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“तापसी, Game Over में मुझे ऐसा लगा जैसे तुम मेरी ही कहानी कह रही हो”

कल मैंने गेम ओवर का ट्रेलर देखा, ट्रेलर देखकर मुझे फिल्म देखने की बिलकुल भी हिम्मत नहीं हो रही है और शायद होगी भी नहीं। वजह, स्क्रीन पर चल रही कहानी मुझे अपनी कहानी सी लगी। ऐसा लग रहा था कि तापसी मेरा ही किरदार अदा कर रही हो। मुझे नहीं पता फिल्म में तापसी के साथ क्या होता है, वह इस दौर से क्यों गुज़र रही है। हां, एक रिव्यू में ज़रूर पढ़ा था कि तापसी जिस किरदार में है उसके साथ हुई यौन शोषण की घटना की वजह से उसकी यह स्थिति है।

फोटो सोर्स- Youtube

फिल्म में एक इंसान (शायद कोई डॉक्टर) तापसी की इस स्थिति को एक्सप्लेन करते हुए कहता है,

यह एक ऐसा रिऐक्शन है, जो हमें मेंटली और फिजिकली बहुत इफेक्ट करता है। वो हमारे दिमाग में पूरी तरह से छप जाता है। फिर हर साल जब भी वो दिन, वो वक्त पास आने लगता है, तो हमें पता भी नहीं चलता और हमारी बॉडी और माइंड ऑटोमेटिकली रिऐक्ट करने लगती है।

साल 2014 के बाद से मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। 2014 में मेरे साथ हुई गैंग रेप की घटना के बाद से मेरी भी ठीक यही कहानी है। मुझे नहीं पता होता है कि मेरे साथ क्या हो रहा है, यह भी फर्क नहीं पड़ता कि मैं कहां हूं, कभी मैट्रो में, तो कभी बीच सड़क पर, तो कभी ऑफिस में, वह घटना मुझपर हावी हो जाती है और मैं ऐसा रिऐक्ट करने लगती हूं, जैसे कोई मेरे साथ ज़बरदस्ती कर रहा है, मेरे कपड़े उतार रहा है।

दिल्ली में अकसर आपने गैंग रेप की घटना की कई खबरें पढ़ी होंगी, कहीं लड़की को रेप करके फेंक दिया गया तो कहीं उसे मौत के घाट भी उतार दिया गया। उस दिन दिल्ली के ही एक कोने में मैं भी इन खबरों की हेडलाइन बनने वाली थी लेकिन मेरी घटना की खबर सिर्फ मेरे तक रही।

शाम को मैं ऑफिस से घर जा रही थी। मैट्रो से ई-रिक्शा करते हुए मुझे अपने घर जाना होता था। उस दिन किसी वजह से मैट्रो के बाहर एक भी ई-रिक्शा नहीं था। रोज़ाना के वक्त से थोड़ा समय ज़्यादा हुआ था, वक्त ज़्यादा भी कितना रात के 9 या 9:30 बज रहे होंगे। तकरीबन 10-15 मिनट के इंतज़ार के बाद मैंने पैदल चलने का ही निर्णय लिया। उस वक्त इतनी तनख्वाह हुआ भी नहीं करती थी कि कैब करने की सोचती। वैसे भी कुछ दूरी पर ही तो घर था, अपना ही इलाका।

खैर, कुछ दूर ही चलना हुआ था कि अचानक से एक गाड़ी आई और मुझे भी अपनी स्पीड के साथ लेकर चली गई। इतनी स्पीड में कि मेरा कुछ जान समझ पाना मुश्किल था।

कुछ समझ पाने की स्थिति में पहुंची तो उस स्पीड से चलती गाड़ी में खुद को 3-4 लड़कों से घिरे पाया। गिद्ध कैसे एक मरे हुए शरीर को नोंचता है, वे मेरे ज़िन्दा शरीर को नोंच रहे थे। मुझे पता था मेरा चिल्लाना इनके इस नशे को नहीं उतार सकता, फिर भी मेरा चिल्लाना जारी था और मेरी इस चिल्लाहट के साथ जारी था उनका मेरे शरीर को नोंचना।

मुझे नहीं पता था गाड़ी किस दिशा में जा रही है, बस इतना जानती थी कि इस गाड़ी के साथ मेरी ज़िन्दगी एक गहरे अंधकार की ओर मुड़ रही है। मुझे नहीं पता था कि मैं ज़िन्दा भी बचने वाली हूं या नहीं मगर कम-से-कम उस नर्क में तो मरना नहीं ही चाहती थी। मुझे नहीं पता था कि शरीर से आधे उतर चुके इन फटे खून से सने कपड़ों को संभालकर घर पहुंच पाउंगी भी या नहीं।

