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इन उपायों के ज़रिये जल संकट का समाधान कर सकता है जल-शक्ति मंत्रालय

पानी की किल्लत

पानी की किल्लत

2020 तक 21 भारतीय शहरों में भूजल स्तर शून्य तक पहुंचने की संभावना है, जो 10 करोड़ लोगों के लिए पानी की पहुंच को प्रभावित करेगा। भारत का लगभग आधा हिस्सा गर्मियों के दौरान पहले से ही सूखे की चपेट में है। चेन्नई में वर्तमान जल संकट इसका ताज़ा उदाहरण है। नई सरकार अपने नवीनतम मंत्रालय, “जल शक्ति” में पानी के मुद्दों को सुलझाने की कोशिश कर रही है।

यह पानी के मुद्दों पर सभी विभागों को एक मंत्री के तहत लाने का वादा करती है। इससे पहले इसे जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प मंत्रालय के रूप में जाना जाता था। नए मंत्रालय का उद्देश्य भारत की नदियों को जोड़ना और 2024 तक हर भारतीय घर में पानी सुनिश्चित करना है।

यह कोई नई अवधारणा नहीं है। कई राज्यों की सरकारों ने इससे पहले सभी घरों में पानी पहुंचाने की कोशिश की है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वर्तमान में लगभग 85% ग्रामीण जल आपूर्ति योजनाएं भूजल स्रोतों पर आधारित हैं, जो बारहमासी नहीं हैं।

राजस्थान में गोपालपुरा गाँव में पांच साल बाद भी जन स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग द्वारा निर्मित पीने के पानी की टंकी खाली है। यह एक पाइप-लाइन के माध्यम से एक सूखे बोरवेल से जुड़ी हुई है। देश के आधे से अधिक भूजल स्तर में गिरावट है।

लाखों लोग अपर्याप्त या खराब जल प्राप्त कर रहे हैं। परिणामस्वरूप, लोग पीने के पानी के एकल या दूरस्थ स्रोत पर निर्भर करते हैं, जो अक्सर महिलाओं और लड़कियों के साथ भेदभाव को बढ़ाता है।

एक और सर्वव्यापी वास्तविकता सामान्य जन द्वारा जल-दबाव वाले क्षेत्र में भी पानी की बर्बादी है। घंटों तक आप सड़कों पर बहती सार्वजनिक पाइप लाइनों को देख सकते हैं।

नए मंत्रालय के सामने चुनौतियां

नए मंत्रालय को भारत के लिए जल सुरक्षा प्रदान करने के बारे में सोचने की आवश्यकता है। इसे पानी के निकायों को पुनर्स्थापित करना होगा और इसके भूजल को रिचार्ज करना होगा। जब हमारी पीने के पानी की आपूर्ति बारहमासी सतह के जल स्रोतों पर आधारित होगी, तब हमारे पीने के पानी की सुरक्षा हासिल की जा सकती है।

ग्रामीण भारत में अभी भी मिट्टी और जल संरक्षण की अपार संभावनाएं हैं। सरकार को घरेलू स्तर पर वर्षा जल के प्रबंधन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए। पंचायत या ज़िला अधिकारियों को सामुदायिक स्तर पर जल संसाधनों को बहाल करना चाहिए।

जल परिवहन कोई स्थाई समाधान नहीं

वर्तमान में जल-समृद्ध ज़िलों या राज्यों से जल परिवहन को जल संकट के समाधान के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। मेरा मानना ​​है कि यह एक अल्पकालिक आपातकालीन समाधान है लेकिन एक स्थाई समाधान नहीं है। एक दशक से जयपुर शहर ने लगभग 150 किलोमीटर दूर टोंक के बीसलपुर से पानी आयात किया।

अब हालांकि बीसलपुर बांध अपने आप भर नहीं रहा है और स्थानीय सरकार द्वारा ब्राह्मणी और चंबल नदियों से पानी लाने की योजना बनाई जा रही है। क्या पता इन नदियों को कुछ दिनों बाद कहीं और से पानी की आवश्यकता होगी। यह एक अंतहीन खेल है जो निश्चित रूप से दाता ज़िले, राज्य या बेसिन और प्राप्तकर्ताओं के बीच विवादों को जन्म देगा।

इस आयातित पानी का दुरुपयोग सबसे गंभीर अपराधों में से एक है। शहरों में उपयोगकर्ता आमतौर पर इस पानी के मूल्य को नहीं समझते हैं। इसे कार धोने और सड़क की सफाई आदि में उपयोग करते हैं। यह पानी कई किसानों के खेतों की सिंचाई कर सकता है।

सरकार को मांग-प्रबंध पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह तीन रणनीतियों द्वारा संभव हो सकता है। पहला नियंत्रित आपूर्ति, दूसरा मांग नियंत्रण और तीसरा दीर्घकालिक जागरूकता।

