Site icon Youth Ki Awaaz

“भारत की एकता को खोखला कर रहा राष्ट्रवाद का दीमक”

राष्ट्रवाद

राष्ट्रवाद

2014 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद “राष्ट्रवाद” की ऐसी सुनामी उठी कि पूरा देश हिलोरे खाने लगा। “राष्ट्रवाद” (देश भक्ति) की धारा में तमाम तथाकथित राष्ट्रवादी अपनी-अपनी स्वार्थ की नैया लेकर चल निकले। चाहे डिजिटल नुक्कड़ (फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप इत्यादि) हो या गाँव, गली या शहर के नुक्कड़, हर जगह अचानक से राष्ट्रवाद की चर्चाएं होने लगी।

हकीकत तो यह रही कि इस खोखले राष्ट्रवादी विचार ने देश में असमंजस की स्थिति पैदा कर दी। मुसलमानों को डर लगने लगा, चोटी-तिलकधारियों को “हिंदुत्व” खतरे में दिखने लगा। सवर्णों-पिछड़ों-दलितों में मतभेद होने लगा। दलित दावे करने लगे कि वे इस देश के मूल निवासी हैं।

सत्ता की लड़ाई में पिसती रही आम जनता

दरअसल, भारत को इस स्थिति में जबरन डाला गया। इतिहास गवाह है कि सत्ता की लड़ाई में हमेशा आम जनता ही पिसती रही है। आम जनता को राष्ट्रवाद का असली मतलब ना अतीत में ही पता था और ना ही वर्तमान में वह राष्ट्रवाद का वास्तविक अर्थ जानती है। राष्ट्र का मतलब कोई एक देश नहीं होता, बल्कि उस देश की जनता ही राष्ट्र कहलाती है।

बिना जनता के कोई भी देश एक भूखंड से ज़्यादा और कुछ भी नहीं है। कभी आपने सोचा है कि यदि जनता ही राष्ट्र है, फिर तो भारत में हिन्दू-मुस्लिम, अगड़े-पिछड़े का भेद भाव क्यों? नहीं सोंचा तो सोचिए। दरअसल, सत्ता सुख के लोभ में आकर सत्ता के लोगों ने सदियों पहले ही “राष्ट्रवाद” की परिभाषा बदल दी थी।

जब राजा महाराजाओं का दौर था, तभी से इस “राष्ट्रवाद” का स्वरूप बिगड़ा है। “राष्ट्रवाद” को शासक की भक्ति से जोड़ दिया गया। शासक की भक्ति ही देशभक्ति या राष्ट्रवाद कहलाया, जिसकी सत्ता रही उसकी हर बात मानना ही राष्ट्रवाद का पैमाना बना दिया गया और जो उसके विपरीत गए उन्हें पूर्व में विद्रोही और अब देशद्रोही कहा जाने लगा।

देशभक्ति को समझना बेहद ज़रूरी है

भारत में आज़ादी की लड़ाई के समय अंग्रेज़ों का शासन था। जब चंद्र शेखर आज़ाद और भगत सिंह जैसे सेनानियों ने अंग्रेज़ी सत्ता का विरोध किया तब उन्हें “विद्रोही” कहा गया। किसी भी देश के लिए राष्ट्रवाद एक घातक बीमारी है। भारत के कई विद्वानों ने राष्ट्रवाद को सिरे से खारिज़ किया है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर। फोटो साभार: Twitter

पूरी दुनिया में मशहूर हिंदुस्तान के महान दार्शनिक, विचारक और लेखक रवींद्रनाथ टैगोर ने राष्ट्रवाद के लिए कहा था, “देशभक्ति हमारा आखिरी आध्यात्मिक सहारा नहीं बन सकता, मेरा आश्रय मानवता है। मैं हीरे के दाम में ग्लास नहीं खरीदूंगा और जब तक मैं ज़िंदा हूं, मानवता के ऊपर देशभक्ति की जीत नहीं होने दूंगा।”

रवींद्रनाथ ने देशभक्ति कि तुलना कांच के टुकड़ों से की और मानवता की तुलना हीरे से। राष्ट्रवाद एक उन्मादी विचार है। एक रोग है जो सत्ता के लोगों द्वारा फैलाया जाता रहा है। अतीत में झांक कर देखिए इस खोखली राष्ट्रवादी विचारधारा ने सिर्फ त्रासदी ही दी है। नेपोलियन हो या हिटलर सबने अपने लाभ के लिए असंख्य लोगों की जान की बाज़ी लगा दी। विश्वयुद्ध में लाखों लोग राष्ट्रवाद के उन्माद की वजह से काल के ग्रास बने।