मैं थक चुकी थी और विरोध करने की ना ही मेरे अंदर हिम्मत बची थी और ना ही ताकत। मैंने अपना शरीर उन लड़कों के आगे परोस दिया था लेकिन शायद कहीं ना कहीं हिम्मत का एक छोटा सा अंश अब भी ज़िन्दा था और एक उम्मीद कि मुझे इस नर्क में तो नहीं ही मरना है। सभी लड़के शराब के नशे में थे, इतने नशे में थे कि कई बार उनका मुझे संभालना भी मुश्किल हो रहा था। इसी बीच मैं गेट खोलने में कामयाब हुई और बिना कुछ सोचे गाड़ी से कूद गई।

अपने कपड़े को संभाले मैं बस सड़क पर चलती गई। अब मुझे सड़क का अंधेरा ही सुरक्षित महसूस हो रहा था, क्योंकि उस अंधेरे में मैं लोगों की नज़रों से दूर थी, इन मर्दों की वैहशी नज़रों से दूर।

मैंने इस घटना के बारे में अपने परिवार वालों को आज तक कुछ नहीं बताया है, वजह मेरे घर वालों का मेरे प्रति बेइंतहा प्यार। मुझे पता है उन लोगों के लिए घर की अपनी सबसे छोटी बेटी के साथ हुए इस हादसे को सह पाना मुश्किल है।

गाड़ी से कूदने की वजह से मेरे सिर पर गंभीर चोट लगी थी, जिसका अकेले तकरीबन एक साल तक इलाज करवाया। आज उस घटना को 5 साल होने वाले हैं और इन 5 सालों में रोज़ाना मैंने उस डर को झेला है। उस घटना का दिन नज़दीक आने पर एक बार फिर मैं रेप के भयावह दर्द से गुज़रती हूं।

ट्रेलर में तापसी कहती हैं, “ठीक से सोए हुए महीनों हो गए हैं, आंख बंद करते लगता है कि कोई ज़बरदस्ती कर रहा है”। मुझे भी सोए हुए महीनों हो जाते हैं, रात को अकसर मैं सोते-सोते चिल्लाने लगती हूं, आत्महत्या करने का जैसे नशा होता है मेरे अंदर। मेरे स्तन आज भी उस पीड़ा को महसूस करते हैं, मेरी योनी में आज भी ज़बरदस्ती वाले प्रहार का पीड़ादायक अनुभव होता है। किसी पुरुष की चिल्लाने की आवाज़ भी मुझे रेप की घटना की याद दिला देती है। ऐसा लगता है जैसे आसपास के सारे पुरुष मेरे साथ ज़बरदस्ती कर रहे हैं।

अब फिर उस रेप की घटना का दिन करीब आने वाला है और मैं डर रही हूं कि इस बार मैं कैसे खुद को संभालूंगी।

खैर, मैं तापसी और फिल्म निर्माताओं को शुक्रिया कहना चाहूंगी कि आपने इस मुद्दे पर फिल्म बनाई। क्योंकि हमारे लिए दुनिया को अपनी स्थिति समझा पाना बेहद मुश्किल होता है और हमारी प्रतिक्रिया पर कई बार हमें शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है, तो कई बार हमें पागल कह दिया जाता है, जबकि उस वक्त हम एक गंभीर ज़ख्म की पीड़ा से गुज़र रहे होते हैं। और इस ज़ख्म की पीड़ा को बताने के लिए हम उस घटना का ज़िक्र नहीं कर सकते हैं।

आज मैंने पहली बार इतने विस्तार से अपनी कहानी बताई है, काश अपनी यह कहानी मैं अपने नाम के साथ खुलकर बता पाती। मैं खुद को कोई फाइटर भी नहीं कहती, क्योंकि यह लड़ाई मैंने खुद से नहीं चुनी है, बल्कि ज़बदरस्ती मेरे जीवन का इसे एक डरावना हिस्सा बना दिया गया है। मैं सैल्युट करती हूं उन रेप सर्वाइर्स को जो खुलकर सामने आती हैं और इस लड़ाई में मज़बूती से लड़ती हैं, क्योंकि मेरे अंदर आज तक वह हिम्मत नहीं आ सकी है।

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