प्रताप चंद्र सारंगी नवगठित भाजपा सरकार में ओडिशा से सांसद चुनकर आए हैं और केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में शपथ ग्रहण कर चुके हैं। मुख्यधारा की मीडिया उनको “झोपड़ी में रहने वाला”, “साइकल चलाने वाला” और “ओडिशा का मोदी” के रूप में दिखा रही है। उनके जीवन जीने की सादगी और सरलता को मुख्यधारा और सोशल मीडिया महात्मा के रूप में पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।
ज़रूरी सवाल यह है कि सादगी और सरलता से जीवन जीना उनकी व्यक्तिगत जीवन की उपलब्धि हो सकती है मगर इससे समाज को क्या मिला है और उनको “महात्मा” के रूप में दिखाने की राजनीति क्या है? बाबा साहब अंबेडकर के जीवन पर आधारित फिल्म में बाबा साहब जब महात्मा गाँधी से मिलते हैं तो कहते हैं, “इतिहास साक्षी है कि महात्मा हवा के झोंके की तरह होते हैं जो धूल तो उड़ाते हैं मगर ठोस कुछ नहीं करते।”
कौन हैं प्रताप चंद्र सारंगी?
मौजूदा लोकसभा चुनाव में प्रताप चंद्र सारंगी ओडिशा की बालासोर लोकसभा सीट से चुनकर आए सांसद हैं और अब मौजूदा सरकार में दो मंत्रालयों में केंद्रीय राज्यमंत्री हैं। उनको ‘सूक्ष्म-लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय’ के साथ-साथ ‘पशुपालन-डेयरी’ और ‘मत्स्य पालन’ विभाग में केंद्रीय राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है।
सांसद चुने जाने से पहले प्रताप चंद्र सारंगी ओडिशा की नीलगिरी विधानसभा सीट से 2004 और 2009 में विधायक चुने जा चुके हैं। इससे पहले वह 2014 के लोकसभा चुनाव में भी खड़े हुए थे लेकिन तब उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
उन्होंने ओडिशा की बालासोर लोकसभा सीट पर बीजू जनता दल के अरबपति नेता रविंद कुमार जेना को मात्र 12, 955 वोटों से हराया है। प्रताप चंद्र ने ओडिशा के फकीर मोहन कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की है और अविवाहित हैं। वह समाज सेवा के प्रति समर्पित हैं और बचपन से ही राधाकृष्ण मठ के प्रति आस्था रखते हैं। वह साधु भी बनना चाहते थे मगर विधवा माँ की ज़िम्मेदारी होने के कारण उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो पाई।
प्रताप चंद्र सारंगी का दूसरा पक्ष जानने के लिए 1999 में जाना पड़ेगा जब केंद्र में भाजपा की अटल बिहारी सरकार के दौरान ओडिशा में ऑस्ट्रेलियाई इसाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस और उनके दो बच्चों को ज़िंदा जलाने वाली घटना हुई थी। उस समय प्रताप चंद्र सारंगी इस घटना में मुख्य आरोपी संगठन ‘बजरंग दल’ के अध्यक्ष थे।
सारंगी ने चुनाव आयोग को प्रस्तुत अपने शपथपत्र में कहा है कि उनके खिलाफ सात आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें मुख्य आरोपी दारा सिंह को पहले फांसी की सज़ा सुनाई गई फिर उस फैसले को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया है। जब सारंगी के सादे लिबास और संत के चोले को ढोना मुश्किल हो रहा है फिर तमाम मीडिया समूह किस राजनीति के तहत उनको “महात्मा” के रूप में प्रोजेक्ट कर रही है?
गुणगान के राजनीतिक निहितार्थ
राजनीति में हर चाल के कुछ निहितार्थ होते हैं, जिनमें दूरगामी सोच को छुपाकर रखा जाता है। भाजपा के लिए 2014 और मौजूदा चुनाव में ओडिशा वह दुर्ग है जिसे भेदने में वह बुरी तरीके से नाकामयाब रही है।
भले ही बीजू जनता दल के नवीन पटनायक ओडिशा में पांचवी बार पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने जा रहे हैं लेकिन ओडिशा के किले को भेदने के लिए भाजपा को सारंगी जैसे चेहरे के रूप में वह नायक मिल गया है, जिसकी छवि के सहारे ओडिशा की जनता को नवीन बाबू से विमुख किया जा सकता है।
सारंगी को “ओडिशा का मोदी” भी कहा जा रहा है। साल 2002 के बाद जिस कदर हिंदुत्व के प्रतीक के तौर पर मोदी को हीरो बनाया गया, अब उसी तरह से सारंगी को अल्पसंख्यक विरोधी छवि का नायक बनाकर वोटों की राजनीति की जाएगी।
इन सभी बातों के बीच हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मौजूदा समय में सोशल मीडिया पर किसी भी व्यक्ति की एक विशेष बात को आधार बनाकर उसे किसी फायदे के लिए एक प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। हमें यह समझने की ज़रूरत है कि सांरगी के गरीब और महात्मा होने का मतलब कुछ और ही है, जिसका इसका उपयोग ओडिशा की राजनीति में किया जाएगा।