दित्वारिया त्यौहार आदिवासी पूर्वज परम्परा अनुसार,अच्छी फसल,अच्छी बारिस की खुशी मे मनाते है
अनिल सस्तया धर्मपूर्वी
नई फसल के स्वागत पर पूर्वज परम्परा अनुसार आदिवासी समाज का प्रचलित रविवार दित्वारिया त्यौहार रविवार दिन के पहले गाँव के कोटवाल द्वारा पूरे गाँव मै दित्वारिया त्योहार का न्योता देकर, सभी को बनाने को कहा जाता है, आज रविवार का दिन है! आदिवासी त्योहार,
दित्वारिया त्यौहार गेन्हू के आटे.से बनाये गये मालिये,
घर के आँगन मे खाना बनाकर खाया जाता है, फ़िर पलास के 5 पत्ते पर उन्हे रख कर आदिवासी रीतिरिवाज से पुजा करके ,अच्छी फ़सल की कामना करके, अपने पुर्वोजो के नाम से खाना रख कर,अपने पूरे आदिवासी समाज के लोग अपने=अपने घरो के आँगनो मै बरसात मै भी बाहर हि बेठ कर खाना खाते है!
घर के दरवाजे पर नई सोन की रस्सी बनाकर उसमे प्याज,मिर्ची,आम के पत्ते,निम के पत्ते से सजाकर दरवाजे मै लगाते है!
मिर्ची के खेत मै,चमडे के पुराने जूते,चप्पल को खेत के बिच मै लकडी पर लटका देते है, कपास के खेत मै ,मटके के टूटे टूकडे पर सफ़ेद चुना लगाकर खेत के बीच मै लकडी पर लटका दिया, ओर ज्वार या आदि के खेत मै किसी मरे बेल,गाय आदि के हड्डी के टुकडे,या बास के ड्गाल,आंजन के डगाल आदि को खेत के बिच मै गाडा गया,
मेरा एक अनुभव साझा कर रहा हुँ की,
इस दित्वारिया त्योहार के रविवार के दिन हर साल इस दिन बारिश जरुर होती है!
गाँव के लोग, गवाल आदि ,पिया,बसुरी,घान्गव बजाकर आनन्द बनाते है!
पुर्वोजो का ये अपने आदिवासी समाज के रविवार का दित्वारिया त्योहार का आप सभी को बधाई हो!