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मुज़फ्फरपुर: एक शहर जिसने नीतीश कुमार के सुशासन के दावे की हवा निकाल दी

नीतीश कुमार की पहचान सुशासन के रोल मॉडल के तौर पर होती है। हालांकि यह पहचान अब बदलने लगी है। बिहार में नीतीश कुमार की लोकप्रियता कम नहीं है। यह अलग बात है कि हाल के कुछ वर्षों में जनता ने उनके नेतृत्व पर असंतोष ज़ाहिर किया है।

जिस जंगल राज को लेकर नीतीश कभी लालू यादव की सबसे ज़्यादा आलोचना किया करते थे, आज वही नीतीश कुमार पिछले एक महीने के अंदर दो बार पुलिस के साथ कानून व्यवस्था को लेकर समीक्षा बैठक कर चुके हैं। बिहार के पुलिस प्रमुख भी सोशल मीडिया पर यह कहते पाए गए कि उनकी बात अधिकारी ही नहीं सुनते हैं।

पहले ऐसा कम ही देखा जाता था कि नीतीश को अपने ही सूबे के किसी हिस्से में लोगों के विरोध का सामना करना पड़े और जनता उनके विरुद्ध नारेबाज़ी करने लगे लेकिन पिछले दिनों बिहार के एक शहर में लोगों ने “नीतीश कुमार गो बैक” के नारे लगाए। लोगों का गुस्सा ऐसा था कि मामले को शांत करने में पुलिस के भी पसीने छूट गए।

केस 1: बालिका आश्रय गृह में बच्चियों के साथ बलात्कार

मुज़फ्फरपुर शेल्टर होम केस। फोटो सोर्स- Getty/फेसबुक

मुज़फ्फरपुर यूं तो लीची के लिए जाना जाता है लेकिन पिछले कुछ सालों में यह शहर नीतीश कुमार के कुशासन के लिए जाना जा रहा है। साल 2018 में आई टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस की एक रिपोर्ट ने बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश में खलबली मचा दी थी।

इस रिपोर्ट में कहा गया था कि बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग के अधीन संचालित मुज़फ्फरपुर बालिका आश्रय गृह में लड़कियों के साथ यौन शोषण हो रहा है। इसके बाद यहां की लड़कियों की चिकित्सीय जांच के बाद 34 लड़कियों के साथ रेप की पुष्टि हुई थी। मामले ने सियासी रंग पकड़ा तो बाद में सीबीआई जांच के आदेश दिए गए। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। जांच और रिपोर्टों के बीच शीर्ष अदालत ने कई मौकों पर नीतीश सरकार को कड़ी फटकार भी लगाई।

तब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने नीतीश सरकार को फटकारते हुए कहा था,

यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि आपके शासन में बच्चों के साथ इतना क्रूर बर्ताव किया जा रहा है।

कोर्ट की इस टिप्पणी से पहले विपक्ष ने भी इस मुद्दे को लेकर खूब हंगामा मचाया था।

सरकार की किरकिरी के बाद कई अधिकारी सस्पेंड किए गए थे और कई एनजीओ पर भी गाज गिरी थी। यह मामला इतना बड़ा था कि नीतीश ने सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले को दरकिनार करते हुए अपने करीबी मंत्री तक का इस्तीफा ले लिया था। अभी भी यह मामला कोर्ट में है और इसकी सुनवाई हो रही है।

केस 2: चमकी बुखार से बच्चों की मौत-

मुज़फ्फरपुर में चमकी बुखार से पीड़ित बच्चा। फोटो सोर्स- Getty

सुशासन बाबू के कुशासन का जो दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा है, वह भी इसी शहर से है। चमकी बुखार वर्ष 1995 से ही बिहार में मासूमों की जान ले रहा है। मौत का यह सिलसिला आज भी जारी है। अभी तक 150 से ज़्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है। खुद नीतीश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपने स्वास्थ्य विभाग की लाचारी मानी है। दरअसल, बिहार का स्वास्थ्य विभाग हमेशा से बदहाल ही रहा है लेकिन अब यह बर्बाद हो चुका है। बात सिर्फ मुज़फ्फरपुर की नहीं है, बल्कि पूरे बिहार का यही हाल है।

दोनों घटनाओं में समानता यह है कि शेल्टर होम केस की तरह यह मामला भी पीआईएल की मदद से कोर्ट पहुंचा, जहां नीतीश सरकार से सात दिनों के अंदर जवाब मांगा गया। एईएस से होने वाली मौतों में भी शेल्टर होम केस की तरह रोज़ नए खुलासे हो रहे हैं, जिनमें शवों को फेंकने, नर कंकाल मिलने जैसे मामले सामने आ रहे हैं।

अब किसे दोष देंगे नीतीश कुमार?

नीतीश सरकार पर लगे शेल्टर होम केस के दाग अभी धुले भी नहीं थे कि एइएस ने उनके सुशासन के दावे की हवा निकाल दी। सुशासन बाबू जब मुज़फ्फरपुर पहुंचे तो, वहां के लोगों ने गो-बैक के नारे लगाकर यह बता दिया कि जनता में अब उनके प्रति काफी गुस्सा है।

नीतीश कुमार अब किसे दोष देंगे? अब तो लालू यादव भी नहीं है। पिछले 15 वर्षों से बिहार की सत्ता पर वह खुद काबिज़ हैं। उनकी सरकार में अधिकारियों और नेताओं ने जो असंवेदनशीलता दिखाई, उसे सुशासन के नाम पर भद्दा मज़ाक ही कह सकते हैं। कोई नेता चमकी बुखार को भगवान का प्रकोप बता रहा है, तो कोई कह रहा है लीची खाने से बच्चे बीमार हो रहे हैं।

नीतीश कुमार के शासन के 15 साल हो गए हैं। लालू ने भी 15 साल राज किया था, उसे जंगलराज का नाम दिया गया। वक्त का तकाज़ा देखिए कि आज लालू के बेटे तेजस्वी यादव नीतीश के शासन को जंगलराज कह रहे हैं, जिसे सिरे से कोई खारिज भी नहीं कर सकता है। यह मासूमों की मौत नहीं है, बल्कि बिहार की एक पीढ़ी और समूचे भविष्य की मौत है। मुज़फ्फरपुर नीतीश के सुशासन का ऐसा खौफनाक चेहरा है, जिसे देखकर लालू का जंगलराज भी शरमा जाए।

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