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“प्रशांत कनौजिया केस में आम लोगों का आवाज़ उठाना क्यों ज़रूरी है?”

बीते 5 सालों में हमने देखा कि किस तरह से स्वतंत्र पत्रकारिता पर प्रहार किया गया है। आज पत्रकारिता का यह हाल है कि लोगों का मेन स्ट्रीम मीडिया से विश्वास उठने लगा है। स्क्रिप्टेड इंटरव्यू, बहस के मुद्दे चुनने में पक्षपात, देश के लोगों का बुनियादी मुद्दों से ध्यान भटकाना व सत्ता की वाहवाही गाना, वर्तमान के लगभग हर मेनस्ट्रीम मीडिया हाउस का यही हाल है। कुछ एक मीडिया हाउस ही ऐसे हैं, जो स्वतंत्र रूप से रिपोर्टिंग करते हैं, उसके लिए भी उनके रिपोर्टर को बहुत परेशानियां झेलनी पड़ती हैं।

स्वतंत्र मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है और उसकी स्वतंत्रता व ईमानदारी ही स्तम्भ की शक्ति के मायने हैं। मीडिया की मजबूरी या बेईमानी लोकतंत्र को कमज़ोर बनाती है।

प्रशांत कनौजिया एक स्वतंत्र पत्रकार हैं, जिन्होंने उत्तर प्रदेश की एक महिला के बयान को, (उस महिला ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के संदर्भ में बयान दिया था), एक साधारण से वक्तव्य के साथ ट्वीट कर दिया। खबरों के अनुसार इसी वजह से उनको बिना किसी वारंट के घर से गिरफ्तार कर लिया गया।

प्रशांत द्वारा लिखा गया ट्वीट ऊपर दिया गया है, जिससे यह कहीं नहीं लगता है कि इस आधार पर किसी को गिरफ्तार किया जाना चाहिए। फिर भी यदि ऐसा हो रहा है, तो क्या इस बात का विरोध नहीं होना चाहिए?

यह भी सोचना ज़रूरी है कि गिरफ्तारी का आखिरकार क्या मकसद है। स्वतंत्र पत्रकारिता का गला घोंटने के साथ-साथ क्या एक महिला के दावों को भी दबाने का प्रयास है?

सोचने की बात यह भी है कि यदि आज आम लोग इस तरह के अन्याय को लेकर कुछ नहीं बोलते हैं, तो क्या निकट भविष्य में हमारा अपनी बात रखना सहज रहेगा?

पत्रकार समाज में वे लोग हैं, जो हमारी बातों तो वहां तक पहुंचाते हैं, जहां तक हमारा पहुंचना संभव नहीं होता है। बेशक बिना आम लोगों के प्रोत्साहन से स्वतंत्र पत्रकारों का दिलेरी दिखाना मुश्किल है। यह इसलिए क्योंकि पत्रकारों को कभी सत्ता तो कभी बाहुबलियों के सामने छाती ठोककर सच दिखाना होता है। महज़ कुछ रुपयों की खातिर किसी का इतना जोखिम लेना संभव नहीं, आम जन को भी ज़रूरत पड़ने पर अपना पक्ष रखना ज़रूरी है। स्वतंत्र पत्रकार आखिरकार समाज के आंख, कान व मुंह हैं, समाज ही इसकी स्वतंत्रता की रक्षा कर सकता है।

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