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ईसाई धर्म मानने वाले आदिवासियों को आरक्षण का फायदा न मिले

Mother Marry in Tribal uniform in Singhpur Catholic Church at Ranchi.

देश मे आदिवासियों का ईसाई धर्म अपनाने का सिलसिला अंग्रेजों के समय ईसाई मिशनरियों के भारत आगमन के समय से शुरू हुआ था जो अबतक जारी है। ईसाई संस्कृति, धर्म का विरोध भी उसी समय से आदिवासियों द्वारा शुरू हो गया था चाहे वो बिरसा मुंडा या इंजी.कार्तिक उराँव(गुमला से काँग्रेस के लोकसभा संसद थे), तब से अबतक ईसाई बन चुके आदिवासियों का विरोध जारी है। संविधान के अनुच्छेद 342 मे एक जगह लिखा है Tribal may profess any religion, इस कारण से ईसाई बन जुके आदिवासी खुद को ST होने का दावा करते हैं परंतु अनुसूचित जनजाति होने के लिए कुछ योग्यताओं(Primitive Traits,Geographical isolation,Distinct culture,Shy of contact with community at large,Economically backward)भी हैं,इसमें से ये ईसाई बनचुके लोग संस्कृति का पालन नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि ईसाई धर्म अपनाते ही इन्हें अपनी संस्कृति छोड़नी पड़ती है इनका शादी विवाह का तरीका व अन्य रिवाज बदल जाते हैं, ये दोनों ही चीजें एक दूसरे को Contradict करते हैं। देश मे आदिवासियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति बहुत खराब है,44.8% आदिवासी BPL है Socio Economic and Caste census-2011 के अनुसार, अगर हम राज्यों के अलग-अलग डाटा देखें तो आदिवासी 50% से ज्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहें हैं। हमें यह ध्यान रखना होगा ताकि आरक्षण का फायदा गरीब आदिवासियों तक पहुंच सके। हर साल सरकार नये जातियों को ST वर्ग मे जोड़ती जा रही है जिससे ST वर्ग मे लोड बड़ता जा रहा है और ST वर्ग से निकासी हो नहीं पा रहा है। ईसाई बन चुके आदिवासियों को ST Category से बाहर करने एक प्रयास इंजी कार्तिक उराँव जी द्वारा 1967, ST amendment bill लाया गया जब वे लोकसभा संसद थे ,परन्तु उस समय मंत्रिमंडल ये प्रस्ताव ये कहकर निरस्त कर दिया माना कि ईसाई बन चुके आदिवासियों ने तरक्की की है परन्तु उत्तर-पूर्व के पहाड़ी इलाकों की आदिवासियों की स्थिति सही नहीं है। तब से अब तक हालात काफी बदल चुके हैं हमे प्रयास करना चाहिए ताकि लोकसभा या विधानसभा मे सरकार ईसाइयों को ST Category से बाहर करने के लिये बिल लाए। निम्नलिखित कारणों से ईसाई बन चुके आदिवासियों को ST Category से बाहर कर OBC category मे शामिल कर देना चाहिए-ः (1) संस्कृति-आदिवासियों की संस्कृति ईसाईयों से भिन्न है, ईसाईयों का शादी-विवाह का तरीका व अन्य रिवाज अलग हैं। (2) दोहरा लाभ-आदिवासी ईसाई बनते ही अल्पसंख्यक भी बन जातें हैं जिससे इन्हें सरकार की तरफ से विभिन्न योजनाओं का फायदा मिलता है जैसे- छात्रवृति,MANF,PM 15 point program,padho padhao तथा अल्पसंख्यक आयोग के सदस्यों के रूप मे भी व निजी क्षेत्र मे अल्पसंख्यकों(ईसाई मिशनरियों) द्वारा स्थापित school, college- St.stephen’s college,XISS Ranchi , मे आरक्षण। RTE Act 2009 के अनुसार सरकार ने ST/SC को निजी स्कूलों मे आरक्षण का 25% प्रावधान किया है। परन्तु मिसनरियो के स्कूल ने ST/SC को आरक्षण देने से ये कहते हुए मना कर दिया है कि अनुच्छेद 30 के अनुसार हम ST/SC को आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं।
मतलब ईसाई मिसनरी ST/SC के शिक्षा स्तर को बड़ाने मे कोई दिलचस्पी नहीं रखते हैं।
जबकि ये अपने इसाईयों को 50% आरक्षण अपने स्कूल मे देतें हैं।  

(3) धार्मिक कट्टरता- कट्टरता समाज के लिए घातक है, ईसाई अपने धर्म और लोगों मे इतने उलझे हुए हैं कि इन्हें सामान्य आदिवासियों की शायद ही परवाह है, ना ही ज्यादातर ईसाई बन जुके आदिवासी,आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए सामने आते हैं ।इन्हें बस आरक्षण का फायदा उठाना आता है। (4)भेदभाव पूर्वक व्यवहार- जो आदिवासी ईसाई बन चुके हैं, अब अपनी ही जाति के सामान्य आदिवासी को नीच मानते हैं उनसे ये लोग शादी-विवाह का सम्बंध नहीं बनाते। (5) यदि SC Category का कोई व्यक्ति ईसाई बनता है तो उसका आरक्षण समाप्त हो जाता है- अनुसूचित जाति को हिंदू, सिख तथा बौद्ध धर्म ही स्वीकार करने का अधिकार है, यदि वह इनके अलावा कोई अन्य धर्म स्वीकार करता है तो उसका जाति प्रमाण पत्र निरष्त हो जाता है और  असम में, सरकार ने कई Tea Tribes (मुंडा, संथाल, उर्रांव आदि) को अनुसूची जनजाति का दर्जा नहीं दिया है क्योंकि वे अनुसूची जनजाति के लिए उल्लिखित मानदंडों का पालन कर रहे हैं।
तो सवाल उठता है ऐसी नियम इसाई बन चुके आदिवासियों के लिये क्यों नहीं है?

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