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“लोकसभा में अधिक महिलाओं का चुनकर आना आधी आबादी के लिए सुखद है”

लोकसभा चुनाव में चुनकर संसद पहुंचने वाली महिलाएं

लोकसभा चुनाव में चुनकर संसद पहुंचने वाली महिलाएं

दो दशकों से राज्यसभा में पास महिला आरक्षण विधेयक, लोकसभा में पास होने के लिए राजनीतिक दलों की इच्छाशक्ति की बाट जोह रहा है। पंचायत चुनावों में महिलाओं के आरक्षण के बाद अपनी राजनीतिक योग्यता सिद्ध करने या कुछ राजनीतिक दलों के टिकट बांटने में महिलाओं को वरीयता देने के बाद मौजूदा गठित लोकसभा में जितनी महिलाएं जीत कर आई हैं, वह उम्मीद और उत्साह दोनों बढ़ा रहा है।

कुछ हलकों में यह तक कहा जाने लगा है, राजतिलक की करो तैयारी आगे बढ़ रही हैं महिलाएं हमारी।” मौजूदा लोकसभा में अब तक सबसे ज़्यादा महिला सांसद चुनकर आई हैं, हांलाकि महिला सांसदों का आंकड़ा 33% से कम ही है।

आंकड़ों पर एक नज़र

मौजूदा लोकसभा में जीतकर आईं महिला सांसदों ने इतना तो सिद्ध कर ही दिया है कि महिलाओं के जीतने का चांस कम होता है, क्योंकि इस बार लोकसभा में कुल 78 महिलाएं हैं, पिछली लोकसभा में कुल 61 महिलाएं चुनकर आई थीं जो बाद में उप चुनावों में बढ़कर 65 हो गई थी। जो 2009 में 59, 2004 में 45 और 1999  में 49 थी।

महिला सांसदों की संख्यां में कैसे हो रही है बढ़ोतरी

लंबे वक्त के बाद राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक पास होने के बाद भी लोकसभा में पास होने के लिए अटका पड़ा है। ऐसे हालात में भी महिलाओं के लोकसभा में पहुचने का आंकड़ा धीरे-धीरे कैसे बढ़ रहा है? महिलाओं की राजनीति में भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से काम करने वाली संस्थाओं ने राजनीतिक दलों से महिलाओं को ज़्यादा टिकट देने की मांग की, जिसके लिए तमाम मुख्यमंत्रियों से पत्र के माध्यम से संवाद किया गया।

फोटो साभार: Getty Images

अधिक रोचक बात यह है कि कई राज्यों की लोकसभा सीटों पर महिला मतदाताओं का प्रतिशत पुरुषों से अधिक है, इसके आंकड़े सामने आए हैं। इन आंकड़ों में पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार और झारखंड का नाम सबसे आगे था। हालांकि मौजूदा लोकसभा चुनाव में एक पैर्टन यह भी देखने को मिला है कि जिस लोकसभा सीट पर महिलाओं ने रिकॉर्ड मतदान किया है, वहां महिलाएं अपनी जीत दर्ज़ नहीं कर पाई हैं, उदाहरण के लिए कन्नौज से डिपंल यादव और रामपुर से जया प्रदा चुनाव जीतने में सफल नहीं हो पाईं।

बीजेडी ने 41 फीसदी और टीएमसी ने 33 फीसदी महिलाओं को टिकट दिया। बीजेपी और काँग्रेस ने भी महिलाओं को संसद पहुंचाया लेकिन टीएमसी और बीजेडी का नाम इसलिए अहम है क्योंकि बंगाल और ओडिशा से महिलाओं की भागीदारी इन पार्टियों के चलते बढ़ गई

इसके पहले भी ममता बनर्जी और नवीव पटनायक इस तरह की कोशिश अपने राज्यों में अन्य चुनावों में कर चुके थे। इसलिए उन्हें महिलाओं को ज्य़ादा टिकट देने के पक्ष में अधिक सोचना नहीं पड़ा। बिहार और झारखंड में महिलाओं के पक्ष में कोई दूरगामी निणर्य नहीं लिया गया। शेष राज्यों में संतोषजनक परिणाम कहे जा सकते हैं।

