Site icon Youth Ki Awaaz

“उन्नाव रेप सर्वाइवर का एक्सीडेंट फिल्मी स्टाइल में हुआ, जैसे दामिनी में हुआ था”

किसे याद नहीं होगा दो साल पहले उत्तर प्रदेश का बहुचर्चित उन्नाव रेप केस, जिसमें भारतीय जनता पार्टी के विधायक कुलदीप सेंगर को गिरफ्तार किया गया था। अब वह रेप सर्वाइवर एक सड़क दुर्घटना में घायल है और लखनऊ के ट्रॉमा सेंटर में लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर उसे रखा गया है, जबकि सर्वाइवर की मौसी और चाची की मौत हो गई है। सर्वाइवर के वकील की हालत गंभीर बनी हुई है।

जिस ट्रक से सर्वाइवर की कार की भिड़ंत हुई, उस ट्रक का नंबर प्लेट काली स्याही से रंगा हुआ था। यानी आप चाहें तो इसे सुनयोजित कह सकते हैं, क्योंकि रेप सर्वाइवर की मॉं ही कह रही कि यह हादसा नहीं साजिश है। कुलदीप सिंह सेंगर के इशारे पर इस घटना को अंजाम दिया गया है।

यह सबकुछ फिल्मी स्टाइल में हुआ, जैसे फिल्म दामिनी में हुआ था

उन्नाव सर्वाइवर की गाड़ी पर हुआ हमला। फोटो सोर्स- सोशल मीडिया

दामिनी पर पहले मानसिक दबाव बनाया जाता है, फिर उसपर जानलेवा हमला होता है। दामिनी गुंडों से बचती-बचती किसी तरह कोर्ट पहुंचती है। दामिनी के वकील पर भी हमला होता है। यह सिर्फ फिल्म थी, वरना अगर दामिनी की कहानी रियल लाइफ की होती तो दामिनी और उसके वकील भी लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर दम तोड़ चुके होते।

फिल्म सलाखें में भी यही होता है। रेप सर्वाइवर का गवाह मास्टर सच्चीदानंद अग्निहोत्री (अनुपम खेर) को रेप आरोपी रसूखदार लोगों द्वारा इस कदर परेशान किया जाता है कि वह जज के सामने ही आत्महत्या कर लेता है। ऐसी ना जाने कितनी फिल्में बनी इस देश में। 1980 से 90 का दशक तो जैसे रेप के नाम रहा, जिसे बहन का रोल मिलता था, मानो उसे पहले बता दिया जाता होगा कि रेप सीन हो सकते हैं

ऐसा नहीं है कि ये घटनाएं असल ज़िन्दगी में नहीं होती हैं, बल्कि सच तो यह है कि इससे घिनौनी और विभत्स घटनाएं हमारे आस-पास हर रोज़ घुमती हैं। बस अंतर यह होता है कि फिल्म में रेप सर्वाइवर का कोई सगा संबंधी कानून हाथ में लेकर दोषियों को सज़ा दे देता है, जबकि असल ज़िन्दगी में सर्वाइवर ज़िन्दगी भर एक अपराधी की तरह घुटती रहती है।

जब फिल्म में रेप होता है तो लोग गमगीन होते हैं, अपराधी के लिए कड़ी सज़ा चाहते हैं लेकिन असल जीवन में सर्वाइवर के प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखाई देती है। अब कुलदीप सेंगर वाले मामले में ही देखे, तो अप्रैल 2018 को कुलदीप सिंह सेंगर के पक्ष में ज़िले में कई जगहों पर मार्च निकाले जा रहे थे कि हमारा विधायक निर्दोष है।

इसके बाद जून 2019 उन्नाव से बीजेपी के टिकट से सांसद बने साक्षी महाराज सीतापुर जेल में कुलदीप सेंगर से मुलाकात करते हैं और मीडिया को गर्व से बताते हैं कि मैं चुनाव के बाद धन्यवाद देने के लिए उनसे मिलने आया हूं। यानी सत्ता से जुड़े लोग एक रेप आरोपी को धन्यवाद करने जाते हैं, फिर बाहर आकर किसी दूसरे रेप पर निंदा करते हैं, समाज को भाषण देते हैं और कानून व्यवस्था का पाठ भी पढ़ाया जाता है।

आखिर ऐसा क्यों है कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी किसी छोटे-मोटे अपराध में पकड़ा जाता है, तो उसकी नौकरी चली जाती है, उसे सस्पेंड या निलंबित कर दिया जाता है पर राजनीतिक नौकरी करने वाले नेताओं पर कितने भी आपराधिक केस हो, उनका कुछ नहीं बिगड़ता? कुलदीप अभी भी अपनी पार्टी में बने हुए हैं।

वोट की ताकत क्या वाकई जनता के काम आती है?

कहा जाता है कि जनता के वोट में इतनी ताकत है कि वो देश की सरकार बदल सकती है। यह सच भी है लेकिन वोट की ताकत क्या वाकई जनता के काम आती है? क्योंकि जनता के वोट से ताकत पाए नेतागण पांच साल के लिए ऐसे ताकतवर बनकर सामने आते हैं कि उनके खिलाफ जनता कुछ नहीं कर सकती।

आज देश में चुने हुए ढेरों जनप्रतिनिधियों पर अपराध के आरोप हैं। सर्वोच्च न्यायलय एवं चुनाव आयोग जैसी संस्थाएं तक राजनीति के इस अपराधीकरण को रोक पाने में एक तरह से बेबस एवं लाचार साबित हुई हैं। यह सब देखकर मुझे अंबेडकर का बीबीसी को दिया वह इंटरव्यू याद आता है, जिसमें वह कह रहे हैं,

भारत में लोकतंत्र कामयाब नहीं होगा। यह सिर्फ नाम मात्र के लिए होगा। लोगों को अपनी पसंद का उम्मीदवार चुनने की आज़ादी है लेकिन उनसे उम्मदीवार के नाम पर नहीं बल्कि राजनीतिक दलों के सिम्बल पर वोट मांगे जा रहे हैं।

आज भी स्थिति यही है, जब हमारे जनप्रतिनिधि रेप, हत्या की कोशिश, हत्या जैसे संगीन अपराधों में लिप्त रहने वाले लोग होंगे, तो उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है? क्या इन लोगों से लोकतंत्र मज़बूत बनेगा? कभी नहीं।

इनसे देश बेहतर भविष्य की उम्मीद करना बेकार है। ऐसे अनेक लोग हमेशा से सदनों को सुशोभित करते आए हैं, क्योंकि ये जानते हैं कि कानून सत्ता के नीचे दबा है और उसके ऊपर ये लोग बैठे हैं।

Exit mobile version