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“हमारे देश में कत्ल करना राष्ट्र प्रेम और घंटों पीटना एक नया रोज़गार है”

24 साल का एक युवक, जिसकी अभी कुछ वक्त पहले ही शादी हुई थी, उसकी भीड़ ने मार-मारकर हत्या कर दी। हत्या तो हत्या है और इसको धर्म के आधार पर बांटकर नहीं देखना चाहिए लेकिन जब उस 24 साल के युवक की बेगम की नज़रों में देखता हूं और भीड़तंत्र के मुंह से जय श्री राम बोल, जय श्री राम बोल सुनता हूं, तो सोचता हूं कि क्या उस युवक की हत्या इसलिए भी तो नहीं कर दी गई कि उसका नाम तबरेज़ अंसारी है? क्या हालात अलग हो सकते थे अगर वह युवक मुस्लिम नहीं होता?

सवाल केवल इतना नहीं है कि उस युवक का धर्म क्या है?

यह मसला केवल भड़कने और गुस्से को काबू ना रखने तक सीमित नहीं है, क्योंकि यह कोई भीड़ द्वारा की गई पहली हत्या भी नहीं है और यह पहला मामला भी नहीं है, जहां कुछ तथाकथित हिन्दू आकर मुस्लिमों से कहे कि बोलो जय श्री राम। हकीकत तो यह है कि हम आजतक एक साफ संदेश नहीं दे पाए हैं कि अगर कोई ऐसा करेगा, तो उसकी सज़ा क्या होगी?

खामोश होकर बैठी सत्ता गोडसे को राष्ट्रभक्त मानने वाले को मेंबर ऑफ पार्लियामेंट बना रही है, तो फिर इन हत्यारों को भी कल को आकर कोई कहेगा राष्ट्र भक्त है। समय विचार विमर्श का है कि कहीं टेलीविज़न पर बढ़ रही भड़काऊ बहस और बेरोज़गारी के बढ़ते आंकड़े युवा जोश को हत्यारा और आतंकवादी तो नहीं बना रहा है, जहां कत्ल करना राष्ट्र प्रेम लगे और 7 घंटे तक पीटना एक नया रोज़गार।

संभल जाइए और संभाल लीजिये

किसी के घर को तोड़कर अपना घर कोई भी नहीं बना सकता है, तब जब उस दर्द के पीछे की कहानी इतनी दर्दनाक हो। हो सकता है जय श्री राम बोलो कहने वाले हिन्दू और हमारे संस्कारों में फर्क हो लेकिन 24 साल के उस युवक की विधवा बेगम की आंखें और उन आंखों में भरी मायूसी मुझे चीख चीखकर कह रही है कि शर्म करो तुम हिन्दू हो, क्योंकि तुम्हारे देवता के नारों ने मेरे शौहर की जान ले ली। जय श्री राम बोलने में मुझे गर्व है और हिन्दू होने पर हमें गर्व होना चाहिए कि हम इतने अच्छे संस्कारों में पल बढ़ रहे हैं लेकिन चीखती आवाज़ में रोता युवक, बेबस शरीर और दर्द भरी उसकी बेगम की आंखें मुझे यह कहने पर मजबूर कर रही हैं कि मैं शर्मिंदा हूं कि किसी हिन्दू ने तबरेज़ अंसारी की पिट पिटकर मार डाला।

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