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“मेरी सोसाइटी की औरतों ने साबित किया अपार्टमेंट कल्चर में ज़िंदा है इंसानियत”

शाम के 7 बजे जिस तरह आम सोसाइटी का माहौल होता है, वही माहौल था। बच्चे कैंपस में खेल रहे थे, बड़े बुज़ुर्ग और कुछ मम्मियां छोटे बच्चों को घुमा रही थीं। कुछ औरतें आपस में बात कर रही थीं। इधर कुछ गाड़ियां मेन गेट से आ रही थीं। शायद ऑफिस वाले घर की तरफ या शनिवार का समय था तो कुछ घुमने-फिरने दोस्त या रिश्तेदार आ जा रहे थे। गार्ड की ड्यूटी शिफ्ट हो रही थी। सुबह वाले गार्ड निकल रहे थे और शाम वाले अपनी ड्यूटी पर आ रहे थे।

हर शहर जहां सोसाइटी या अपार्टमेंट कल्चर होता है, वहां प्रायः यही माहौल होता है। उस शाम नोएडा एक्सटेंशन के एक सोसाइटी का नज़ारा यही था। सब कुछ सामान्य ही चल रहा था और रात के 8 बज गए थे। कुछ लोग अपने फ्लैट में चले गए और नाइट गार्ड अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद थे।

बच्चे भी कम रह गए और कुछ औरतें अभी भी बेंच पर बैठकर बातें कर रही थीं। दो-तीन नए चेहरे दिखाई दिए। हर फ्लैट टावर में एक रिसेप्शन है, जहां गार्ड नए चेहरे को देखकर रोकता है और यह उसका रोज़ का काम है। किसी का रिश्तेदार हो या नया दूधवाला या फिर अखबार वाला। वह सबसे पूछता है, एंट्री लेता है इसलिए उन नए चेहरों को देखकर भी उसने वही किया।

वह लड़के चिल्लाकर बहस कर रहे थे, तभी पीछे से एक तेज़ तर्रार आदमी ने आकर उस गार्ड को कस कर थप्पड़ लगाया। जिसकी आवाज़ बाहर बेंच पर बैठी उन महिलाओं को भी सुनाई दी और उस आदमी ने धमकी भी दी कि आइंदा उसने कभी उसके आदमियों को रोका तो वह जान से मार देगा।

वह आदमी अपने उन आदमियों के साथ चला गया। सड़क के उस पार 12-13 आदमी खड़े थे। कुछ बाइक सवार आए और वहीं रहे। वहां बेंच पर बैठी उन महिलाओं ने सब देखा लेकिन कुछ कहा नहीं और धीरे-धीरे सब अपने घरों के अदंर चले गए। 

अगला दिन और वे महिलाएं

अगले दिन रविवार की शाम को बच्चे खेल रहे थे। सब कुछ सामान्य था और गार्ड अपनी ड्यूटी शिफ्ट कर रहे थे मगर जिस गार्ड को धमकी मिली थी वह बेहद डरा हुआ था। वह अपनी ड्यूटी कहीं और लगाने की गुज़ारिश कर रहा था।

20 वर्षीया वह गार्ड सभी का चहेता है। वह दिन में पढ़ाई करता है और रात को ड्यूटी। उसकी कहानी सभी को मालूम है। शिफ्ट इंचार्ज ने उसकी ड्यूटी चेंज कर दी फिर सब सामान्य हो गया मगर जो सामान्य नहीं हुआ था, वह थी बेंच पर बैठी वे महिलाएं, जिन्होंने सबकुछ अपनी आंखों से देखा था।

उन औरतों ने बाकी औरतों को नीचे बुलाया और मीटिंग की,

हमें वही गार्ड चाहिए, क्योंकि वह अपना काम ईमानदारी से करता है। वह सुरक्षित है, तो हम सुरक्षित हैं। जिसने गार्ड को थप्पड़ मारा वह सोसाइटी से बाहर जाए। चाहे वह कितना भी पैसा वाला क्यों ना हो।

