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बुद्धिजीवियों से क्यों चिढ़ते हैं दुनिया के परम्परावादी लोग?

महिलाएं

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बुद्धिजीवी बनने की पहली सीढ़ी यह है कि आप अपने सोच के बारे में सोचना शुरू कर दीजिए। अगर आपका जन्म सवर्ण परिवार में हुआ है और आपको दलितों का पक्ष गलत लगता है, अगर आप हिन्दू घर में पैदा हुए हैं और आपको अपना धर्म महान और दूसरे धर्म गलत लगते हैं, आपका जन्म खाते-पीते घर में हुआ है और आपको मज़दूर कामचोर, गरीब और आलसी लगते हैं, फिर अपनी सोच पर ध्यान दीजिए।

ईमानदारी से करें अपने सोच की समीक्षा

सोचिए आप दलित होते तो क्या आपके विचार यही होते जो सवर्ण होने की वजह से हैं ? सोचिए अगर आप मुसलमान होते तो आपके विचार वही होते जो हिन्दू होने के कारण हैं ? सोचिए अगर आपका घर एक गरीब मज़दूर के रूप में होता तो क्या आपके विचार वही होते जो एक खाते-पीते घर का सदस्य होने के कारण हैं ?

अगर आप पूरी ईमानदारी और हिम्मत से अपनी सोच की समीक्षा करेंगे तो पाएंगे कि आपके विचार असल में आपके परिवेश, स्थान, वर्ग, वर्ण और सम्प्रदाय के कारण बने हैं।

तथ्य को स्वीकार करते ही विचार बदलने लगते हैं

जैसे ही आप इस तथ्य को स्वीकार करते हैं, आपके विचार बदलने लगते हैं। आप तब सत्य की खोज शुरू करते हैं। आप अपनी जाति, सम्प्रदाय, राष्ट्र, वर्ण और वर्ग की तुच्छ सीमाओं से ऊपर उठने लगते हैं। आपकी सोच सच्ची, ईमानदार और वास्तविक होने लगती है। अब आप अपने धर्म के लोगों की गलत बातों का विरोध करने लगते हैं।

आप अपनी जाति द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों के खिलाफ जाकर शोषित जाति के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। आप अपने राष्ट्र द्वारा किए जाने वाले गलत कामों का विरोध करते हैं।

सच्ची बात बताने पर गालियां पड़ती हैं

आप धीरे-धीरे निखरने लग जाते हैं। आपको दूसरे लोगों की छुद्र सोच पर दया आने लगती है। आप कोशिश करते हैं कि आप सच्ची बात सबको बताएं लेकिन सम्प्रदाय, जाति और वर्ग में फंसे हुए लोग आपको गालियां देते हैं।

आपको धर्म विरोधी, जाति का गद्दार और राष्ट्रद्रोही कहा जाता है। आपको विदेशी पैसे पर पलने वाला गद्दार बुद्धिजीवी कहा जाता है। आप अचरज से सारी बातें सुनते हैं लेकिन अब आपका दोबारा से मूर्ख बनने का रास्ता बंद हो चुका है क्योंकि सत्य में जीने का आनन्द आपसे अब छूटता नहीं है।

दुनिया को चाहिए आज़ाद सोच के बुद्धिजीवी

आप अब धर्म, जाति, वर्ग और राष्ट्र की मूर्खता के दलदल में दोबारा जा ही नहीं पाते हैं। दुनिया अगर युद्ध से बची है, दुनिया में अगर दया, समझदारी, नियम, कानून, और सत्य काम कर रहा है तो वह ऐसे ही मुक्त सोच वालों के कारण है।

धर्म, जाति, वर्ग और राष्ट्र की मूर्खता में फंसे हुए नेता, अफसर, व्यापारी, फौजी और भीड़ तो युद्धों, शोषण और मारकाट में लगी हुई है। दुनिया को ज़्यादा से ज़्यादा आज़ाद सोच के बुद्धिजीवियों की ज़रूरत है ताकि यह दुनिया धार्मिकों, राष्ट्रवादियों, जातिवादियों और नस्लवादियों के हाथों नष्ट ना हो सके।

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