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“2006 बनारस बम ब्लास्ट के बाद संघ की खाकी मेरी वर्दी बन गई”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बारे में कौन नहीं जानता। मुझे कभी इससे जुड़ने का मौका नहीं मिला। इसका मुख्य कारण मेरे गाँव में संघ की किसी शाखा का ना होना है। जब मैं शहर आया तो पढ़ाई-लिखाई की वजह से कभी इसमें रुचि ही नहीं ली। इसका एक कारण इसके बारे में गलतफहमी भी थी और दूसरा गुजरात दंगों में इसकी संदिग्ध भूमिका। पूरी जानकारी नहीं होने की वजह से मैंने कभी संघ की आलोचना नहीं की।

एक बार राम मनोहर लोहिया जी से पूछा गया कि आप आरएसएस का इतना विरोध करते हैं तो फिर उसकी शाखा में जाते ही क्यों हैं। उन्होंने कहा कि किसी चीज़ की आलोचना करने से पहले उसके गुण और दोष के बारे में जान लेना चाहिए और बिना जाने किसी की आलोचना नहीं करनी चाहिए क्योंकि संगठन इंसानों से ही चलते हैं। यह बात मेरे ज़हन में थी।

मैंने 2005 में बीएचयू के लॉ स्कूल में एडमिशन लिया। वहां मैं भगवान दास होस्टल में राणा नवनीत जी के साथ रहने लगा। उसी समय होस्टल में कुछ सीनियर आए और आरएसएस के बारे में समझाने लगे। वे 50 रुपए में हाफ पैंट भी दे रहे थे। पैंट खाकी रंग की थी। पैंट की अच्छी क्वालिटी की वजह से मैंने उसको खरीद लिया। अचानक एक दिन वह समय आया जब मैंने इस खाकी हाफ पैंट को पहना। अब उस घटना के बारे में जानिए कि इसे क्यों पहनना पड़ा।

मार्च 7, 2006 ( बनारस सीरियल धमाके)

2004 में यूपीए की सरकार बनी, माननीय मनमोहन सिंह जी गठबंधन के प्रधानमंत्री बने। आतंकवाद अपने चरम पर था। हर जगह डर एवं भय का माहौल था। लगातार धमाके हो रहे थे। 2005-2006 आते-आते लोगों के दिलों में यह डर और बढ़ता चला गया। आतंकियों के नापाक हौसले और बुलंद हो गए थे।

मार्च का महीना था। मेरी सेमेस्टर परीक्षा की तैयारियां ज़ोर-शोर से चल रही थी। 7 मार्च को मंगलवार का शुभ दिन था। बनारस में सुबह मंदिरों में बजती घंटियों से शुरू होती है, पूरा वातावरण भक्तिमय होता है, हर गली में भगवान शिव का आभास होता है। प्रत्येक दिन की तरह उस दिन की शुरुआत भी काफी अच्छी हुई लेकिन शाम होते-होते पूरा वातावरण करुण क्रंदन से भर उठा। दानवों ने तांडव नाच करना शुरू कर दिया, बनारस की नगरी खून से सन गई, मानवता शर्मसार हो गई।

शाम का समय था, हॉस्टल के बहुत सारे मित्र संकट मोचन एवं विश्वनाथ मंदिर गए थे। मैं होस्टल में ही पढ़ रहा था। अचानक बहुत ज़ोर से दिल दहला देने वाली धमाके की आवाज़ सुनाई दी। उस समय तो लगा कि पास में ही कुछ हुआ है लेकिन बाद में सच्चाई पता चली। होस्टल में भी अफरा तफरी मच गई। अचानक कुछ मित्रों ने बताया कि पूरे शहर में सीरियल ब्लास्ट हो रहे हैं। संकट मोचन मंदिर में आरती के दौरान, कंटोनमेंट एरिया और शिवगंगा ट्रेन में ब्लास्ट हुए जिसमें कई लोग मारे गए।

