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“12वीं की परीक्षा के लिए समाज के दबाव पर मैंने खुद को खत लिखा”

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रिय अंकुर,

बहुत दिनों से तुम्हें खत लिखने की सोच रहा था लेकिन मैं करता भी क्या! बस सोच ही तो सकता हूं। लिखने का वक्त ही कहां मिलता अब। उम्मीद है तुम्हारी 10वीं की परीक्षा खत्म हो चुकी होगी और परिणाम भी आ चुके होंगे। अंक कम आए होंगे तो कोई बात नहीं। थोड़ी बहुत डांट घरवालों से मिली होगी मगर कल फिर यही लोग पूरी खुशी के साथ एक अच्छे स्कूल या कॉलेज में तुम्हारा दाखिला करवाने में लग जाएंगे। 

तुमने 12वीं के लिए शायद विषय चुन लिया होगा। मोहल्ले वाले या सगे सम्बंधी तो दबाव देने लग गए होंगे। मोहल्ले वाले चाचा, जिनका बेटा अब इंजीनियर बन गया होगा, वह अपने बेटे के किस्से बताकर तुम्हें विज्ञान लेने बोल रहे होंगे। बगल वाली आंटी अपनी सीए बेटी की चश्मे लगने वाली कहानी बताकर कॉमर्स लेने बोल रही होंगी मगर क्या तुमने गौर किया कि किसी ने तुम्हें कला संकाय के लिए प्रोत्साहित किया? क्या तुम्हें किसी ने इतिहास के महत्व को बतलाया?

खैर, अब तुम्हारा कुछ ही दिनों में दाखिला हो जाएगा और तुम्हें आदेश दिया जाएगा कि मन लगाकर पढ़ना और पैसे का मोल रखना आदि। बात सिर्फ यहीं खत्म नहीं होगी। नए दोस्त बनेंगे और नया उमंग रहेगा। पहले महीने में आईआईटी, आईआईएम या श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के सपने दिखाए जाएंगे। ज़िंदगी बहुत हसीन लगेगी फिर इसी सपनों के साथ दो साल बीत जाएंगे और 12वीं की परीक्षा भी आ जाएगी। अब लोग कहेंगे, “बारहवीं तो भविष्य निर्धारण करता है, अच्छे से ध्यान लगाकर पढ़ना।”

अच्छे नंबर आने पर घर में खुशी का माहौल हो जाएगा। घरवाले जो वर्षों से फोन नहीं करते थे, वे उस दिन फोन लगाकर पहले हाल-चाल पूछेंगे फिर अंक! तुम आहिस्ता-आहिस्ता अपने अंक बताओगे और मुस्कुराओगे।

यह सब खेल दो महीने तक चलेगा फिर सन्नाटा छा जाएगा। उसके बाद स्नातक की पढ़ाई के लिए दाखिला और घर में बेचैनी। अंक अच्छे रहेंगे तो लोग बोलेंगे बेटा बाहर चला जा, उससे तेरा भविष्य सुधर जाएगा। मगर कैसे?

अब उनका जवाब होगा, “वह ऐसे कि तुम जब नौकरी करने लगोगे तो दुनिया तुम्हें सफल मानने लगेगी। समाज और सगे सम्बन्धी को बस तुम्हें ‘फॉर्मल कमीज़ और ‘क्रीच वाली पैंट’ में देखना है। वह कभी नहीं पूछेंगे कि क्या करते हो? उन्हें बस तसल्ली रहेगी कि तुम नौकरी करते हो। उन्हें तुम्हारी उस भावना की कोई कद्र नहीं होगी, जो तुम अपने दफ्तर में 9 से 5 महसूस करते हो और शाम के 5 बजने का सुबह 10 बजे से ही इंतज़ार करते हो। उन्हें तुम्हारा वेतन तो नज़र आएगा मगर उस चंद रुपयों को पाने में तुमने किन-किन ज़ख्मों पर मरहम लगाकर आगे बढ़ने की कोशिश की है, वह नज़र नहीं आएगा।”

यह ऐसी परिस्थिति होगी कि तुम रोना चाहोगे मगर रो नहीं पाओगे। यहां अपने कहने वाले हज़ार होंगे लेकिन साथ निभाने वाले बहुत कम। तुम जब अपने दफ्तर से लौटोगे, तब तुम्हारे दिमाग में सिर्फ पूरे दिन की घटना मंडराती रहेगी और तुम ट्रैफिक में जब फंसे रहोगे, कब ट्रैफिक क्लियर हो जाएगी तुम्हें पता भी नहीं चलेगा।

उम्मीद करता हूं  12वीं में अच्छे अंक लाओगे और अपनी मनपसंद राह चुनोगे।

तुम्हारा मित्र अंकु

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