20-30 औरतों ने गार्ड को सुरक्षा देने के लिए कमर कस ली थी, जिनमें से अधिकतर हाउस वाइफ थीं और हर उम्र की थीं। उस आदमी को बुलाया, जिसने थप्पड़ मारा लेकिन उसने फोन नहीं उठाया फिर 100 नंबर डॉयल कर पुलिस बुलाई गई।

दरवाज़ा का डोर बेल 15-20 मिनट बजाया गया मगर उस आदमी ने नहीं खोला। उस आदमी की और भी शिकायतें सामने आईं (सभी का ज़िक्र करना यहां मुश्किल है) पुलिस आकर चली गई।

सभी महिलाओं ने आपस में निर्णय लिया कि मामला इतना आसान नहीं है। लिखित कर्रवाई करनी होगी। सभी ने लिखित तौर पर अपने सिग्नेचर के साथ थाने में उसी रात 11 बजे जाकर शिकायत दर्ज़ कराई, 

हमारा गार्ड सुरक्षित नहीं है और उसकी सुरक्षा हमारी सुरक्षा है। इस बात को ध्यान में रखते हुए मकान खाली कराया जाए।

रात के 12 बज चुके थे कि तभी अगले दिन उस फ्लैट के मालिक को मिलने के लिए साढ़े दस बजे सुबह का टाइम दिया गया। सभी महिलाओं ने बच्चों को स्कूल भेजा, पति को ऑफिस और घर का काम निपटाया और जो वर्किंग वुमन थीं, उन्होंने अपना शुभकामना संदेश भेजा कि हम सब साथ हैं, एक हाफ डे की छुट्टी कर आ गई।

बिना गार्ड के अपार्टमेंट की कल्पना?

मकान मालिक को सारी स्थिति बताई गई। औरतों ने मीटिंग की और कहा,

लिखित तौर पर दिया जाए कि कब खाली करवा रहे हैं।

उसने पहले आना-कानी की मगर बाद में दो-तीन घंटे की बातचीत के बाद तैयार हो गया। सोसाइटी मैनेजमेंट औरतों के साथ था। सब एक दूसरे का हालचाल पूछ रहे थे कि वह आदमी गया या नहीं। अगली शाम बहुत खुशनुमा थी, उन औरतों के लिए जिन्होंने इंसानियत को चुना। सभी गले मिल रही थी कि शायद पहले एक-दूसरे को अच्छे से जानती भी नहीं थीं मगर इस घटना के बाद सब अब हर शाम मिलती हैं। बातें करती हैं। वह गार्ड अब इस परिवार का हिस्सा है। वह भी सबका हालचाल पूछता है। महिलाएं उसे भरोसा दिलाती हैं, डरना नहीं है, लड़ना है, सब साथ हैं।

यह घटना इसलिए साझा कर रही हूं क्योंकि गवाह और भागीदार मैं भी थी। अपार्टमेंट कल्चर ने इंसानियत कल्चर को दबाया नहीं है, वह बचा है। गार्ड अब इस अपार्टमेंट कल्चर का हिस्सा बन चुके हैं और कोई भी शहर हो खासतौर पर उभरता शहर वहां बिना गार्ड के अपार्टमेंट की कल्पना नहीं की जा सकती है। उनके साथ आए दिन कोई-ना -कोई घटना हम सुनते हैं।

मामला ज़्यादा उलझता है, तो गार्ड को ही निकाल दिया जाता है। ये बिहार, यू.पी, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बंगाल, ओडिशा और झारखंड इन्हीं राज्यों से अक्सर आते हैं। सामान्य तौर पर दस हज़ार मासिक आय के अलावा इन्हें कोई सुरक्षा नहीं मिलती। गार्ड आते हैं और चले जाते हैं। सबकी सुरक्षा करने वालों को जब खुद की सुरक्षा महसूस हो तो आम नागरिक ही फिर कुछ करता है।

सभी महिलाएं धन्यवाद की पात्र हैं, जिनका उस वक्त यह अपना फैसला था कि गार्ड को कैसे गार्ड करना है? मुझे खुशी है, जहां इस इलाके में मुझे सालभर रहने को हुए हैं, वहां समय भले ही सबके पास कम है लेकिन इंसानियत की कमी नहीं है। आपके यहां यह कल्चर बचा है क्या?

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