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“मंदिरों में पूजा करने का 100% आरक्षण ब्राह्मणों को किसने दिया?”

माननीय जज वी चिताम्बरेश के अनुसार ब्राह्मण जाति में जन्मे व्यक्तियों में कुछ खास विशेषताएं होती हैं। जैसे स्वच्छ रहना, अच्छी सोच, अच्छा चरित्र और ज़्यादातर का शाकाहारी होना। इन सब बातों के साथ उन्होंने यह भी जोड़ते हुए कहा कि ब्राह्मण शास्त्रीय संगीत का पुजारी होता है।

इसका मतलब क्या यह है कि ब्राह्मण जाति के अतिरिक्त अन्य जातियों में जन्मे व्यक्तियों में ये गुण होते ही नहीं हैं? मतलब अभी हमारे देश की बागडोर जिनके हाथों में है, उनकी सोच अच्छी नहीं है, वे स्वच्छ नहीं रहते हैं और उनका चरित्र तो एकदम दोयम दर्ज़े का है। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं यह तो माननीय जज वी चिताम्बरेश की बातों से लग रहा है।

जातिगत भेदभाव और अपराध

चलिए एक नज़र डालते हैं 23 जुलाई 2019 को दैनिक भास्कर (सतना, म.प्र.) में छपी एक खबर पर। खबर की एक पंक्ति कह रही थी कि “दंबंगों ने दलित महिला को ज़िंदा जलाया”।  उसके अगले दिन यानी दिनांक 24 जुलाई 2019 को खबर छपती है कि “दलित महिला को आत्महत्या के लिए मजबूर करने पर 3 आरोपियों के खिलाफ अपराध दर्ज”।

समाचार पत्र के अनुसार आरोपियों के जो नाम सामने आए हैं उन सबके उपनाम में ब्राह्मण लगा हुआ है। हमें लगता है यह प्रशासन और मीडिया दोनों मिले हुए हैं क्योंकि ब्राह्मण तो स्वच्छ होते हैं, अच्छी सोच रखते हैं और उनका चरित्र भी अच्छा होता है।

फोटो क्रेडिट – प्रियंका

अब दिनांक 29 जुलाई 2019 की खबर “विंध्य में अभी भी सक्रिय हैं आंतिकयों के फंड मैनेजर” यहां भी जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है उसका भी उपनाम शुक्ला (ब्राह्मणों की एक उपजाति) है। हमें लगता है प्रशासन से बड़ी चूक हुई है क्योंकि ब्राह्मण तो स्वच्छ होते हैं, अच्छी सोच रखते हैं और उनका चरित्र भी अच्छा होता है।लेकिन यहां तो उन्हे सीधा देशद्रोही बताया गया है। यह मीडिया भी ना, प्रशासन के साथ मिलकर कुछ भी लिख देती है।

अब दिनांक 30 जुलाई 2019 की खबर देखते हैं जहां लिखा था “केरल में जहां दलित विधायक ने धरना दिया,वहां गोबर से शुद्धि“। जब एक जन प्रतिनिधि के साथ ऐसा हो सकता है, तो सामान्य नागरिक के साथ कैसा व्यवहार होता होगा यह बताने की ज़रूरत नहीं है।

और पढ़ें: “जज साहब किसी एक जाति के पक्ष में ऐसे भड़काऊ बयान कैसे दे सकते हैं?”

जातिगत आरक्षण का विरोध कैसे?

इस देश के सभी ब्राह्मणों और सवर्ण जातियों से मेरा एक सवाल है कि मंदिरों में लगभग 100% आरक्षण ब्राह्मणों को किसने दिया? क्या यह जातिगत आरक्षण की श्रेणी में आता है? जब भी हिन्दू सम्प्रदाय में कोई शादी होती है या कोई भी साम्प्रदायिक/धार्मिक आयोजन किया जाता है, तो उसके आयोजन की ज़िम्मेदारी सिर्फ ब्राह्मणों को ही क्यों दी जाती है?  मंदिरों में आने वाले दान पर हमेशा वहां के पुजारी का ही हक क्यों होता है? क्या यह जातिगत आरक्षण नहीं है? यहां तो ब्राह्मणों को 100% आरक्षण का लाभ मिला हुआ है। तो ब्राह्मण जातिगत आरक्षण का विरोध कैसे कर सकते हैं?

वैसे माननीय जज वी चिताम्बरेश जी के अनुसार देश में जातिगत आरक्षण की ज़रूरत नहीं है। तो फिर अभी हाल ही में डॉ पायल आत्महत्या केस, रोहित वेमुला आत्महत्या केस, ऊना(गुजरात) काण्ड और भी जाति के नाम पर होने वाली घटनाएं क्या है?

शैक्षिक संस्थानों की भी हकीकत छुपी नहीं है। वहां पर ना जाने कितने दलित और आदिवासी विद्यार्थियों का मानसिक शोषण किया जाता है तथा सरकार द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता भी समय से नहीं मिल पाती है। इन सबके चलते ना जाने कितने विद्यार्थी अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं।

असंवैधानिक सोच से कैसे मिलेगा न्याय?

एक तरफ हम दलितों और आदिवासियों को अपने देश का नागरिक कहते हैं और दूसरी तरफ उनसे छुआछूत और दोयम दर्ज़े का व्यवहार करते हैं। वैसे नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो और एससी/एसटी कमीशन की रिपोर्ट देखी जा सकती है जो कहती है कि वक्त के साथ दलितों और आदिवासियों पर ज्यादा घटनाएं दर्ज़ की गई हैं। ना जाने कितनी ही घटनाएं उनकी लाशों के साथ दफ्न हो जाती हैं।

माननीय जज वी चिताम्बरेश की टिप्पणी कहीं न कहीं हमारे देश की ब्राह्मणवादी सोच को दर्शाती है क्योंकि जब एक न्यायाधीश ही ऐसी बातें कर रहा है, तो हम सामान्य नागरिकों से आप क्या उम्मीद रख सकते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि जिनके निजी विचार ही भारतीय संविधान के खिलाफ हों, वह कैसे अपने फैसलों पर उनको हावी नहीं होने देते होंगे?

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