परतंत्रता की जंज़ीरों से मुक्ति पाने के बाद से ही भारत को विश्व के मानचित्र पर सबसे विकसित और प्रगतिशील देश के रूप में अंकित करवाने के उद्देश्य से हर सरकार द्वारा अपने मापदंड के अनुरूप देश को विकास का पथ प्रदान किया गया।
किसी भी जगह को विकसित करने के लिए उसे किसी बड़ी जगह से जोड़ना आवश्यक होता हैं। उसी सिद्धांत के आधारभूत देश की सरकारों ने देश के छोटे से छोटे गाँव को भी सड़क के माध्यम से बड़े शहरों से जोड़ दिया। जिससे आवागमन के पर्याप्त साधन सुलभ हो जाने से देश का छोटे से छोटा गाँव भी विकास के नए-नए आयाम गढ़कर देश को विश्व के मानचित्र पर सबसे विकसित देश बनाने में अपना योगदान देने लगा।
विकास के कार्यों को अंजाम देने के लिए धड़ल्ले से पेड़ों की कटाई होने लगी। पर्यावरण को होने वाली हानि को पूर्ण रूप से नज़रअंदाज़ करते हुए सड़क चौड़ीकरण से लेकर ऐसे “एक्सप्रेस वे” सड़को का निर्माण किया गया, जो ना सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि वैश्विक स्तर पर भी एक चर्चा का विषय रहा।
ये विकासरूपी एक्सप्रेस 10घंटे की दूरी को महज़ 4घंटे का कर तो देते हैं मगर सफर करने वाली देश की जनता ही स्वस्थ ना हो तो देश के ऐसे विकास का क्या मतलब? आज देश के छोटे से छोटे गाँव को विकसित करने के उद्देश्य से लाखों-करोड़ों की संख्या में पेड़ो की कटाई एक भयंकर समस्या को आमंत्रित कर रही है। जो भले ही शायद आज आपको स्पष्ट रूप से दर्शित ना हो रही हो मगर विकास की राह में आ रहे पेड़ो की इस तरह अंधाधुंध कटाई देश के विकास को विध्वंसक के रूप में निर्मित कर रही है।
सिर्फ पर्यावरण के नुकसान के कारण देश को विकास के पथ से विमुख कर लेना भी देशहित में न्यायोचित नहीं हो सकता है। इसलिए आज देश की वर्तमान सरकारों को देश के विकास में ऐसी तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए, विकास के पथ पर अग्रसर होते हुए पर्यावरण को भी सुरक्षित रखने में भी सक्षम हो।
यदि हमारी सरकार ऐसा कर पाने में सक्षम नहीं होगी तो प्राकृतिक सुन्दरता की जगह प्राकृतिक आपदाओं से जूझने वाले देश के रूप में हमारी पहचान स्थापित हो जाएगी।