Site icon Youth Ki Awaaz

“सत्ता की अंधभक्ति की ओर आखिर क्यों बढ़ रहे हैं देश के युवा?”

युवाओं की भक्ति

युवाओं की भक्ति

आमतौर पर किसी भी कॉलेज के बाहर बहुत सारे शॉप होते हैं, आप वहां जाकर जब स्टूडेंट्स से पूछेंगे कि आज युवाओं के सामने मुख्य समस्याएं या मुद्दे क्या हैं, जो उनके द्वारा चुने गए नेताओं को जाकर संसद में उठाना चाहिए। आप यदि दस स्टूडेंट्स से यह सवाल पूछेगें तो उनका जवाब एक जैसा ही होगा- शिक्षा का गिरता स्तर, बेरोज़गारी, बढ़ता अपराध, जातिवाद और मूलभूत समस्याएं आदि।

आपको इन्हीं के बीच कई तरह की बातें भी सुनने को मिल सकती हैं। कोई कहेगा कि धर्म के नाम पर सरकार बनाने की कोशिश होती है तो कोई जातीय समीकरण की बात करेगा। आज युवा, देशभक्त होने का दावा ज़रूर करते हैं लेकिन इन दावों की पोल तब खुल जाती है जब खबर आती है कि मुम्बई में अनुसूचित जनजाति से डॉक्टर बनने का ख्वाब लेकर निकली एक लड़की साथी डॉक्टर्स द्वारा जातिगत टिप्पणियों से आहत होकर आत्महत्या कर लेती है।

फोटो साभार: Twitter

यही नहीं, मध्यप्रदेश में गोमांस के शक में दो युवकों व उनके साथ एक महिला को भी सरेआम पीटा जाता है, उत्तर प्रदेश में ईंट भट्ठे पर काम करने वाली एक दलित लड़की का गैंगरेप कर उसको ज़िंदा जलाकर मार दिया जाता है, बिहार में एक औरत का उसके पति के सामने रेप कर दिया जाता है, गुजरात में शादी में घोड़ी चढ़ने के कारण जब दूल्हे के साथ आए बारातियों को जातिवादी लोगों द्वारा पीट दिया जाता है, तब देशभक्ति कहां चली जाती है?

युवा क्रांति सिर्फ सोशल साइट्स पर दिखती है!

संसद में इन समस्याओं के लिए कोई आवाज़ नहीं उठाता, सड़कों  पर कोई उन्हें न्याय दिलाने के लिए संघर्ष नहीं करता, क्या बस यही देशभक्ति है? या फिर आज देशभक्ति सिर्फ गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर झंडा लेकर सोशल साइट्स पर फोटो अपलोड करने तक ही सीमित रह गई है।

अनेकों समाज सुधारकों ने देश को एक बेहतर दिशा देने की कोशिश की, स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना जीवन देश के लिए कुर्बान कर दिया लेकिन युवा बस उनके जन्मदिवस और उनके निर्वाण दिवस पर उनकी फोटो डालकर उन्हें याद कर लेते हैं। सोचने की बात यह है कि क्या याद कर लेने मात्र से ही उनके सपनों का भारत बन पाएगा या आप सिर्फ उनकी फोटो पर पुष्प अर्पित करना ही देशभक्ति है?

फोटो साभार: Getty Images

भारत में जन्में हर महापुरुषों ने अपना जीवन इस देश के निर्माण में लगा दिया लेकिन यदि आज भगत सिंह, बाबासाहेब अंबेडकर, खुदीराम बोस और सर छोटूराम ज़िंदा होते तो उन्हें आज के भारत को देखकर बेहद ही दु:ख होता। महापुरुषों के सपनों का भारत बनाने के बजाय युवाओं के जोश पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है, जो आज राजनीति की भेंट चढ़ गया है और मेरे मत में तो वह सिर्फ अंधभक्ति ही है।

आज युवा वर्ग राजनीतिक पार्टियों की अंधभक्ति में डूबकर देश को एक गलत दिशा की तरफ लेकर जा रहा है। देश का युवा मुख्य समस्याओं और मुद्दों को जानता ज़रूर है लेकिन इसी अंधभक्ति के कारण नेताओं के समक्ष ऐसे मुद्दों को उठाने से परहेज़ करता है।

दिशाहीन होती युवा पीढ़ी!

आपके लिए कोई मुद्दा तब गंभीर होता है, जब वह आपसे जुड़ा हो लेकिन आप उस मुद्दे को उठाना नहीं चाहेंगे फिर तो यह शर्मनाक ही है। यदि गौहत्या के शक में किसी अनजान शख्स को पीटकर मार दिया जाए, किसी अनजान लड़की से बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी जाए, कोई दलित छात्र-छात्रा जातिगत भेदभाव से आहत होकर आत्महत्या कर ले या फिर सड़क पर किसी दलित की पिटाई की जा रही हो, तब आपकी देशभक्ति गुम हो जाती है।

युवाओं की भक्ति

युवाओं की इसी अंधभक्ति ने 2019 के चुनावों में कुछ ऐसे लोगों को संसद जाने से रोक दिया जो असल में उनकी आवाज़ संसद में उठा सकते थे। कन्हैया कुमार जो जेएनयू में विवादित घटना से निकले और युवाओं की आवाज़ बने लेकिन जनता ने बड़े पैमाने पर उन्हें वोट नहीं दिया।  ऐसे बहुत से नाम हैं जो राजनीतिक अंधभक्ति की भेंट चढ़कर संसद जाने से रह गए। आज की तारीख में बड़े पैमाने पर युवाओं का झुकाव सत्ताधारी दल की ओर है या फिर हम इसे अंधभक्ति भी कह सकते हैं, जहां राष्ट्रवाद के नाम पर सब कुछ जायज़ करार दिया जा रहा है।

इस अंधभक्ति ने युवाओं की सोचने समझने की क्षमता को खत्म कर दिया है। उन्हें शिक्षा, रोज़गार, भय मुक्त और अपराध मुक्त माहौल की जगह राजनीतिक अंधभक्ति प्रिय लग रही है। यदि युवाओं को इसी तरह अंधभक्ति रास आती रही तो यह उनके भविष्य को अंधकार में डालकर अंधभक्ति के अंनत दौर को जन्म देगी।

Exit mobile version