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योगी सरकार भ्रष्टाचार के सामने लाचार क्यों है?

इटावा जेल से दो सज़ा प्राप्त कैदियों के भाग जाने की घटना उत्तर प्रदेश सरकार के लिए शर्मनाक है। मीडिया में पिछले महीने दो जेल अधिकारियों की बर्खास्तगी को अभूतपूर्व घटना के रूप में पेश किया गया था जिससे लोगों को लगे कि अब राम राज आ गया है। इसके बाद ही उन्नाव जेल में बंदियों के पिस्तौल लहराते हुए डींगें हांकने का वीडियो वायरल हुआ जिसकी बेहद हास्यास्पद सफाई दी गई। गंदगी के ऊपर कालीन बिछा देने से गंदगी मिट नहीं जाती है। यह अलग बात है कि योगी सरकार गंदगी मिटाने में कोई दिलचस्पी भी नहीं रखती है। इसी वजह से उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है।

जेल के अंदर भ्रष्टाचार और सरकार की नाकामी।

बागपत जेल में मुन्ना बजरंगी की हत्या की गाज किसी ना किसी पर गिरनी थी। इसलिए वहां के जेल अधीक्षक उदय प्रताप सिंह को बर्खास्त करने का फैसला लेना पड़ा। उधर मेरठ जेल में एक न्यूज़ चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में तत्कालीन डिप्टी जेलर धीरेन्द्र कुमार सिंह की जो करतूतें उजागर हुई उसके बाद सरकार को अपनी साख बचाने के लिए उन्हें भी बलि का बकरा बनाना पड़ा। 

मीडिया ने इन रूटीन कार्रवाइयों को ऐतिहासिक कदम के रूप में पेश किया, जबकि जेल के अंदर व्याप्त भ्रष्टाचार को व्यापक रूप से समाप्त करने के लिए सरकार ने कोई योजना नहीं बनाई है। उत्तर प्रदेश में मुख्य सचिव रह चुके आईएएस अधिकारी अखंड प्रताप सिंह और नीरा यादव जेल भेजे जा चुके हैं। प्रमुख सचिव नियुक्ति के अहम पद पर कार्य कर चुके शक्तिशाली नौकरशाह राजीव कुमार अभी भी जेल में हैं। अपने बैच के टॉपर आईएएस रहे प्रदीप शुक्ला को लंबी जेल भुगतनी पड़ चुकी है। 

अगर सरकार जेलों की हालत सुधारने के लिए गंभीर है तो उसे जेल के बंदियों से इस बारे में मुख्यमंत्री के नाम गुमनाम पत्र मंगाना चाहिए और जिस पत्र में कोई गंभीर शिकायत दिखे उस पर तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। ऐसी दो चार कार्रवाईयां भी हो जाए तो जेल में बार-बार सरकार की फज़ीहत कराने वाली घटनाऐं सामने नहीं आएंगी मगर सरकार तभी एक्शन लेती है जब किसी चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में जेल अधिकारियों की करतूत सामने आने से उसकी नाक कटने लगे।

भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्रवाई ज़रूरी।

आज तो आलम यह है कि सरकार हर साल अधिकारियों से उनकी आय और संपत्तियों का रिटर्न जमा कराने की पहल करती है लेकिन आईएएस अधिकारी मना कर देते हैं तो सरकार बिल में जाकर दुबक जाती है। यह सरकार आईएएस अधिकारियों से खौफ खाती है। आईएएस अधिकारियों की मर्ज़ी के बिना प्रशासन में एक पत्ता भी नहीं खड़कता है। अगर कुछ अधिकारी दुरुस्त हो जाए तो अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों की हिम्मत नहीं होगी कि वे खुलेआम लूट मचा सके जैसी आज मचा रहे हैं।

हर महीने ज़िले के वरिष्ठ अधिकारी जेलों का निरीक्षण करते हैं लेकिन यह निरीक्षण बस नाम का होता है, इसलिए जेल के अंदर की सच्चाई सामने नहीं आ पाती। अगर भ्रष्टाचार की जानकारी देने के लिए मीडिया सजग हो जाए तो अधिकारियों के निरीक्षण में भी दम आ जाएगा। जेलों के अंदर टिकट कटता है। जो विचाराधीन बंदी टिकट नहीं कटवा पाते उनसे हाड़तोड़ बेगारी कराई जाती है।

