कितना अच्छा होता अगर हमारे देश के दूर-दराज़ प्रांत में रहने वाला प्रत्येक नागरिक, सरकारी सुविधाओं तक अपनी पहुंच बना सकता और उनका लाभ ले सकता। मेरे कहने का अर्थ है कि अगर आम नागरिक, सरकारी कार्यालयों तक घंटों सफर करने की बजाय उन सुविधाओं का लाभ नज़दीकी सेंटर से प्राप्त कर पाता, तो कितना अच्छा होता।
केंद्र सरकार ने डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत जन सेवा केंद्र (CSC) की शुरुआत करके इस सपने को सच करने की ओर कदम उठाया है। अधिकतर राज्यों ने पिछले तीन वर्षों में ऐसे जन सेवा केंद्रों को आरम्भ किया है, जहां सूचना एवं तकनीकी सेवाएं नागरिकों को उपलब्ध करवाई जा रही हैं, खासतौर पर ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों को लिए, जहां पर आज भी सुविधाओं को पहुंचाना एक चुनौती है।
केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि 2019 तक पूरे भारत वर्ष के 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में एक जन सेवा केंद्र शुरू हो जाए। यह सेवा केंद्र मुख्य रूप से आमजन को प्रदान की जाने वाली महत्वपूर्ण सेवाओं के लिए स्थान प्रदान करेंगे, जैसे सार्वजानिक कल्याण की योजनाएं, स्वास्थ्य सेवाएं, वित्तीय, शिक्षा और कृषि जैसी सुविधाएं,ऑनलाइन पासपोर्ट का आवेदन, पैन कार्ड के लिए आवेदन, आधार कार्ड, जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र और खाते से पैसे की निकासी जिस प्रकार बैंक द्वारा की जाती है।
यह केंद्र उपभोक्ता को मोबाइल रिचार्ज, बिल पेमेंट और डिश टीवी की पेमेंट करने की सुविधा भी देंगे। इन केंद्रों को स्थानीय उद्यमियों द्वारा चलाया जाएगा।
हालांकि इसमें बहुत सी चुनौतियां हैं। इन चुनौतियों को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है।
- पहला, क्या जन सेवा केंद्र के मालिक लाभ को अधिकतम करने के साथ-साथ सार्वजनिक सेवा प्रदाताओं की भूमिका निभाते हुए व्यवसाय कर सकते हैं?
- दूसरा, केंद्र और सरकार की जवाबदेही।
हाल ही में मैंने एक वर्कशॉप में भाग लिया, जिसे अज़ीम प्रेमजी फाउन्डेशन ने आयोजित किया था। इस वर्कशॉप में झारखंड के 10 ज़िलों में, जन सेवा केंद्र के मालिकों और सेवा उपभोक्ताओं पर हुए एक सर्वेक्षण के निष्कर्षों पर विस्तार से चर्चा हुई। वर्कशॉप के प्रतिभागी जन सेवा केंद्र के मालिक, सरकार के सदस्य और सिविल सोसाइटी संगठन से थे।
चर्चा के कुछ अहम मुद्दे
जन सेवा केंद्र के मुखिया स्थानीय गाँव के उद्यमी होते हैं। ये केंद्र, सरकारी निजी कंपनी भागीदारी (Public Private Partnership) के माध्यम से बनते हैं। अधिकतर सरकारी सेवाओं की राशि सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है। मूलभूत सुविधाएं जैसे बैंकिंग निशुल्क उपलब्ध होती हैं। जन सेवा केंद्र बड़े पैमाने में सुविधाओं का विस्तार कर सकते हैं और उनसे अपेक्षा की जाती है कि जहां सरकार के लिए सेवाओं को पहुंचाना कठिन है, वहां जन सेवा केंद्र पहुंचाए।
अधिकतर ग्रामीण स्तर के उद्यमी, जो कि झारखंड के थे, उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि उनका औसत लाभ (वर्तमान कमीशन आधारित मॉडल अनुसार) 3000– 6000 रुपए प्रति माह है, जो कि बहुत कम है। वे जनता से सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं के लिए निर्धारित राशि से अधिक की मांग नहीं कर सकते। राजस्थान के एक प्रतिनिधि ने सुनिश्चित किया कि उनका लाभ इस राशि के लगभग रहता है।
और पढ़ें: “मैंने डिजिटल ट्रेनिंग ली है लेकिन मुझे कंप्यूटर चलाना नहीं आता”
लेख लिखते समय भी हमारे पास इतना डाटा नहीं था जिससे, हम बाकी राज्यों में जन सेवा केंद्र की औसतन कमाई का अनुमान लगा सकें। इन बातों से यह पता चलता है कि योजना की वर्तमान डिज़ाइन में न्यूनतम आय सुनिश्चित करना पेंचीदा है। ऐसे में प्रश्न ये उठते हैं,
- क्या उद्यमी अपने आपको इतनी कम आय पर लम्बे समय तक टिका पाएंगे?
