रेड लाइट पर ठहरते ही जब शीशे से बाहर नज़र जाती है, तब एक सवाल खुद से पूछता हूं कि उनका क्या कसूर होगा जिनको सड़क पर रहना नसीब हुआ होगा। उनके मन में क्या भावना होगी? उनके सपने क्या होंगे? उनकी ज़िंदगी कैसे होगी? हंसी उनके लिए क्या होगी और तकलीफ के मायने कैसे आंके जाते होंगे?
हर बार गाड़ियां रुकती हैं और शीशे खुलते हैं। कुछ पैसे उनके हाथों में थमाए जाते हैं और हमें लगता है कि जैसे हमने उनकी ज़िंदगी बदल दी है। ज़िंदगियां बदलने के लिए कुछ सेकंड काफी नहीं हैं, बल्कि उनके बीच बैठकर उनको समझना पड़ता है। उनके लिए बेहतर तोहफा अगर कुछ हो सकता है, तो वह है शिक्षा और उनके साथ बैठकर बिताया हुआ पल है। जहां उनको हम यह अनुभव करा पाएं कि यह दुनियां उनकी भी है और खुश रहने का हक उनको भी है।
इस उद्देश्य से 2015 में युवा सोच के साथ “पहचान द स्ट्रीट स्कूल” की शुरुआत हुई और ऐसे लोगों की ज़रूरत समझने की कोशिश की गई। आज की खास बातचीत, ‘पहचान द स्ट्रीट स्कूल’ के फाउंडर आकाश टंडन से जिन्होंने नतीजों की परवाह किए बिना दूसरों के लिए जीने की सोच के साथ इस मिशन को शुरू किया।
राज धीरज: जब हर कोई किसी दौड़ की तरह खुद को आगे भगाने में लगा है, ऐसे में यह सोच कैसे आपके मन में आई कि ऐसा प्रोग्राम शुरू करना है जहां उन बच्चों को पढ़ाया जाए जो स्कूल जाकर पढ़ने में असमर्थ हैं?
आकाश टंडन: हम सब दोस्त पहले से ही काफी सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए थे। आज के वक्त में आप पाएंगे कि हर जगह आपसी मतभेद, जातिवाद, भ्रष्टाचार और नफरत बढ़ती ही जा रही है। ऐसे में सिर्फ शिक्षा ही एक ऐसी चीज़ है, जिससे आप समाज में कुछ बदलाव की कल्पना की जा स कती है।
इसी सोच के साथ हमने पहचान स्ट्रीट स्कूल की शुरुआत की। अच्छी शिक्षा से अच्छा इंसान बनता है और अच्छे इंसान से अच्छा समाज। हम बस एक अच्छा समाज बनाने में अपना थोड़ा-सा योगदान दे रहे हैं। हम मानते हैं कि यह योगदान हम सब का फर्ज़ भी है और ज़िम्मेदारी भी।
राज धीरज: पांच वालंटियर और दस बच्चों के साथ जब आप लोगों ने संस्था की शुरुआत की, तब खुद को प्रेरित करने के लिए क्या करते थे?
आकाश टंडन: हमने जब पांच बच्चों से शुरू किया था, तब हमें भी नहीं पता था कि हम क्या करने जा रहे हैं और कैसे करेंगे मगर हम जब लोगों और बच्चों से मिले, तब हमें एहसास हुआ कि देश में शिक्षा का स्तर क्या है? इन बच्चों से मिलकर हमें शर्म भी आती थी कि हम कैसे समाज में हैं।
देश की राजधानी में जब बच्चों का यह हाल है, तो देश के बाकी कोनों का तो भगवान ही जाने। बस इन पांच बच्चों ने हमारी आंखें खोली और हमने यह ठान लिया कि इसे पूरी झुग्गी के बच्चों तक पहुंचाना है। आज चार साल बाद यहां 300 से ज़्यादा बच्चे पढ़ते हैं। इन बच्चों का उत्साह और प्यार ही हिम्मत और हौसला है।
राज धीरज: मौजूदा वक्त में आपके साथ कितने बच्चे जुड़े हुए हैं?
आकाश टंडन: इस समय पांच सेंटर मिलाकर हम तकरीबन 750 से ज़्यादा बच्चों के साथ जुड़े हैं।
राज धीरज: जब हम गरीब बच्चों की पढ़ाई की बात करते हैं, तब क्या उनके साथ बातचीत करना और उन्हें प्रेरित करना एक बड़ी ज़िम्मेदारी है? क्या यह ज़िम्मेदारी आपकी संस्था के लिए चुनौती है?
आकाश टंडन: जिन बच्चों की हम बात कर रहे हैं, यह सिर्फ साधन की कमी से नहीं जूझ रहे हैं, बल्कि ये एक ऐसे वातावरण में रहते हैं जहां इन्हें यह यकीन दिला दिया गया है कि ज़िन्दगी में इनसे कुछ नहीं होने वाला है। इसलिए ज़्यादातर बच्चे चोरी-चकारी में लग जाते हैं। हम इन्हें बस यही विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि हम लोगों से या शहर के बाकी बच्चों से ये अलग नहीं हैं। इनके भी हमारे जैसे ही हक हैं और इनका भी समाज में वही स्थान है, जो हम सबका है।
राज धीरज: आपकी संस्था के साथ जुड़ रहे वालंटियर्स को आप कैसे इस उद्देश्य के लिए प्रेरित करते हैं?
