Site icon Youth Ki Awaaz

अवधी कविता: कैसन डर बा तोहके?

जब हम पैदा भये

तब तू खुशी के साथे साथे

डेरान्या की कहूं बिहान के,

ई बिटिया“हमार नाक ना कटावै”

 

जब हम पढै मां एतनी

तेज रहे कि तोहार

बेटवा भि हमका पार नाय

पाइस; तु तबो डेरान्या

कि कहुन बिहान के

“ई अपने आपके जादा ना गिनवावय लागय”

 

हम जब तोहरे बेटवा से

जादा कमाय लागे, तोहरे सभे तबो डेरान्या

कि यस ना होय कि कहुन

“ई हमरे सबक सेंटबय ना करय”

 

यहि डर मा तु

हमपे और हमरे जिनगी पे

एतनी रोक टोक लगाया

कि कहुन तोहार

“डर फुरैफुर के ना होइ जाय”

 

मुला हम यह सब रोक टोक,

यह सब गुस्सा और सत्ता

कै सामना कै के भि, कभो

रुके नाय, कभो अपने आपके

हारै नाय देहे

 

भले तु हमार परिवार,

हमार बाप- भाई

होइ के भि कभो हमसे

हमार मन जानै कै कोशिश

नाय केह्या, मन जानै पे

हमरे मन कै होय नाय देह्या,

हम तबो ना तोहार “नाक कटवाय”,

ना “खुद के जादा गिनवाय” ,

ना तोहका सबका कभो भि “कम सेटे!”

तबउ बतावा तु काव केह्या?

 

तु उ जिनगी जेका हम मन मार के रहे,

ओहके तु “एहसान” के नाम देह्या!

यह डरमां कि कहुन हम

“आपन औकात ना भुलाय जाई”,

“कहुं हम हदसे जादा ना बढजाई”,

तु हमका “बिटिया होय के बादउ

जीयै देय कै ऊपकार केह्या”!

 

हायरे हमार बाप! हायरे हमार दादा!

सहिये में, तु सभे आपन फर्ज़ नाय

अदा केह्या, तु सभे ऊपकारय केह्या!

बिटिया होय कै तौ देह्या लेकिन

अपनि मरजि से जीये नाय देह्या!

 

हमरे पैदा होय से लेके हर दिन

तक तु बस डेरातै रह्या I

तोह्रे यह डर से न जाने और केतनी

बंदिश लगौबा तु हमपे?

न जाने और केतना त्याग करेका पडे हमके?

और न जाने कैसन डर बा तोहके?

Exit mobile version