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क्या बिहार सरकार के पास बाढ़ से निपटने के लिए कोई पुख्ता योजना नहीं है?

लगभग हर साल बिहार में बाढ़ का तांडव होता है, जो कई ज़िन्दगियों को बहाकर ले जाता है। उफनती हुई नदियां रौद्र रूप धारण कर लेती हैं, जिसे देखकर दिल दहल जाता है। प्रचंड और तेज़ बहाव धारण कर नदियां सबकुछ स्वयं में समेटकर ले जाती हैं।

बिहार में बाढ़ से बचने और उससे निपटने के लिए हर साल योजनाएं बनाई जाती हैं और उसे अमल में लाने के लिए वादे भी किए जाते हैं लेकिन वादें और योजनाएं केवल फाइलों तक ही सीमित रह जाती हैं, जिसके बाद हर साल बाढ़ की त्रासदी की तस्वीरें हमारे आंखों के सामने होती हैं

बिहार में बाढ़ कब से आ रही है?

फोटो सोर्स- बिहार के सीतामढ़ी क्षेत्र की मुखिया रितु जायसवाल की फेसबुक वॉल

बिहार में बाढ़ कब से आ रही है, यह कहना तो असंभव है लेकिन भारत की आज़ादी के बाद पहली बार 1953-1954 में बाढ़ को रोकने के लिए एक परियोजना की शुरुआत हुई थी। जिसका नाम ‘कोसी परियोजना’ रखा गया।

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु द्वारा इस योजना का शिलान्यास हुआ था। इस परियोजना के बारे में कहा गया था कि अगले 15 सालों में बिहार को बाढ़ से बचाने की समस्या से मुक्त कर दिया जाएगा। साथ ही 1955 में सुपौल के बैरिया गाँव में सभा को संबोधित करते हुए डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था, “मेरी एक आंख कोसी पर रहेगी और दूसरी आंख बाकि हिंदुस्तान”।

इन सबके बाद 1965 में लाल बहादुर शास्त्री ने कोसी बराज का उद्घाटन किया और बैराज बनाकर नेपाल से आने वाली सप्तकोशी के प्रवाहों को एक कर दिया गया और बिहार में तटबंध का निर्माण कर नदियों को मोड़ दिया गया।

इस परियोजना के तहत समूचे कोसी क्षेत्र में नहरों को बनाकर सिंचाई की व्यवस्था की गई। साथ ही कटैया में एक पनबिजली केंद्र भी स्थापित किया गया। जिसकी क्षमता 19 मेगावाट बिजली उत्पन्न करने की है।

आज के हालातों को देखते हुए तो यही लगता है कि जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कोसी परियोजना की शुरुआत हुई थी, वह पूरे नहीं हुए क्योंकि आज भी बिहार हर साल बाढ़ में डूबता है और डूबती है कई ज़िन्दगियां। 

बिहार में बाढ़ के कारण

बिहार में बाढ़ से निपटने की तैयारी 

फोटो सोर्स- बिहार के सीतामढ़ी क्षेत्र की मुखिया रितु जायसवाल की फेसबुक वॉल

बिहार में हर साल बाढ़ आने के बाद यह दावा किया जाता है कि बिहार को बाढ़ मुक्त बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन ये प्रयास केवल फाइलों तक ही सिमटकर रह जाते हैं। 

इन सब बातों को देखकर हम एक बात तो ज़रूर कह सकते हैं कि परियोजनाओं और विभिन्न योजनाओं पर पैसे तो बहुत खर्च हुए लेकिन ज़मीनी सुधार नहीं हुआ। अभी भी बाढ़ को लेकर दिल दहला देने वाली तस्वीरें देखने को मिल जाती हैं लेकिन बिहार की जनता यह जवाब चाहती है कि आखिर कब तक बिहार के लोग बाढ़ के कारण अपनी ज़िन्दगियों की कुर्बानी देते रहेंगे। 

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