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धोनी के विकेट ग्लव्स पर आखिर क्यों मचा है विवाद?

धोनी

धोनी

बलिदान सेना का, धोनी का या बीसीसीआई का? किसने किसके लिए बलिदान दिया इसे लेकर थोड़ा घमासान मचा है। क्या यह विवाद इतना बड़ा है कि यह राष्ट्रीय मुद्दा बन जाए?

इसको देश की अस्मिता से जोड़कर देखा जाए तो ठीक है। सबसे पहले बांयी तरफ वाली फोटो के बारे में बात करते हैं। मैरून रंग पर छपी दो पंख और एक कटार के साथ त्रिशूल जैसी उकेरी गई यह आकृति मामूली तो बिल्कुल नहीं है। ऐसा विशेष क्या है इसमें?

अदम्य साहस एवं सहनशक्ति की पराकाष्ठा का प्रतीक है यह बैज

यह विशेष नहीं सर्वश्रेष्ठ की निशानी है “बलिदान बैज” जो की सेना की पैराशूट रेजिमेंट के स्पेशल कमांडोज को दी जाती है। अदम्य साहस एवं सहनशक्ति की पराकाष्ठा का प्रतीक है यह बैज। पैरा स्पेशल कमांडो हां, वही दस्ता जिसने पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था।

बैज को प्राप्त करने के लिए कितना कठिन शारीरिक प्रशिक्षण दिया जाता है, इसे ससझने के लिए वह वीडियो ज़रूर देखिएगा जिसका लिंक मैंने लेख के अंत में दिया है। देखने में ही पसीने की धार बांये कान से सटके नीचे टपकने लगेगी। गहरी सोच और दिमाग तोड़ू चिंतन के भंवर मे फंसने लगेंगे। सोचेंगे क्या इंसानी शरीर की हदें इस स्तर तक भी होती हैं क्या?

धोनी का बलिदान बैज से क्या रिश्ता है?

अब बात करते हैं धोनी का बलिदान बैज से क्या रिश्ता है और आखिर यह धोनी के ग्लव्स तक पहुंचा कैसे? अतीत के पन्नों में जाएं तो नज़र आता है कि धोनी को भारतीय क्रिकेट में अतुलनीय योगदान के लिए सेना की तरफ से लेफ्टिनेंट कर्नल की उपाधि से नवाजा गया था।

सेना की वर्दी पहने धोनी मानों पैरा कमांडो प्रशिक्षण के कुछ शुरूआती चरण तो पार कर ही चुके थे। धोनी ने एक साल का प्रशिक्षण लिया। साथ ही पांच बार पैराशूट से सफलतापूर्वक छलांग लगाकर इस बलिदान बैज को प्राप्त किया।

अब विवाद की स्थित यह है कि जब धोनी वर्ल्ड कप का पहला मैच खेल रहे थे, तब उनके विकेट कीपिंग ग्लव्स पर कुछ ऐसी ही आकृति उकेरी हुई थी। लेकिन क्या यह वाकई में विवाद की स्थित है क्या? क्या इसको विवाद बनाया गया? कौन है इसके पीछे? तो तसल्ली से चिंतन करने पर पाएंगे कि यह विवाद की स्थित तो बिल्कुल नहीं है।

आईसीसी के नियमानुसार यह ना तो किसी की धार्मिक भावना को आहत करता है, ना किसी प्रकार का वैश्विक संदेश दे रहा है और ना ही कोई नस्लीय टिप्पणी के अंतर्गत आता है। बहरहाल आईसीसी ने इसको नियमों का उल्लंघन मान लिया है ।

हर बात को राष्ट्रवाद से जोड़ देना क्या सही है?

विवाद किसने बनाया? विवाद हम सबने बनाया। जी हां, हमने और मीडिया ने मिलकर इसे विवाद का रूप दिया है। राष्ट्रवाद के उफान में देश भले हो लेकिन हर बात को राष्ट्रवाद से जोड़ देना क्या सही है? याद कीजिए कुछ महीनों पहले भारतीय टीम ने आर्मी कैप पहनकर मैच खेला था तब विवाद क्यों नहीं हुआ?

उसका असल कारण यह था कि बीसीसीआई ने बकायदा अनुमति लेकर रखी थी।तो क्या इस बार बीसीसीआई  ने अनुमति नहीं लेकर रखी क्या? या धोनी इस होने वाले विवाद से बिल्कुल अंजान थे? दोनों ही कारण हो सकते हैं। पाकिस्तान टीम अपने प्रेक्टिस सेशन छोड़ भारतीय टीम पर कैमरे तान रिसर्च पर बैठी हो और उन्होंने चुपके से ईमेल कर शिकायत कर दी हो। कुछ भी हो सकता है लेकिन मुद्दा वही देश की अस्मिता से किसने जोड़ दिया?

फोटो साभार: Getty Images

गलती या तो बीसीसीआई से हुई या धोनी से या फिर आईसीसी हुई। फिर भारत की अस्मिता को खतरा कैसे? इस दरमियान सेना ने साफ कर दिया है कि धोनी के ग्लव्स पर छपा यह निशान बलिदान बैज है ही नहीं, तो आखिर हम इसे देशभक्ति, स्वाभिमान और सेनाओं के सम्मान से कैसे जोड़ सकते हैं?

भविष्य में इन बातों पर गौर करना चाहिए

आईसीसी का रवैया तो हमेशा से ही एक सीध नज़र नहीं आया है फिर उसकी चर्चा की ही क्यों जाए? हमें हमारे दृष्टिकोण से सोचने की ज़रूरत है और अगर फिर भी समझ में नहीं आए, तो अगला मैच अवश्य देखिए। धोनी मैच में नहीं खेलेंगे या बीसीसीआई इस संदर्भ में कोई माफीनामा पेश करती है या नहीं, इसके लिए हमें इंतज़ार करना होगा।

हां, यदि भारतीय टीम अगला मैच ही नहीं खेले तो आखिर में इज्ज़त फिर देश की ही जानी है। जिसका यह कहकर ढिंढोरा पीटा जाएगा कि भारतीय लोग नियमों को ही नहीं मानते। निष्कर्ष यही है कि इस बात को देश की अस्मिता से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। सारे सवाल एक तरफ हैं और देश एक तरफ। जिससे भी यह भूल हुई उनको भविष्य में इन बातों पर गौर करना चाहिए।

बैज को प्राप्त करने के लिए दी जाने वाली ट्रेनिंग-

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