ओडिशा से 8 महिला सांसद

ओडिशा में बीजेडी ने 21 सीटों पर 7 महिलाओं को चुनाव लड़ने का मौका दिया, जिनमें 6 महिलाओं ने जीत दर्ज़ की। ओडिशा के लिए अच्छी बात यह रही कि यहां बीजेपी ने भी दो महिला सांसद दिए। बीजेडी से विजेता महिला सांसदों में अस्का सीट से प्रमिला बिसोयी, भद्रक से मंजूलता मंडल, जगतसिंहपुर से राजश्री मलिक, जयपुर से शर्मिष्ठा सेठी, क्योंझर से चंद्रमणि मुर्मू और कोरापुट से कौशल्या हिकाका के नाम शामिल हैं।

ओडिशा से बीजेपी ने भी दो सांसद दिए हैं जिनमें भुवनेश्वर सीट से अपराजिता सारंगी और बोलनगीर से संगीता कुमारी सिंह देव के नाम शामिल हैं।

महिला सांसद देने में बंगाल अव्वल

बंगाल में कुल 42 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें 14 महिलाएं इस बार जीत कर संसद पहुंची हैं। इनमें 11 टीएमसी से और 3 बीजेपी से हैं। टीएमसी ने बंगाल में 17 महिलाओं को टिकट दिया जिनमें 11 को जीत हासिल हुई है। इसके अलावा तीन महिला सांसद बीजेपी से हैं।

टीएमसी से जिन महिलाओं ने जीत दर्ज़ की उनमें बारासात सीट से काकोली घोषदस्तीदार, आरामबाग से अपरूपा पोद्दार, बर्धमान दुर्गापुर से ममताज संघमित्रा, बसीरहाट से नुसरत जहां रूही, बीरभूम से शताब्दी रॉय, दमदम से सौगत रॉय, जॉयनगर से प्रतिमा मंडल, कोलकाता दक्षिण से माला रॉय, कृष्णानगर से महुआ मोइत्रा और उलुबेरिया से सजदा अहमद के नाम शामिल हैं।

बंगाल में इसके अलावा बीजेपी ने भी अपने तीन सांसद बनाए। इनमें हुगली से लॉकेट चटर्जी, मालदा दक्षिण से श्रीरूप मित्र चौधरी और रायगंज सीट से देबाश्री चौधरी।

यूपी से 10 महिला सांसद

यूपी में 80 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें 10 महिलाएं सांसद बनी हैं। इनमें 9 बीजेपी से और एक नाम सोनिया गाँधी का रायबरेली से है। अमेठी से स्मृति इरानी, इलाहाबाद से रीता बहुगुणा जोशी, बदायूं से संघमित्रा मौर्य, धौरहरा से रेखा वर्मा, लालगंज से संगीता आज़ाद, मथुरा से हेमा मालिनी, फूलपुर से केसरी देवी पाटील, सुल्तानपुर से मेनका गाँधी और फतेहपुर से साध्वी निरंजन ज्योति विजेताओं में शामिल हैं।

मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा। फोटो साभार: Getty Images

इसके अलावा आंध्र प्रदेश में अराकू से गुड्डेती माधवी, अमलापुरम से चिंता अनुरुद्ध, अनाकापल्ली से बीवी सत्यवती और काकीनाड से वंगा गीता सांसद बनी हैं। झारखंड के कोडरमा से अन्नपूर्णा देवी और सिंहभूम से गीता कोड़ा सांसद बनी हैं, एक बीजेपी और दूसरी महिला सांसद काँग्रेस से हैं।

पंजाब में बठिंडा से शिरोमणि अकाली दल की हरसिमरत कौर और पटियाला से काँग्रेस की प्रीणित कौर जीती हैं। उधर तमिलनाडु में करूर से काँग्रेस की ज्योतिमणि एस, दक्षिण चेन्नई से डीएमके की सुमति और थूट्टूकुडी से डीएमके की कनिमोझी जीती हैं।