- क्या केंद्र के मालिकों को मुफ्त सेवाओं का दायरा सीमित करना होगा?
- उपभोक्ताओं द्वारा धन राशि खर्च करने वाली सेवाओं पर अधिक ध्यान देना होगा?
- क्या जनता से सभी सरकारी सेवाओं के लिए धनराशि वसूल की जानी चाहिए? जबकि सरकारी कार्यालयों में यह सेवा मुफ्त में उपलब्ध करवाई जाती है।
इनके जवाब आसान नहीं है, इसलिए वर्कशॉप के दौरान चर्चा गंभीर थी।
इसके साथ ही जन सेवा केंद्र में जो सेवाएं उपलब्ध करवाई जाती हैं, वे ऑनलाइन होती हैं, जिसके लिए पूरे दिन बेहतर इंटरनेट स्पीड की आवश्यकता होती है। ऐसे में झारखंड के दूर-दराज़ इलाकों में खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी के कारण नागरिकों तक सेवाओं को पहुंचाने में कठिनाई आती है। परिणामस्वरूप सेवाओं में देरी और सेवाओं की खराब गुणवत्ता देखने को मिलती है। जन सेवा केंद्र (CSC) को अपनी भूमिका निभाने के लिए ज़रूरत है बेहतर डिजिटल नेटवर्क की।
शिकायत प्रणाली तंत्र नहीं
जन सुविधा केंद्र अगर किसी कारण सेवा प्रदान नहीं कर पाते हैं, तो इसके लिए कोई शिकायत प्रणाली तंत्र नहीं है। उनका कार्य केवल सुविधाओं को ग्राहकों तक पहुंचाना है, क्योंकि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल के तहत, वह सरकार का हिस्सा नहीं हैं।
इसके अलावा सेवा के प्रावधान में जन सुविधा केंद्र के पास कोई निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। इस स्थिति में, शिकायत निवारण के लिए, नागरिकों का सीधे सरकारी प्राधिकरण से संपर्क करना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि वे अब तक जन सुविधा केंद्र के साथ समन्वय कर रहे थे।
अगर नागरिक जन सेवा केंद्र के खिलाफ किसी तरह की शिकायत करने का निर्णय लेते हैं, तो मुख्य रूप से ऐसा कोई रास्ता नहीं है, जहां से समय पर जवाब की अपेक्षा की जाए। बेशक, सरकार द्वारा फोन, ईमेल, ऑनलाइन उल्लेखित किया जाता है, परन्तु एक समय-सीमा के अंदर किसी भी तरह की कार्रवाई सुनश्चित होनी चाहिए।
इसके अलावा यह गलतफहमी भी देखी गई है कि जन सेवा केंद्र, सरकारी कार्यालयों का विकल्प है। सर्वेक्षण में जन सेवा केंद्र को मूलभूत बैंकिंग सेवाओं जैसे नकद जमा करना और निकासी के लिए, बैंकों के विकल्प के रूप में पेश किए जाने के उदाहरण सामने आए।
एक मज़बूत जवाबदेही तंत्र की अनुपस्थिति में इस तरह के अभ्यास भ्रम पैदा कर सकते हैं और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकते हैं, क्योंकि बड़ी संख्या में जन सेवा केंद्र में पासबुक अपडेट की सुविधा नहीं है, जो कि कई ग्रामीण नागरिकों के लिए धनराशि को ट्रैक करने का एकमात्र तरीका है।
इन सब बातों से मैं यह महसूस कर रही हूं कि जन सेवा केंद्र को स्थापित किया जाना एक बहुत बड़ा कदम है परन्तु इसमें ठोस परिवर्तन की आवश्यकता है, ताकि इसे और जवाबदेह बनाया जा सके। एक मज़बूत जवाबदेही तन्त्र शिकायतों के पंजीकरण और निवारण के लिए औपचारिक मार्ग सुनश्चित करता है।
नियमित रूप से सरकार द्वारा निगरानी और मॉनिटरिंग, सेंटर द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं की मूल्य सूची प्रदर्शित करना, ऐसी और अनेक चीज़ों की आवश्यकता है। साथ ही, जन सेवा केंद्र के मालिकों के लिए कुछ बुनियादी आश्वासन हों, जैसे मासिक आय अर्जित करने के लिए एक तंत्र विकसित करना। इसके साथ ग्रामीण इलाकों में ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्शन के सुधार और विकास में तत्काल निवेश महत्वपूर्ण होगा।