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क्या हम पर्यावरण को दूषित नहीं करने का संकल्प लेंगे?

प्रोटेस्ट

प्रोटेस्ट

मौजूदा वक्त में पूरे वर्ल्ड में प्रदूषण एक गंभीर समस्या बनचुका है। यह जल, वायु एवं ध्वनि प्रदूषण के रूप में हमें प्रभावित कर रहा है। प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण औद्योगिकीकरण व हमारी जागरूकता की कमी है।

वायु प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार व जनता को पेड़ों के संरक्षण के लिए संयुक्त रूप से आगे आना होगा। आज की तारीख में हर जगह धड़ल्ले से पेड़ों की कटाई की जा रही है, जिसपर तुरन्त रोक लगने की ज़रूरत है। पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने के साथ-साथ कारखानों एवं वाहनों में अपशिस्ट शोधक यंत्र अनिवार्य होना चाहिए।

जल प्रदूषण को रोकने के लिए कारखाने व बस्तियों के गंदे पानी को फिल्टर करना होगा। यह सीधे प्राकृतिक स्रोतों या भूगर्भ में नहीं जाना चाहिए। इस संदर्भ में कूड़ा-कचरा प्रबंधन बहुत ज़रूरी है। कई बार लोग नहर व नदियों में मरे जानवर आदि डाल देते हैं जो कि एक गंभीर अपराध है।

ध्वनि प्रदूषण पर विचार करना होगा

ध्वनि प्रदूषण के लिए हर जगह ध्वनि तरंगों को साइलेंसर से रोकने और लाउड स्पीकर व डीजे आदि के प्रयोग पर रोक लगाने की ज़रूरत है।एक सबसे बड़ी समस्या मानसिक प्रदूषण है, जो बहुत तेज़ी से विकसित हो रही है। जो सिर्फ इसमें लिप्त रहती है कि किसी कानून को तोड़कर कैसे बचें।

फोटो साभार: Getty Images

अतः किसी समस्या का समाधान सिर्फ सरकार ही है, यह कहना अनुचित है। हम सब स्वयं भी एक समस्या बनते जा रहे हैं। आज सिर्फ वायु, ध्वनि और जल प्रदूषण तक ही चीज़ों को सीमित रखने से नहीं होगा, हमें शिक्षा व्यवस्था में जो प्रदूषण है उसपर भी बात करनी होगी। आज की तारीख में अवैध तरीके से शिक्षा जगत में गलत कार्य होते हैं, जो मानसिक प्रदूषण का नतीजा है।

तालाबों की स्थिथियों में सुधार लानी होगी

तालाबों में नहरों से जल भरने के साथ-साथ किनारों पर अधिकतम पेड़ लगाने की ज़रूरत है। नदियों, नहरों व सड़क और रेल की पटरी तथा बंजर भूमि पर पेड़ लगाना चाहिए। मुख्य रूप से पीपल, बरगद और नीम जैसे अधिक ऑक्सीजन प्रदान करने वाले पेड़ों को संरक्षित किया जाए।

किसान कूड़ा-करकट व पुआल आदि जला देते हैं जबकि इसके खाद बनाकर पैदावार बढ़ सकती है। अन्य देशों की अपेक्षा भारत में स्थिति कुछ ठीक है किन्तु यदि हम प्रकृति की उपेक्षा करते रहे तो जल्द ही इसके और भी दुष्परिणाम नज़र आएंगे।

सेक्युलरिज़्म की नीति हमें सनातन संस्कृति से दूर करती जा रही है। जबकि सनातन संस्कृति एक श्रेष्ठ जीवन पद्धति है। सनातन संस्कृति में यज्ञ के पश्चात हवन किया जाता है, जिसके निकलने वाला धुंआ वायुमंडल को शुद्ध करता है।

निर्मल वर्षा की संभावना बढ़ती है। हमें निजी जीवन को भौतिक साधनों पर निर्भरता कम करने पर ज़ोर देना होगा। प्रकृति के नज़दीक रहकर बगैर एसी और फ्रिज के भी अधिक स्वस्थ रह सकते हैं।

अतः संछिप्त रूप में सबको कुछ संकल्प लेना होगा। हम कूड़ा निस्तारण मनमाने तरीके से नहीं करेंगे, जल स्रोतों को गंदा नहीं करेंगे, पेड़ नहीं काटेंगे और कम-से-कम 50 पेड़ तैयार करेंगे। इन चीज़ों को करने के लिए अन्य लोगों को भी हमें प्रेरित करना होगा।

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