जल संरक्षण के लिए सरकार के लिए कुछ सुझाव

सरकार को सातों दिनों 24 घंटों की आपूर्ति की बजाए समय पर, रिसाव रहित और सुरक्षित पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए। सरकार को किसानों के लिए घरेलू स्तर पर ड्रिप या स्प्रिंकलर जैसे कुशल पानी के उपयोग वाले उत्पादों, सेंसर-टैप एक्सेसरीज और ऑटोमैटिक मोटर कंट्रोलर पर सब्सिडी देकर उपभोक्ताओं की सहायता करनी चाहिए।

वर्तमान सार्वजनिक सब्सिडी प्रणाली अक्षम है क्योंकि इसमें भारी कागज़ी कार्रवाई और एक लंबी प्रक्रिया की आवश्यकता होती है। यह किसानों को नई सिंचाई तकनीकों को अपनाने से हतोत्साहित करती है। देश की खाद्य सुरक्षा को प्रभावित किए बिना सिंचाई स्तर पर पानी के उपयोग को नियंत्रित करना सबसे महत्वपूर्ण विचार है क्योंकि यह 85% भूजल का उपभोग करता है।

फोटो साभार: मौलिक सिसोदिया।

मैं राजस्थान में एक हज़ार से अधिक किसानों के साथ काम करता हूं जिन्होंने पिछले चार वर्षों में स्प्रिंकलर जैसी तकनीकों को प्रभावी ढंग से लागू किया है। प्राप्त निष्कर्षों में प्रति एकड़ सिंचाई के लिए पानी की खपत में 40% की कमी और सिंचाई के दौरान पानी की कमी में 30% की कमी दिखी है। इसमें पानी की पंपिंग के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है और प्रति एकड़ सिंचाई के लिए आवश्यक समय में 80% की कमी होती है।

राष्ट्रीय स्तर पर जल साक्षरता अभियान चलाना चाहिए। अब समय आ गया है कि पानी की बचत और संरक्षण पर कक्षाओं में विशेष मॉड्यूल पेश किए जाएं। सरकार की जल सम्बन्धित योजनाओं को अपने माता-पिता को सूचित करने और उन्हें प्रभावी बनाने के लिए उच्च-माध्यमिक और कॉलेज स्तर के युवाओं को जागरूक होना चाहिए। वार्षिक या मासिक कार्यक्रम की बजाए कुशल जल साक्षरता हमारी शिक्षा प्रणाली का घटक होना चाहिए।

राष्ट्रीय स्तर पर जल साक्षरता अभियान में जल संरक्षण में लगे ज़मीनी कार्यकर्ताओं के अनुभव से सीखा जा सकता है। उनका साथ हासिल कर इसे महा-अभियान बनाया जा सकता है। ये सब मानसून की पहली बूंद के साथ बंद नहीं होना चाहिए।  

भारत सरकार को सभी स्थानीय अधिकारियों को अपने अधिकार क्षेत्र के तहत जल निकायों के नक्शे छह महीने के भीतर प्रकाशित करने के आदेश देने चाहिए। राजस्व विभाग द्वारा इन दस्तावेज़ों को सीमांकित, अधिसूचित और राजपत्रित किया जाना चाहिए। इन जल निकायों, झीलों, नालों और नदियों के लिए भूमि उपयोग में कोई परिवर्तन नहीं होने का प्रावधान होना चाहिए।

सरकार को भूजल के निष्कर्षण और पुनर्भरण के लिए नियमों के साथ जल-मार्ग और जल निकायों के उपयोग को भी सीमित करना चाहिए। इसमें सभी निषिद्ध परिचालनों की सूची होनी चाहिए। जैसे- अवैज्ञानिक रेत खनन, ड्रेजिंग और अलंकरण आदि जो एक जल निकाय को खतरे में डाल सकते हैं। उन्हें उपयुक्त भारतीय दंड संहिता के तहत अपराधों के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।

रेत के कारण नदियों की हत्या हो रही है। सरकार को एक निर्माण सामग्री के रूप में रेत के विकल्प की पहचान करनी चाहिए। यदि वास्तविक रूप से संभव हो तो रेत का आयात एक अल्पकालिक समाधान हो सकता है। आखिरकार हम नहीं चाहते कि हमारी नदियों की आखिरी तस्वीरें हमारे घर की दीवारों पर लटकी हो।

करौली, राजस्थान में स्थानीय समुदायों द्वारा बनाया गया एक जोहड़। फोटो साभार:  मौलिक सिसोदिया

नई सरकार को प्रकृति आधारित समाधानों और पारिस्थितिक बहाली का कार्यक्रम शुरू करना होगा ताकि जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए लोग जागरूक बने। नए जल शक्ति मंत्रालय का मुख्य मकसद नदियों का पुनर्जीवन और उनका संरक्षण होना चाहिए। उन्हें नदियों पर प्रदूषण भार को रोकने और जलीय पुनर्भरण और निर्वहन के बीच संतुलन स्थापित करना चाहिए।

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