एकता को छिन्न-भिन्न करता है राष्ट्रवाद

राष्ट्रवादी विचारधारा उस रूपवती विषकन्या की तरह है जो आपको अपनी तरफ आसानी से आकर्षित करके आपका अंत कर देती है। राष्ट्रवाद सदैव से एकता को छिन्न-भिन्न करने का काम करता रहा है। देशभक्ति की चाशनी में डूबे शब्द सुनने में कर्णप्रिय होते हैं लेकिन यही किसी भी राष्ट्र के पतन का कारण भी बनते हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि राष्ट्रवाद का दीमक भारत की एकता को खोखला कर रहा है।

आज़ादी की लड़ाई भी राष्ट्रवाद के लिए नहीं लड़ी गई थी। आज़ाद या भगत सिंह ने कभी भी राष्ट्रवाद आगे रखकर लड़ाई नहीं लड़ी अपितु उन्होंने राष्ट्र प्रेम में घुलकर आज़ादी की लड़ाई लड़ी। राष्ट्रवाद और राष्ट्रप्रेम दोनों पृथक हैं। राष्ट्रवाद में शासक का विरोध, शाशक से मतभेद और शासक से प्रश्न पूछना विद्रोह माना जाता है लेकिन प्रेम में आपसी मतभेद की पूरी गुंज़ाइस रहती है।

हम अपने माता-पिता, भाई -बहन या दोस्तों से प्रेम करते हैं। इस प्रेम में आपस में लड़ाई भी होती है, मतभेद भी होतें है लेकिन अंत में जीतता प्रेम ही है। जितना भी हो सके इस राष्ट्रवाद के ज़हर से खुद को बचाइए। जब देश में राष्ट्रवाद की बातें नहीं होती थीं तब देश में इस हद तक तनाव की स्थिति नहीं थी।

बीजेपी के सत्ता में आने से पहले तो हिन्दुत्व को कोई खतरा नही था

बीजेपी के सत्ता में आने के पहले ना हिन्दुस्त्व खतरें में था, ना मुसलमानों को डर लगता था और ना ही इस बात पर चर्चा होती थी कि भारत का मूल निवासी कौन है। पूरी दुनिया में जहां भी दक्षिण पंथी विचारधारा है, वहां खोखला राष्ट्रवाद है। दक्षिण पंथी विचारधारा हमेशा राष्ट्रवाद और धर्म के मुद्दे को हथियार बनाकर सत्ता हासिल करती रही है क्योंकि उन्हें पता है कि आम जनता का तार्किक होकर नहीं सोंचती है।

दक्षिण पंथियों को पता है कि धर्म और राष्ट्रवाद “ग्रीड फैक्टर और फियर फैक्टर” के खुराक पर ज़िंदा रहती है। किसी को भी इन दोनों फैक्टर के आधार पर आसानी से मूर्ख बनाया और लड़ाया जा सकता है।

नरेन्द्र मोदी। फोटो साभार: Getty Images

ग्रीड फैक्टर और फियर फैक्टर के बारे में मैं अपने अगले लेख में लिखूंगा लेकिन आपके समझने के लिए इतना बता दूं कि ग्रीड फैक्टर में किसी को लालच देकर उसके दिमाग पर काबू करना होता है और फीयर फैक्टर में डर देकर।

जैसे- सन् 2014 के चुनाव में बीजेपी ने राष्ट्रवाद और धर्म को मुद्दा बनाया और उसने जनता को पहले ग्रीड फैक्टर दिया कि राम मंदिर बन जाएगा, कश्मीर की समस्या सुलझ जाएगी और साथ ही उसने फियर फैक्टर दिया कि देश खतरे में है, हिन्दू खतरे में है।

आप अगर चाहते हैं कि देश की अखंडता बनी रहे तो इस फर्ज़ी खोखले राष्ट्रवाद से दूर रहिए, अपने रिश्तेदारों और खासकर बच्चों को इससे दूर रखिए। राष्ट्रवाद की वास्तविकता जानने के लिए रवींद्रनाथ की पुस्तक “नैश्नलिज़्म” खुद भी पढ़िए और अपने बच्चे को भी पढ़ाइए।
राष्ट्रप्रेमी बनिए और देश की जनता से प्रेम करिए। राष्ट्रवादी बनकर हिन्दू-मुस्लिम, अगड़े-पिछड़े करके देश को मत बांटिए।

Exit mobile version