सिविल सेवा परीक्षा में कनिष्क कटारिया ने टॉप किया है। उनका कहना है कि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा है कि उन्होंने पहली रैंक में सफलता प्राप्त की है। उन्होंने कहा, “मैं अपने माता-पिता, बहन और गर्लफ्रेंड को धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने मुझे सपोर्ट किया।”
कनिष्क ने अपनी सफलता का श्रेय अपनी गर्लफ्रेंड को क्यों दे दिया, खबर सुर्खियों में आ गई और यह एक गॉसिप का विषय बन गया। आमतौर पर गर्लफ्रेंड शब्द को कमतर आंका जाता है, जिसे खर्चे कराने वाली, घूमने-फिरने वाली, शॉपिंग करने वाली, मोबाइल रिचार्ज कराने वाली और ना जाने किन-किन शब्दों से कंपेयर किया जाता है।
पश्चिमी समाज में आमतौर पर यह माना जाता है कि ‘गर्लफ्रेंड’ स्टेटस की शुरुआत दो लोगों द्वारा डेटिंग के लिए सहमत हो जाने पर होती है लेकिन गर्लफ्रेंड्स इतनी बुरी भी नहीं होती। कुछ सपोर्ट भी करती हैं जैसा कि कनिष्क ने शेयर किया है। परिभाषाएं धीरे-धीरे बदल रही हैं, संकुचित सोच अब विस्तृत आसमान ढूंढ रही हैं। खुद को पीछे रखकर अपनी साथी को आगे बढ़ाने का उत्साह अब केवल महिलाओं तक ही सीमित नहीं।
भारतीय नारी अपनी इसी विशेषता की वजह से अपने सभी रिश्तों को अटूट बंधन में बांधे रखने में सक्षम रही हैं। जहां पत्नी की भूमिका निभाते हुए माता सीता को अपने पति के साथ जंगल जाने का निर्णय लेने में एक क्षण भी नहीं लगा वहीं राधा एक प्रेमिका के रूप में अपने निःस्वार्थ, शाश्वत तथा पावन प्रेम के प्रतीक के रूप में कृष्ण से पहले पूजी जाती हैं।
इतिहास के पन्नों पर कितनी ही कहानियां अंकित हैं, जहां भारतीय नारी स्वयं के अस्तित्व को समाप्त कर पुरुष को सर्वोच्च शिखर तक पहुंचाई हैं, इसीलिए यह कहा गया है कि प्रत्येक पुरुष की सफलता में एक स्त्री का हाथ होता है।
प्रेमिका या गर्लफ्रेंड का महत्व भारतीय समाज में ना के बराबर है, जब भी प्रेम की मिसाल दी जाती है, तो श्रीकृष्ण-राधा के प्रेम की मिसाल सबसे पहले आती है। राधा-श्रीकृष्ण के प्रेम को जीवात्मा और परमात्मा का मिलन कहा जाता है।
वैसे मुझे लगता है ये सिर्फ प्रेम की परिभाषा को प्रमाणित करने के लिए है, वास्तविकता बिलकुल इसके विपरीत है। समाज किसी भी जोड़े को राधा कृष्णा के रूप में नहीं स्वीकार कर पाता है, या तो उन्हें सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है या फिर उन्हें अपनी ज़िन्दगी से हाथ धोना पड़ता है।
पुरुष की कामयाबी का श्रेय गर्लफ्रेंड को देना तो दूर, गर्लफ्रेंड के साथ मिलना-जुलना, बातें करना भी लोगों को हज़म नहीं होता। आज भी इस रिश्ते को कोई नाम नहीं मिला, सम्मान नहीं मिला, भले ही इस रिश्ते में कितना भी समर्पण क्यों ना हो। ये रिश्ता आज भी बदनाम है, इस शब्द की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है और गर्लफ्रेंड के वास्तविक अर्थ को लेकर बहस अभी भी जारी है।
कोई भी पुरुष यह नहीं कह सकता कि उसने अपने जीवन में जितना भी अर्जित किया है, उसमें किसी महिला का योगदान नहीं है क्योंकि उस पुरुष की उत्पत्ति का आधार ही महिला है।
जब कोई पुरुष सफलता के सोपान पार करता है, तो उसकी सफलता के लिए उक्त कहावत का उल्लेख अवश्य होता है, “हर सफल पुरुष के पीछे किसी महिला का हाथ होता है।” अगर वह महिला उस सफल पुरुष की माता, बहन, बेटी, पत्नी हो तो समाज के सम्मान की हकदार होती है मगर वह महिला यदि उस पुरुष की प्रेमिका या मित्र रही हो, तो उसे वह सम्मान कभी नहीं मिलता जो उसे मिलना चाहिए। उसके त्याग और बलिदान को हमेशा हमेशा के लिए दफन कर दिया जाता है।
यूं तो जहां प्रेम होता है, वहां तर्क नहीं होता मगर सवाल यह उठता है कि हम जिस प्रेम का उदाहरण देते हैं, उसे वास्तविक रूप में अपनाने से डरते क्यों हैं? अगर हम किसी आइडियोलॉजी को मूल रूप नहीं दे सकते तो उसका दुनिया के सामने ढकोसला क्यों करते हैं? अगर प्रेम करना इतना बुरा होता है तो हम लोग अपने घरों में कृष्ण-राधा की पूजा क्यों करते हैं?
अगर सच्चे प्रेम का रिश्ता समाज और परिवार की बदनामी का कारण होता है, तो हम युगल जोड़े को राधा-कृष्णा की मूर्ति उपहार में क्यों देते हैं? यह जानते हुए कि वे पति -पत्नी नहीं हैं।
हम शायद अपनी व्यावहारिक ज़िन्दगी में पति-पत्नी के रिश्ते में भी उसी प्रेम को तलाशते हैं, जो राधा-कृष्ण में था, निःस्वार्थ, निश्छल, अलौकिक प्रेम। हमें यह हक नहीं होता कि हम बिना किसी बंधन के अपने प्रेमी या प्रेमिका के लिए तन, मन और धन से समर्पित हो पाएं।
हमें यह आज़ादी नहीं होती कि सच्चे मन से आप किसी को अपना सके। अगर किसी से आपको प्रेम है तो सबसे पहले उसे हासिल करने की सलाह दी जाती है, उसे बंधन में बांधने की सलाह दी जाती है, वरना आपका उस इंसान पर कोई हक नहीं होता।
लोग कहते हैं कि प्रेम में कोई शर्त नहीं होती, कोई सीमा नहीं होती, जन्म का बंधन नहीं होता सिर्फ समर्पण होता है, त्याग होता है मगर यह सिर्फ कहने की बातें हैं। बिना किसी के नाम का सिन्दूर, मंगलसूत्र, बिंदिया और बिछिया के दुनिया में सम्मान नहीं होता। राधा नहीं रुक्मिणी को लोग कृष्ण के संग अपनाते हैं क्योंकि लोगों के अनुसार हर कोई कृष्णा भगवान नहीं होता।