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कमीशन से है दुनियादारी

दलाली या रिश्वतखोरी हो या फिर हरामखोरी ही क्यों न हो, जांच कमीशन ऐसे हर पाप छिपा सकता है। दंगा हो गया, सरकार ने कमीशन बैठा दिया। घोटाला हुआ, कमीशन बैठा दिया। रेप हुआ या हत्या हुई – कमीशन बैठा दिया। कमीशन बैठते ही पाप और जनता दोनों अपनी – अपनी जगह बैठ जाते हैं। जहां कमीशन नहीं होता, वहां पिछली सरकार का पाप होता है। सन् 1849 में विलियम हेनरी स्लीमन लिखते है कि अवधी नवाबों के जमाने में कोई अपराधी पहले तो पकड़ा ही न जाता क्योंकि पकड़ने वाले उससे मोटा कमीशन में लेते थे। कभी पकड़ा भी जाता तो कमीशन देकर छूट जाता। आज भी कौन पकड़ा जाता है ? घर में लूट होती है, थाने में कमीशन सेट होता है। व्यापारी ट्रांसफॉर्मर बनाता है, लेकिन कीमत तभी मिलती है, जब कमीशन एक्सईएन साहब के हाथ में पहुंच जाता है। गलत है कि बिजली कोयले पानी से पैदा होती है । बगैर कमीशन के तो बिजली का तार भी नहीं खींच सकता।

कुछ लोग दलालों या घुसखोरों को सभ्य समाज की जोंक मानते हैं लेकिन कमीशनखोर उन्हें ऐसा कुछ नहीं मानते। उनके लिए कमीशन देने या दिलाने वाला विष्णु का मोहिनीरूप है। वे हमें सिखाते हैं कि अमृत सिर्फ कमीशन है जिसे हम दलाल को ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए देते हैं, जिसका हिस्सा आरटीओ के पास बगैर किसी जांच – पड़ताल के इस लाइसेंस पर साइन करने के एवज में पहुंच जाता है । इसी ने सबके हित बिना थूक लगाए चिपका रखे हैं। चिटके टायरों पर सत्तर सवारी लेकर बस यमुना एक्सप्रेस वे पर भागी जा रही है तो उसे डीजल नहीं धकेल रहा है। उसकी टंकी में कमीशन भरा है। टायर फट जाता है, बस नाले में गिरती है, लोग मर जाते हैं। टंकी से बहकर कमीशन लाशों में फैल जाता है। जो कमीशन नहीं देगा , उसे मुआवजा नहीं मिलेगा। अकाल मृत्यु दुखद है पर अकाल कमीशन तो सुखद ही सुखद है।  

 

इंसान को कमीशनबाज बनाने का काम सबसे पहले धर्म ने किया होगा। धर्म ने ही कुछ ले – देकर पापी को ईश्वर का कृपा-पात्र बनाने का सिलसिला चालू किया। इंसान ने देखा कि जब ऊपर वाले को कोई समस्या नहीं है तो वही क्यों सब्र किए बैठा रहे? है तो वह नकलची बंदर ही। अमेरिका चांद पर जाता हैं तो हम भी जाएंगे, भले अमेरिका जितनी आबादी हमारे यहां भूखी सोए नंगी टहले। जंगी जहाज खरीदते हैं क्योंकि उसमें कमीशन बाकी चीजों से कहीं मोटा है।

कमीशनबाज ईश्वर का ही प्रतिरूप है और वह शिक्षा से लेकर बरिच्छा तक में विराजमान है। जो लोग कमीशन में विश्वास नहीं रखते, वे ईश्वर नहीं हो सकते। इसीलिए उन्हें बार – बार भूख लगती हैं। अगर वे कमीशन खाते तो दाल- रोटी खाकर मिट जाने वाली तुच्छ भूख से ऊपर जा चुके होते। अगर आप औरों की किस्मतें लिखते हों तो आपका पेट दाल – रोटी से भरेगा क्या?

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