हवाले कर देता है।

मंदिर में गाइड ने हमें पंडित के हवाले कर दिया। जहां पंडित जी भी आते ही समझाने लगे कि गाय के नाम पर दान देना कितनी पुण्य की बात होती है तब समझ में आया कि दरअसल गाइड हमारा ब्रेनवॉश कर रहा था ताकि पंडित जी की बात मानने में हमें आसानी होयहां तक तो ठीक था लेकिन इसके बाद तो पंडित जी ने कमाल ही कर दिया। कहा पूजा के बाद कहा, “दान देना होगा।”

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार: Getty Images

इस ‘दान देना होगा’ में आग्रह नहीं आदेश था। उस पर तुर्रा यह कि दान उनकी बताई राशि के अनुसार देना पड़ेगा, जिसमें न्यूनतम स्तर तय था। अगर उससे ज़्यादा दे पाएं तो कहना ही क्या दान ना हुआ मानों इनकम टैक्स हो गया कि न्यूनतम कर देना लाज़मी है।

हम पर अनावश्यक भावनात्मक दबाव बनाने के लिए पंडित बोले, “मंदिर में संकल्प करो कि बाहर दानपत्र में कितने पैसे दोगे, तभी बाहर जाओ।” क्या इसके लिए आपके मन में धार्मिक ब्लैकमेल के अलावा कोई शब्द उभरता है?

बंदर भी रैकेट में शामिल थे

वहां जिस तरीके से लूट को अंजाम दिया जा रहा था, उससे तो मन खराब ही हो गया था। हमें बाद में पता चला कि आदमी तो आदमी वहां तो बंदर भी रैकेट में शामिल थे

वृंदावन में बंदर बहुत हैं। एक बंदर ने हमारा सामान छीन लिया और छू मंतर हो गया। पलक झपकते ही ना जाने एक शख्स (लूट के गिरोह का आदमी) कहां से भागते हुए आया और कहा, “500 रुपए दो तो सामान ला देंगे।” उसने जब हमारे चेहरे पर ना का भाव देखा तो रेट कम कर दिया उनमें से एक ने कहा, “अच्छा 100 रुपये तो दे सकते हो?” आखिर में बात 50 रुपए में बात बनी मुसीबत में फंसा व्यक्ति उस समय करे भी क्या? एक मिनट के अंदर सामान वापस ला दिया गया

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार: Getty Images

वहां फल की दुकान लगाए एक दुकानदार ने बताया कि यहां के तमाम बंदर प्रशिक्षित हैं। बंदर सामान छीनते हैं और इनके प्रशिक्षक पैसों के बदले में सामान वापस देते हैं। कोई हज़ार रुपये में फंस जाता है तो कोई 50 रुपए में खैर, मुझे तो अंदाज़ा हो ही गया था कि बंदरों के ज़रिये किसी गैंग द्वारा यह काम कराया जाता है। वापस लौटने पर एक सहयोगी ने बताया कि जगन्नाथ पुरी जैसी जगहों पर तो हालत इससे भी बुरी है

ऐसे ठगने वाले लोग सिर्फ हिन्दू धर्म में ही मौजूद नहीं हैं, बल्कि अन्य धर्मों में भी हैं। एक अन्य मित्र ने बताया कि अजमेर शरीफ जैसी जगहों पर भी लोगों को कुछ ऐसे ही अनुभवों से गुज़रना पड़ता है

धर्म तो धंधा बन गया है

वैसे धंधा तो सम्मानजनक होता है क्योंकि कोई सामान बेचता है और खरीददार खरीदते हैं मगर यहां तो लूट को अंजाम देने के लिए शर्तें तय की जाती हैं। इस धर्म की लूट में यह स्पष्ट करना ज़रूरी है कि सभी लोग ऐसे नहीं होते मगर आस्था और धर्म का दोहन करने वालों की भी कमी नहीं है

इन लोगों की महारत इसी से समझ में आ जाती है कि शिक्षित और जागरुक लोग भी इनके झांसे में आ जाते हैं कुछ हद तक मैं भी इस झांसे में आ ही गया था मगर हम ठहरे देसी गाँव के इसलिए माज़रा जल्दी समझ गए।

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