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आखिर क्यों झारखंड में किसानों को करनी पड़ रही है आत्महत्या?

किसान

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मंत्री बारिश में भीगकर आनंदित हो रहे हैं और किसान कर्ज़ में डूबकर आत्महत्या कर रहे हैं। यह वाकया है झारखंड का। जब देश का एक बड़ा हिस्सा बाढ़ की चपेट में है, तब किसी किसान की खुदकुशी परेशान करती है। झारखंड की राजधानी रांची से चंद किलोमीटर की दूरी पर ही एक किसान ने खुदकुशी कर ली। वजह यह थी कि मनरेगा के तहत स्वयं से बनाए गए कुएं के बकाए पैसे नहीं मिले।

बड़े सपने देखे होंगे किसान लखन महतो ने

जब किसानों को दोगुनी आय का सपना दिखाने वाले उनके लिए सिंचाई के साधनों की व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं, तब मनरेगा के कुएं के ज़रिये लखन ने ना सिर्फ बेहतर फसल के सपने देखे होंगे, बल्कि अपनी बूढ़ी माँ और पत्नी के साथ 3 बेटों के सुखद भविष्य की भी कल्पना की होगी।

शायद वह भूल गया कि राजनेताओं के वादे कभी पूरे नहीं होते और सरकारी कार्यालयों में मौजूद अफसरशाही से कौन जीत सका है। जिस कुएं को लेकर उसने सपना देखा, उसी कुएं में वह डूबा मिला। शायद इस उम्मीद में कि इस कदम के बाद कम-से-कम कुएं के बकाए 1.54 लाख रुपए का भुगतान परिजनों को मिल जाएगा।

पिछले 2 साल में तेज़ी से बढ़ी किसानों की खुदकुशी

झारखंड में किसानों की खुदकुशी का कोई लंबा इतिहास नहीं है लेकिन पिछले दो सालों में ज़रूर लगभग एक दर्जन घटनाएं ऐसी हुई हैं, जो संकेत देती हैं कि झारखंड के किसान भी अब कर्ज़ के बोझ तले खुदकुशी की राह पर हैं। वर्ष 2017 में किसानों की खुदकुशी का सिलसिला शुरू हुआ।

9 जून को रांची के पिठौरिया में किसान कालेश्वर महतो ने पेड़ से लटककर खुदकुशी कर ली। 16 जून को उसी गाँव के पास सुतियंबे में किसान बलदेव को महाजनों के कर्ज़ से मुक्ति पाने का उपाय घर के पास बने कुएं में खुदकुशी के रूप में लगा। हालांकि इन दोनों खुदकुशी का कारण स्थानीय प्रशासन ने नशा या पारिवारिक विवाद बताया।

26 जून को लोहरदगा में किसान डोमन उरांव ने कीटनाशक खाकर अपनी जान दे दी। 2 जुलाई को ओरमांझी के 32 साल के किसान राजदीप भी कीटनाशक पीकर इस दुनिया से चल बसे। 9 जुलाई को गुमला के घाघरा में प्रगतिशील और सफल किसान के रूप में चर्चित बिरसाई उरांव ने आत्महत्या कर ली। सिर्फ एक महीने में हुए पांच किसानों की खुदकुशी ने झारखंड को किसानों की आत्महत्या के मामले में सुर्खियों में ला दिया है।

विधानसभा के मॉनसून सत्र में यह मामला भी उठा। आरोप प्रत्यारोप हुए लेकिन किसानों की ना तो स्थिति बदली और ना ही उनकी खुदकुशी का सिलसिला रुका। 19 जुलाई को चान्हो के बेलतगी गाँव में सिर्फ 17 साल के संजय सिंह मुंडा ने खुदकुशी कर ली।

यह संकेत था कि किसानों की खुदकुशी की कोई उम्र नहीं होती और इसकी चपेट में अब भविष्य के किसान भी आने लगे हैं। 22 जुलाई को बुढ़मू के दुखन महतो भी साहूकारों का कर्ज़ नहीं चुकाने के कारण आत्महत्या कर इस दुनिया को अलविदा कह गए।

चंद दिनों पहले ही जब केंद्र में दोबारा मोदी सरकार सत्ता में लौटी, तब पूरे राज्य में रघुवर सरकार ने किसानों को तोहफा देने का दंभ भरते हुए पोस्टर लगवाए। कुछ किसानों की स्थिति में बदलाव आए भी होंगे लेकिन हालात अभी भी ठीक नहीं हैं। बारिश के अभाव में खेतों में अभी से दरारें दिखने लगी हैं। कुछ महीनों बाद राज्य में चुनाव होने वाले हैं। उस दौरान किसानों को लेकर बड़े-बड़े वादे किए जाएंगे लेकिन मौका मिले तो एक बार ज़रूर अपने हुक्मरानों से इन किसानों की खुदकुशी को लेकर सवाल पूछ लीजिएगा।

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