यह कविता चित्रित करती है आज की बढ़ती हुई भीड़ हत्याओं (मॉब लिंचिंग) को, जिसको धर्म की आड़ में असामाजिक तत्व अंजाम दे रहे हैं।
ना पता कब तुझे कुचल डाले,
कब किसी के भी पुतले जला ले,
इतना बड़ा आक्रोश है इसका तो,
भारत की भीड़ है यह तो।
जब-जब तूने स्वतंत्र विचार रखे,
तब तब इसने कटु शब्द चखे,
डर लगता है कुछ भी कहने से अब तो,
जय श्री राम ही कहना है अब सबको,
भारत की भीड़ है यह तो।
अब तो यही है कर्ता-धर्ता,
कानून भी इसके पीछे छूटता,
मूल अधिकार पर आपदा है अब तो,
भारत की भीड़ है यह तो।
अराजकता का स्वर गूंज रहा है,
लोकतंत्र की आवाज़ भी दबा रहा,
समाज सुधार की कोशिश खतरा है अब तो,
भारत की भीड़ है यह तो।
क्या यही है भारत की सहनशीलता,
कहा खो गई इसकी एकता,
चिंतन का समय है अब तो,
भारत की भीड़ है यह तो।
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नोट- (यह कविता पहले ‘दिल की बात’ पर पब्लिश हो चुकी है।