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तस्वीरों वाली श्रद्धांजलि अब और नहीं…

आज देश आज़ाद की जयंती मना रहा है उसकी फ़ोटो लगाकर श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं सोचा मैं भी थोड़ी श्रद्धांजलि अर्पित करूँ…
थोड़ा बहुत अक्षरों का ज्ञान है
सो तस्वीरों वाली श्रद्धांजलि से ज्यादा बेहतर किताबों वाली श्रद्धांजलि में विश्वास रखता हूँ ।
फ़िर वो भगत की जयंती हो आजाद की या गाँधी की
इनके बारे में पढ़ने से प्रेरणा मिलती है
न कि सिर्फ़ और सिर्फ़ तस्वीरों वाली श्रद्धांजलि से

न जाने क्यों ये अभी विगत समय में एक ट्रेंड सा बन गया है कि किसी महान व्यक्ति की जयंती और पुण्यतिथि आई नहीं कि आज के नेता और उनके सभी समर्थको द्वारा अपने फ़ोटो के साथ उनकी तस्वीर लगा श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है और तो और ये ऐसे लोग होते हैं जो सिर्फ़ उस व्यक्ति के बारे में उतना ही जानते हैं जितना कि उनके नाम और कुछ एक घटनाओं के बारे में कभी व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में पढ़े हो या चंद पंक्तियाँ बस पढ़ी हो उनके बारे में किसी की लिखी हुई ।

और तो और विडंबना तब हो जाती है जब सदैव से साम्प्रदायिकता का समर्थन करने वाला नेता भी अपने निजी लाभ या व्यक्तित्व को अच्छा दिखाने के लिए ऐसे नेताओ की तस्वीर के साथ उन्हें अपना आदर्श बना लेते हैं जो कभी सम्प्रदायिकता के सर्मथन में नहीं रहे । कहने का तात्पर्य ये है कि ऐसे तस्वीरों की राजनीति करने वाले लोगों को ये भी नहीं पता होता कि कौन सा नेता किस विचारधारा का था और वह किस तरह की सोच से समाज के विकास की बात कहता था ।

मैं इस तस्वीर वाली राजनीति का विरोध नहीं करता बस ये कहना चाहता हूँ कि हमें अपने आदर्शों के चयन के साथ साथ उन्हें पढ़ना भी होगा ताकि उनके जीवन और उनके विचारों से प्रेरणा ले सकें और भारत को जगद्गुरु बनाने की ओर अग्रसर कर सकें ।

क्योंकि बिना विचारों के कोई भी क्रांति (बदलाव)नहीं आती
और विचारों के लिए पढ़ना तो होगा ।

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