बंदियों को सता रही है सरकार।

फासिस्ट मानसिकता की सरकार सोचती है कि ऐसे भ्रष्टाचार में क्या बुराई है। सरकार को लगता है कि बंदी को जेल के अंदर सताए जाने का एहसास होना चाहिए तभी तो अन्य लोग जेल से डरेंगे और जेल जाने से बचने के लिए कानून तोड़ने की हिम्मत नहीं करेंगे। सरकार यह नहीं सोचती कि जेल अफसरों को दी गई भ्रष्टाचार की छूट की गाज वास्तविक अपराधियों पर नहीं, बल्कि उन मासूमों पर गिरती है जिन्हें अपराधियों की चाकरी करने वाली पुलिस उनके इशारे पर जेल भेजती है।

किसी संवेदनशील सरकार के लिए अपनी गलत समझ की वजह से ऐसे बंदियों को सताने में भागीदार बनने से ज़्यादा बड़ा पाप कुछ नहीं हो सकता लेकिन यह सरकार इस पाप को ढ़ोने का बोझ महसूस नहीं कर पा रही है। असली अपराधी पूरे जेल प्रशासन को अपना ताबेदार बना कर रखते हैं और दारू-मुर्गा की पार्टी से लेकर हथियार व मोबाइल की व्यवस्था तो उनके लिए छोटी बात है। वह तो जेल के अंदर से ही रंगदारी भी वसूल कर लेते हैं। 

हर सेक्टर में फैला है भ्रष्टाचार।

भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के नाम पर किसी भी सेक्टर में राज्य सरकार बेजान आंकड़ेबाज़ी से काम चलाने के अलावा कुछ नहीं कर रही है। रूटीन में जिन अधिकारियों पर कार्रवाई होती है उनके संकलित आंकड़े एकमुश्त जारी करके वह अपनी ज़िम्मेदारी से बरी हो जाना चाहती है। जबकि कार्रवाईयां इतनी दुरुस्त होनी चाहिए कि कम से कम एक साल हर ज़िले में हर रोज़ किसी ना किसी भ्रष्ट अधिकारी या कर्मचारी पर फंदा कसा जाए। 

कर्मचारियों की हैसियत में भी हर साल करोड़ों की बढ़ोतरी होती है। लोग आश्चर्य करते हैं कि इतने नियम कानूनों के बावजूद अधिकारी और कर्मचारी हैसियत में ज़बरदस्त उछाल कैसे कर पाते हैं। कहां है सरकार की ईओडब्ल्यू विंग? वह भी क्या करे जब सरकार को ही इस बारे में कोई दिलचस्पी नहीं है। अन्यथा सरकार इस विंग से नियमित रूप से प्रशासनिक तंत्र में शामिल लोगों के वैभव और ऐश्वर्य के बारे में अभिसूचनाएं मंगाकर कार्रवाई शुरू कर सकती है।

पार्टी और संगठन के अंदर भी भ्रष्टाचार।

प्रशासन ही क्या सरकार का तो राजनीतिक तंत्र भी बेहद भ्रष्ट प्रमाणित हो चुका है। योगी सरकार बनने के कुछ ही दिनों बाद वृन्दावन में संघ की समन्वय बैठक में भाजपा के नए नवेले विधायकों और सांसदों की बेशर्म होकर रुपया बटोरने की शिकायतें सामने आई थी, जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कड़ा रूख अपनाने का संकेत दिया था पर कुछ नहीं हुआ। इसकी वजह से उनका दुस्साहस चरम सीमा पार कर चुका है। 

संगठन के लोग तक त्रस्त हैं। ज़्यादातर ज़िलों में संगठन और विधायक-सांसदों में इस बात को लेकर ठनी हुई है कि जिन भ्रष्ट लोगों के खिलाफ संगठन कार्रवाई चाहता है, वे माननीयों की शरण में पहुंचकर अभय प्राप्त कर लेते हैं। कई माननीय तो ऊपर से कोई अंकुश ना देख जुआ-सट्टा और नशीले पदार्थों के कारोबार तक में कदम रख चुके हैं। 

विपक्ष खत्म हो चुका है। सत्तारुढ़ पार्टियों के माननीयों को पता है कि मोदी के नाम के बिना चुनाव में उनका कोई अस्तित्व नहीं है, इसलिए अगर उन पर कार्रवाई हो तो हिम्मत नहीं है कि कोई बगावत कर जाए। नौकरशाही को भी पता है कि केन्द्र और राज्य की सरकारें शक्तिमान हैं, इसलिए उन पर चाबुक चलाने से बड़ा कोई जोखिम नहीं हो सकता। तत्काल चुनाव भी नहीं है जो किसी की परवाह की जाए। फिर भी अगर सरकार कुछ नहीं कर रही तो यह शर्म की बात है।

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