राजस्थान में भरतपुर से बीजेपी प्रत्याशी रंजीता कोली, दौसा से बीजेपी प्रत्याशी जसकौर मीणा और राजसमंद से बीजेपी की दीया कुमारी ने जीत हासिल की है। छत्तीसगढ़ में कोरबा से काँग्रेस की ज्योत्स्ना चरणदास महंत, रायगढ़ में बीजेपी से गोमती साई और सरगुजा में बीजेपी से रेणुका सिंह चुनाव जीती हैं। बिहार में शिवहर से बीजेपी की रमा देवी, सीवान में जेडीयू से कविता सिंह और वैशाली में एलजेपी से वीणा देवी जीती हैं।

मध्य प्रदेश में भींड से बीजेपी की संध्या राय, भोपाल से बीजेपी की साध्वी प्रज्ञा सिंह, शहडोल से बीजेपी की हिमाद्री सिंह और सिधी में बीजेपी की रीति पाठक ने जीत हासिल की।

गुजरात में भावनगर से बीजेपी की भारती शियाल, जामनगर से बीजेपी की पूनमबेन माडम, महेसाना में बीजेपी से शारदाबेन पटेल, सूरत में बीजेपी की दर्शन जरदोस और वडोदरा में बीजेपी की रंजनाबेन भट्ट ने जीत दर्ज़ की। महाराष्ट्र में बारामती से काँग्रेस की सुप्रिया सुले, डिंडोरी से बीजेपी की भारती पवार, मुंबई नॉर्थ सेंट्रल में बीजेपी की पूनम महाजन, नंदूरबार से बीजेपी की हिना विजयकुमार और रावेर में बीजेपी की रक्षा खड़से जीती हैं।

संघ शासित प्रदेशों में कुल 13 सीटें हैं, जिनमें दो महिला उम्मीदवारों ने जीत दर्ज़ की। इनमें एक चंडीगढ़ से किरण खेर और दूसरी नई दिल्ली से बीजेपी की ही मीनाक्षी लेखी ने जीत हासिल की है।

 क्या यह बदलाव का संकेत है

लोकसभा में सबसे अधिक महिलाओं का चुनकर आना आधी आबादी के लिए सुखद ज़रूर है मगर अधिक महिला सांसदों की संख्यां कोई बहुत बड़ा आमूल-चूल परिवर्तन की योद्धा साबित हो, यह पुर्वानुमान करना अभी जल्दबाज़ी होगी।

इसकी मुख्य वजह यह है कि इनमें से अधिकांश या तो किसी राजनीतिक परिवार से आती हैं या वह किसी बाहुबली की पत्नी हैं,समान्य परिवार और गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि की महिलाएं कम हैं, इसको बड़ा बदलाव कैसे कह सकते है? हालांकि कुछ युवा महिला सांसद भी हैं, जिनसे बदलाव के संकेत की उम्मीद की जा सकती है।

यह ज़रूर है कि इन महिलाओं को संसद की बहसों और नीति-निमार्ण की प्रक्रिया में भागीदारी से आधी आबादी का वह पक्ष ज़रूर मज़बूत होगा, जिनकी उम्मीद महिला आरक्षण बिल के पास कराने वाले शुभचिंतक लोगों को है। ससंद में महिलाओं के पक्ष का होना आधी आबादी के लिए अधिक ज़रूरी बात है।

स्मृति ईरानी। फोटो साभार: Getty Images

अगर तमाम महिला सासंद महिला अस्मिता के सवाल पर पार्टियों की सीमा रेखा के बाहर निकलकर एकजुट हो सके, तो संसद के अंदर तो महिलाओं की गरिमा को सम्मान मिलने के साथ-साथ संसद के बाहर संगठित और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं का हौसला भी बुलंद होगा, उनको नैतिक बल मिलेगा।

बशर्ते इन चुनी हुई महिला सांसदों के मध्य आधी आबादी की स्व एकता का कोई सूत्र कायम हो सके और महिलाओं की अस्मिता के साथ खिड़वाल के तमाम कृत्यों पर मुखर होकर स्वयं को अभिव्यक्त कर सके। बस चुनी हुई महिला सांसदों को यह सनद रहे कि रिकॉर्ड महिलाओं का लोकसभा में चुनकर आना, उम्मीद तो जगाता है।

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