मैंने टीवी पर देखा तो चारों तरफ अफरा तफरी का माहौल था। मीडिया दिखा रहा था कि तड़पते लोगों को उठाकर हॉस्पिटल पहुंचाने वाला कोई नहीं है। यह देख कर मेरा दिल दहल उठा। संकट मोचन मंदिर मेरे होस्टल से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर था।

मैं होस्टल से निकल कर दौड़ते हुए बिरला होस्टल पहुंचा ही था कि मेरे एक सहपाठी ने मुझसे घबराते हुए पूछा कि मैं कहां जा रहा हूं। मैंने उसे बताया कि मैं संकट मोचन जा रहा हूं। उसने बताया कि लोगों को वहां जाने से रोक दिया गया है। बीएचयू हॉस्पिटल में भी ब्लास्ट होने की संभावना जताई जा रही है इसलिए वहां भी लोगों को जाने से रोक दिया गया है। बस आरएसएस के कार्यकर्ताओं को जाने दिया जा रहा है। मैंने पूछा कि मैं वहां कैसे जा पाऊंगा। जवाब में मेरे दोस्त ने मुझसे खाकी पैंट पहनने के लिए कहा।

संघ की हाफ पैंट बन गई मेरी वर्दी।

मैं बिना समय गंवाए दोबारा होस्टल दौड़ते हुए गया और अपनी खाकी वाली पैंट पहन ली। उस दिन लगा कि वह केवल पैंट नहीं, बल्कि देश की सेवा के लिए मेरी वर्दी है। वहां पर सिर्फ पीड़ित, सिक्योरिटी फोर्सेज और आरएसएस के कार्यकर्ता ही दिखाई दे रहे थे। आरएसएस के कार्यकर्ता सिक्योरिटी फोर्सेज से कदम से कदम मिलाकर पीड़ितों की मदद कर रहे थे।

मैं हाफ पैंट की वजह से हॉस्पिटल में घुस गया। रात होने की वजह से एवं भारी मात्रा में पीड़ितों के होने की वजह से हॉस्पिटल में कर्मचारियों की भारी कमी हो गई थी। मैं आईसीयू में पहुंच कर डॉक्टरों के निर्देश पर काम करने लगा, जैसे फर्श को साफ करना क्योंकि रक्त का बहाव बहुत ज़्यादा था, तड़पते पीड़ितों को दबाकर पकड़ना ताकि उनको दवा दी जा सके।

कई पीड़ितों ने देखते ही देखते मेरी आंखों के सामने ही दम तोड़ दिया। मैं अंदर से टूटने लगा, वह खौफनाक मंज़र आज भी दिल में सिहरन पैदा कर देता है। कब रात के तीन बज गए पता ही नहीं चला। मैं जैसे ही बाहर निकला, मुझे प्रोक्टोरियल बोर्ड वाले लोग रास्ते में मिल गए। दूर से वे मुझे संदिग्ध समझ रहे थे। मैं उनको अपनी ओर आते हुए देख कर डर गया क्योंकि मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे पता चलता कि मैं बीएचयू का छात्र हूं।
अचानक उनके पास आते ही मेरी खाकी हाफ पैंट की वजह से माहौल बदल गया। उन्होंने मुझसे पूछा, “क्या तुम हॉस्पिटल से आ रहे हो?” मैंने कहा, “जी सर।” उन्होंने पूछा, “कहां जाना हैं?” मैंने बताया कि मुझे भगवान दास होस्टल जाना है। उन्होंने बड़े सम्मान से मुझे अपनी गाड़ी में बैठाकर होस्टल पहुंचाया और कहा कि मानवता की सेवा इसी तरह करते रहना।
उस दिन मुझे उस हाफ पैंट की अहमियत पता चली। हाफ पैंट को यह पहचान एक दिन में नहीं मिली है। इसके लिए कई कार्यकर्ताओं ने अपनी ज़िंदगी कुर्बान की है। इसके लिए कई सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक लड़ाईयां लड़नी पड़ी।

मोदी जी ने आतंकवाद को गली मोहल्लों एवं शहरों से समेट कर बॉर्डर तक सीमित कर दिया। इसके लिए मोदी जी एवं उनकी सरकार बधाई के पात्र हैं।

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