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बुलेट ट्रेन के लिए 54000 से भी ज़्यादा पेड़ों की बलि विकास नहीं मूर्खता है

पूरा विश्व आज ग्लोबल वार्मिंग की चपेट में आ गया है। हालात ये हैं कि भीषण गर्मी और भयंकर बाढ़ ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। हम हर पल प्रलय आने के अंदेशे में जी रहे हैं। ग्लेशियर पिघल रहे हैं, नदियां और तालाब सूख गए हैं, सारे जलस्रोत खत्म होने की कगार पर हैं। भारत में भूमिगत पानी का स्तर बहुत नीचे जा चुका है। पीने का पानी अब नाममात्र बचा है, जो कि एक बहुत बड़ा संकट है। आखिर क्यों हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को मौत की कगार पर ले जा रहे हैं?

 

 

 फोटो क्रेडिट फेसबुक/यूट्यूब

यह कैसा विकास

विकास की अंधी दौड़ में हमने पेड़ों को काटना शुरू कर दिया है। अकेले अहमदाबाद में ही बुलेट ट्रेन के लिए 54000 से भी ज़्यादा पेड़ काटे जा रहे हैं। मुंबई में भी मेट्रो के लिए 3000 पेड़ काटे जाने का प्रस्ताव है। यह कहां की समझदारी है कि जिन पेड़ों को बड़ा होने में 20 से 25 साल लग गए, जो पेड़ हमारे लिए संजीवनी बूटी की तरह धरती पर खड़े हैं, उन्हीं पेड़ों को काटकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जाए और फिर उसकी जगह पेड़ लगाने की योजना चलाकर मूर्खतापूर्ण कदम उठाए जाए।

 मौत से होगी भरपाई 

खुद सोचिए जो पेड़ हम अब लगाएंगे क्या वे रातों-रात बड़े हो जाएंगे? क्या वे तुरंत ही उन कटे पेड़ों की जगह ले पाएंगे, जो आज हमें साफ हवा और बारिश देते हैं? जिन पेड़ों को काटकर हम पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं, क्या उनकी भरपाई इन नए पौधों को लगाकर हो जाएगी? जब तक ये पौधे बड़े होंगे, तब तक हम मौत के मुंह में समा चुके होंगे, क्योंकि बिना साफ हवा और पानी के लाखों लोग मौत के शिकार हो रहे हैं। पेड़ हमारे जीवन की जीवन रेखा है और जो पेड़ हमारी धरोहर हैं, उनको एक झटके में काटकर धरती को बंजर बना देना मूर्खता है।

क्या विकास के आगे हरे भरे पेड़ों की आहुति देना ज़रूरी है? पहले लाखों पेड़ों को काट दो, फिर लाखों रुपये खर्च करके ‘पेड़ लगाओ’ योजना चलाओ। क्या यह न्यायसंगत है? ज़रा सोचिए।

 

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