आकाश टंडन: हम जितने भी लोग यहां आते हैं, हम सब एक मिडिल क्लास फैमिली से हैं। हमने बचपन से लेकर आज बड़े होने तक अपने परिवार को छोटी-छोटी चीज़ों के लिए स्ट्रगल करते देखा है और हम सब यह जानते और समझते हैं कि अगर घर का एक बच्चा भी अच्छे से पढ़कर अगर एक अच्छी नौकरी करता है, तो ना सिर्फ वह एक अच्छी ज़िंदगी जी सकता है बल्कि उसका पूरा परिवार गरीबी से बाहर आ सकता है।
बस इसी सोच के साथ कि जिस तरह हमारे घरवालों ने हमें इस लायक बनाया कि हम एक अच्छी ज़िंदगी जी पाएं, हम भी कम-से-कम किसी एक बच्चे की ज़िंदगी सवारना चाहते हैं। समाज का हर इंसान अगर यह बात समझ जाए, तो शायद समाज से गरीबी खत्म हो जाए।
राज धीरज: “पहचान द स्ट्रीट स्कूल” उन बच्चों के भीतर पल रहे सपनों को उनसे मुलाकात कराने में कैसे मदद करता है?
आकाश टंडन: विश्वास हो तो आप कुछ भी कर सकते हैं। हम इन बच्चों में नए विशवास जागते हैं कि ये अलग नहीं हैं। हम उन्हें यह यकीन दिलाते हैं कि किसी भी बड़े स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों से बेहतर बन सकते हैं।
राज धीरज: संस्था के फाउंडर के तौर पर एक बेहतर समाज की नींव रखने के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
आकाश टंडन: हम बस यही संदेश देना चाहते हैं कि आज के समाज में शिक्षा ही बस एक ऐसा ज़रिया है, जिसके ज़रिये आप बदलाव ला सकते हैं। अगर हम आगे अपने बच्चों को एक बेहतर समाज देना चाहते हैं, तो हमें पहले उस समाज को बनाने वाले अच्छे लोग बनाने होंगे। शिक्षित लोग एक शिक्षित समाज बनाएंगे जहां भेदभाव, जातिवाद और बुरे कर्मों के लिए कोई जगह नहीं होगी।
राज धीरज: आज जब आप पीछे मुड़कर देखते हैं, तो आपको अपनी सबसे बड़ी सफलता क्या लगती है?
आकाश टंडन: हमारे देश में लाखों NGO’s चल रहे हैं मगर आप ज़मीनी स्तर पर जाकर देखेंगे, तब शायद ही कुछ हज़ार NGO’s काम कर रहे होंगे। उन हज़ारों में से कुछ सौ ही होंगे जो शायद निरंतर बिना रुके काम कर रहे हैं और बढ़ रहे हैं। आज पीछे मुड़कर देखने पर हमें गर्व होता है कि हम उन चंद NGO’s में से हैं, जो चाहे छोटे ही सही मगर अपने स्तर पर ज़मीनी काम कर रहे हैं और लोगों की ज़िंदगी बदलने का प्रयास कर रहे हैं।
सबसे बड़ी चीज़ यह कि चार साल से ज़्यादा हो गए हैं और हम 200 वालंटियर्स के साथ काम कर चुके हैं। हमने आज तक अपने किसी मेंबर या वालंटियर को एक रुपया तक नहीं दिया है। शायद ही कुछ गिने-चुने NGO’s होंगे, जिनका संचालन पूर्ण रूप से वालंटियर्स के माध्यम से हैं।
इनके साथ रहकर जो सबसे बड़ी चीज़ हमें समझ आई है वो यह कि जो चीज़ हमारे लिए कोई मायने नहीं रखती, वह इनकी ज़िंदगी में कितनी खुशियां ला सकती हैं। ये एक टॉफी से लेकर पुराने कपड़े तक हर चीज़ में अपनी खुशी तलाश लेते हैं।
राज धीरज: कोई एक अनुभव जिसके आपको खुद पर गर्व हुआ हो।
आकाश टंडन: ऐसे काफी बड़े-बड़े किस्से हैं मगर मैं एक छोटा किस्सा बताऊंगा। जब हमारे वालंटियर नहीं आते हैं, तब हमारे बड़े बच्चे आगे आकर छोटे बच्चों को पढ़ाते हैं। यह बड़ी बात है कि एक आठवीं क्लास का बच्चा चौथी क्लास के बच्चे को पढ़ाता है। उनमें भी अब यह ज़िम्मेदारी आ गई है कि उन्हें अपने से छोटे की मदद करनी है। जिस तरह से हमने इनकी मानसिकता बदली है और जिस तरह से लोग हमारे साथ जुड़े हैं, हमें अपने काम पर गर्व होता है।