Site icon Youth Ki Awaaz

फैक्ट्रियों से निकलने वाला रसायन हमें बीमार कर रहा है

आज़ाद होने के साथ-साथ औद्योगीकरण की प्रकिया को देश के एक अनिवार्य अंग के रूप में जोड़ दिया गया। यह बिलकुल सोचा ही नहीं गया कि औद्यौगीकरण से निकलने वाले खतरनाक रसायन तीन तरह से मानव जीवन के लिए काल बन जाएंगे।

पहला- कारखानों में काम कर रहे गरीब वर्ग के मज़दूरों का स्वास्थ्य खराब करते हैं।

दूसरा- औद्योगिक अवशेष या कचरा, पर्यावरण को नष्ट कर देता है और मनुष्य के लिए एक लंबी अवधि के खतरे को जन्म दे देता है।

तीसरा- दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं में इन रसायनों का प्रयोग बढ़ गया है, जिससे मनुष्य के स्वास्थ्य को भी खतरा बढ़ा है।

जिस गति से नए-नए रसायनों का उत्पाद जारी है, यह गति इतनी तेज़ है कि इन रसायनों के गुण-दोषों की जांच-पड़ताल करने का समय न तो सरकार के पास है और न तो रसायन का उत्पाद करने वाली कंपनी के पास। सबसे ज़्यादा आज खाने की सामग्री में रसायन का उपयोग किया जा रहा है। ये रसायन इतने घातक और खतरनाक हैं कि शरीर में एलर्जी पैदा कर शरीर के नाज़ुक अंगों जैसे-किडनी, लीवर, आंख, फेफड़े, कान और मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालते हैं।

भारत में किडनी फेल्योर मरीज़ों की लंबी-लंबी लाइन देखने को मिलती हैं। दिल्ली जैसे शहर में तो फेफड़ों में कैंसर के मरीज़ का होना आम बात हो चली है। लगभग भारत के हर ज़िले में किडनी डायलिसिस और कैंसर के लिए कीमोथेरेपी की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। इससे पता चलता है कि रसायन ने कहां तक अपने पांव पसार लिए हैं। बात करें महानगरों की तो दिल्ली के आसपास मकड़ी के जाल सी फैली फैक्ट्रियां हवा और पानी को भयानक तरीके से नुकसान पहुंचा चुकी हैं।

ये फैक्ट्रियां रसायनों को बिना प्रॉसेस किए ज़मीन को पिला रही हैं। इन रसायनों की अत्यल्प मात्रा भी बहुत घातक हो सकती है। बड़े-बड़े महानगरों में लगी इन फैक्ट्रियों में किसी दुर्घटना से ये रसायन वायुमंडल में रिस जाएं, जैसा कि भोपाल में हुआ था तो नतीजा साफ है- मौतें बड़े पैमाने पर होंगी। दुनियाभर में जिन रसायनों का उपयोग हो रहा है, उनके गुण-दोषों के बारे में कुछ भी नहीं पता होता।

बात करते हैं बिजलीघरों की जिनकी बिजली से उद्योग चलते हैं। ताप बिजलीघरों का कचरा कहां खपाया जाए, यह एक बड़ी विचित्र समस्या है। देश में आधी से ज़्यादा बिजली इन्हीं ताप बिजलीघरों में बनती है और हमारे यहां के कोयले से राख ज़्यादा निकलती है। इस ढेर को ठिकाने कहां लगाया जाए? यह बड़ी समस्या है और हर दिन गंभीर रूप लेती जा रही है क्योंकि ताप बिजलीघरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

इस राख में खतरनाक धातुओं के अंश भी होते हैं जैसे- जिंक, कॉपर, वैनेडियम, थैलियम और मैगनीज। आमतौर पर इस राख को बिजलीघर के आसपास ढेर लगाकर रखा जाता है लेकिन कई जगह नदियों या तालाबों में फेंक दिया जाता है। तब ये खतरनाक धातुएं भूमिगत जल भंडार से जा मिलती हैं और भूजल ज़हरीला हो जाता है।

उदाहरण के रूप में महाराष्ट्र के वर्धा शहर में लगी स्टील फैक्ट्री से सटे गाँवों का आलम बुरा हो चला है क्योंकि फैक्ट्री के मालिक ने फैक्ट्री से निकलने वाले रासायनों को ज़मीन में बोर के माध्यम से उतार दिया है जिससे भू-गॉँव में हैंडपंप और कुएं बुरी तरह प्रदूषित हो चुके हैं। पानी पीने लायक नहीं है और न खेती के लायक। खेतों में पानी लगाने पर खेती बंजर होती जा रही है लेकिन प्रशासन कोई सुध नहीं ले रहा।

रसायन का असर मज़दूर वर्ग पर ही क्यों?
बहुत कम लोगों को पता होगा कि जिन पेंसिल से उनके बच्चे वर्णमाला का पहला अक्षर सीखकर ज्ञान की दुनिया में कदम रखते हैं वह कितने घरों में अंधेरा कर उनके हाथों में पहुंची होती है। प्रतिवर्ष सैकड़ों मजदूर उस पेंसिल बनाने के की प्रक्रिया में सिलिकोसिस नामक घातक बीमारी का शिकार होकर दम तोड़ देते हैं। पूरे देश में पेंसिल का उत्पादन पश्चिमी मध्यप्रदेश के मंदसौर शहर और आसपास के गाँवों में 100 छोटे-बड़े कारखानों में केंद्रित है।

इसकी वजह है कि पेंसिल का प्राकृतिक पत्थर (बिनोटा शेल सेडीमेंटर रॉक) केवल यहीं पाया जाता है। इसे प्रकृति का वरदान कहें या अभिशाप, केवल मंदसौर को ही दिया है। पेंसिल बनाने की पूरी प्रक्रिया में मज़दूर और मज़दूर के बच्चे कितनी सफेद धूल खा जाते हैं। धीरे-धीरे यह धूल सांस के साथ फेफड़ों में पहुंचती है और जमने लगती है। इसी कारण सिलिकोसिस नाम की बीमारी होती है और मज़दूर धीमी मौत मर जाता है। ऐसा माना जाता है कि जिस मजदूर ने 3 से 4 साल काम किया है उसको इनाम में ज्ञान के बदले मौत मिली है।

अगर भारत ने सबक नहीं लिया तो मृत्यु का तांडव अगली कई पीढ़ियों तक चलेगा। लाखों लोग अस्पताल में खड़े नज़र आएंगे जिनमें हज़ारों लोग श्मशान या कब्रिस्तान में मिलेंगे। क्योंकि भोपाल गैस कांड से भी अगर भारत नहीं सीख ले रहा है तो आगे बड़ी समस्याएं होने वाली हैं।

Exit mobile version