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कविता: “माँ तेरी गोदी में मैं थककर सो जाऊं”

mother and daughter

मन करता है, मेरा मैं फिर बच्ची बन जाऊं माँ,

तेरी गोद में फिर थककर मैं सो जाऊं माँ।

 

तेरा लोरी गाकर सुलाना याद बहुत आता है,

तेरा प्यार से गले लगाना, मुझे बहुत तड़पाता है।

 

मेरे नखरे उठाने को तू दिनभर कितना थकती थी,

मेरी एक मुस्कान की खातिर, कितने रूप तू धरती थी।

 

नए-नए पकवान बना तू आगे पीछे फिरती थी,

मैं कितनी नादान थी, जो तुझको ही तंग करती थी।

 

जब गई मैं पाठशाला तू रात भर ना सोई थी,

मुझे पहली बार स्कूल भेज तू खुद कितना रोयी थी।

 

पूरे दिन भूखी प्यासी तू मेरी बाट निहार रही,

छुट्टी होकर जब मैं घर आई तो तू मुझपर

सब कुछ वार रही।

 

मेरी नादानियों को तूने हर पल हंसकर टाल दिया,

मेरी सभी गलतियों को अपने सर पर डाल लिया।

 

पापा के गुस्से से तूने हरदम मुझको बचा लिया,

मेरी हर छोटी ज़िद को पापा से मन्नत कर मनवा लिया।

 

मेरी डोली जब घर से उठी, तूने आंसू को छुपा लिया,

मुझे पता है मेरे जाने पर दिल में दुखों को दबा लिया।

 

मैं दूर हूं तुझसे, मेरी माँ पर याद तेरी तड़पाती है,

लोरी गाती हूं जब खुद बन माँ, आंखें मेरी भर आती हैं।

अब माँ बनकर मैं जान गई, तेरी तपस्या को भांप गई।

 

तेरे हाथों का स्पर्श याद बहुत आता है,

माँ तुमसे मिलने को दिल बहुत मचलाता है।

 

दिल करता है, माँ मेरा मैं फिर बच्ची बन जाऊं,

तेरी गोदी में, मैं मेरी माँ उम्र भर सो जाऊं।

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