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पेट ना भर पाने की स्थिति में नशा करते हैं कई स्ट्रीट चिल्ड्रेन

अक्सर जब हम नशे की बात करते हैं तो हमारे ज़हन में सिर्फ यही बात आती है कि यदि यह बच्चा नशे की लत से ग्रसित है, तो इसके पीछे इसके माँ-बाप का दोष होगा। यह कुछ हद तक सही भी है, क्योंकि आज के व्यस्त जीवन और सिंगल फैमिली के ट्रेंड में माँ-बाप दोनों घर से बाहर रहते हैं। ऐसे में बच्चे को अपने अकेलेपन के लिए कोई तो सहारा चाहिए।

गरीब बच्चों के नशे की लत चर्चा से गायब

नशे को लेकर आप किसी भी आर्टिकल या ब्लॉग में देखें तो उसमें अक्सर संपन्न घरों के बच्चों के नशे की बात ही की जाती है। उन बच्चों की कम ही बात की जाती है, जो अक्सर ट्रेन या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर नशा करते हुए दिख जाते हैं और नशे के लिए पैसे की जुगाड़ में लगे रहते हैं। एक ट्रेन में जब कोई बच्चा पैसा मांगता है और खाने की चीज़ नहीं लेता तो हम उससे इतना पूछना भी ज़रूरी नहीं समझते कि उसे पैसा ही क्यों चाहिए और खाने की चीज़ क्यों नहीं चाहिए।

37% स्कूली बच्चे नशे का शिकार

संयुक्त राष्ट्र संघ के नारकोटिक्स नियंत्रण बोर्ड की वर्ष 2009 की रिपोर्ट के अनुसार 10 से 11 साल के 37% स्कूली बच्चों को अलग-अलग नशे की लत लग जाती है। ऐसे बच्चे अक्सर दोस्तों के दबाव या तनाव में नशा करते हैं। यही आंकड़ा अगर बेघर बच्चों में देखा जाए या झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों में देखा जाए तो बढ़ जाता है।

झुग्गी के बच्चे या जिनका कोई घर नहीं है, उन बच्चों में ज़्यादातर आपको नशे की लत से ग्रसित मिलेंगे। ऐसे बच्चे अक्सर अपनी भूख को मिटाने और परिवार ना होने के गम को भुलाने के लिए नशे का सेवन करते हैं।

सरकार को ध्यान देने की ज़रूरत

देश की ऐसी स्थिति है, जहां बच्चों के नशे की समस्या में भी वर्गीकरण है। उस वर्गीकरण में भी सिर्फ उन बच्चों पर ध्यान दिया जाता है जिनके नशे की लत उनके घर के माहौल से सही की जा सकती है। ऐसे में उन बच्चों पर ध्यान केंद्रित करना बहुत ज़रूरी है जिनका कोई परिवार नहीं है और जो खुद अपना पेट पालते हैं। सरकार को ऐसे सड़कों पर घूमने वाले बच्चों के लिए कोई ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे वे अपना भविष्य सुधार सके।

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