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संस्था के साथ क्षेत्रकार्य के अनुभव : कु आशू

संस्था के कार्यक्षेत्र में अनेक कार्य आते हैं, जिनमें से कुछ कार्य इस प्रकार हैं। जिन लोगों के जीवन की मूलभूत आवश्यकता पूरी नहीं हो पाती, उनके लिए (रोटी, कपड़ा और घर) जैसी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संस्था का पूरी तरह से प्रतिबद्ध रहना और जीवन के मुख्य उपयोगी साधन प्राप्त करवाना।

इस संस्था के यूनिट में हमारे समूह को कार्य के लिए दायित्व दिया गया था। जिसमें सबसे पहले भोजन तैयार करवाने में सहायता करना शामिल था। उसी दौरान एक वृद्ध महिला से मुलाकात हुई। जिसका नाम विनीता (बदला हुआ नाम) था और उम्र लगभग 85 वर्ष थी। उनके दो बेटे और तीन बेटियां हैं। बेटियों की शादी हो चुकी है और यह वृद्ध महिला अपने बेटों के साथ रहती है। उनके बेटों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है इसलिए इनके पास अपनी माँ के लिए ना तो खाने के लिए खाना और ना ही इलाज के लिए रुपए हैं। हमने जब उनसे इस विषय में बातचीत कि तो वह वृद्ध महिला कई बार भावुक भी हो गई। इसी क्रम में उन्होंने बताया कि उनकी बहू उन्हें मारती है और बोलती है कि जब तुम्हारे पास अपने इलाज के लिए पैसे नहीं हैं, तो कही चली क्यों नहीं जाती?

इस दौरान यह भी पता चला कि उनकी तबियत काफी दिनों से खराब है। जिस कारण वह किसी से ज्यादा बात नहीं करना चाहती। आसपास के लोगों से बात करने पर पता चला कि लोग चाहते हैं, संस्था इन्हें आर्थिक सहायता प्रदान करे। महिला की बहू से बात करने पर उसने बताया कि उसके पति 7 से 8 हज़ार रुपए कमा रहें हैं। जिससे घर का खर्च उठाना भी मुश्किल होता है। ऐसे में इलाज के लिए रुपए कहां से आएंगे? या तो घर चले या फिर इलाज।

अब मुख्य बात यह है, जो माँ 9 माह तक अपने पेट में बच्चे को रखकर ज़िंदगीभर उसकी परवाह करती है और अपना प्यार देती है। अब उन बच्चों पर 7 से 8 हज़ार में अपनी माँ नहीं पाली जा रही। दु:ख तो तब होता है, जब वृद्ध महिला जिसको भी पहली बार देखती है, उसे अपनी ज़िंदगी के किस्से रोकर सुनाती हैं और कहती हैं, “ऐसे लोग ना सिर्फ औलाद के नाम पर एक कलंक हैं बल्कि मानवता को भी कलंकित करते हैं। इससे अच्छा है कि औलाद ही ना हो।” यह वृद्ध महिला के रोज़ के शब्द रहते हैं। यह वाक्या सुनकर लगता है कि महिला कितनी परेशानी का सामना कर रही है।

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