Site icon Youth Ki Awaaz

फीफा महिला विश्वकप: विनर टीम में 5 लेस्बियन प्लेयर्स का होना ऐतिहासिक है

फ्रांस के लियोन शहर में हुआ फीफा महिला विश्वकप आठ टीमों के बीच मात्र खिताबी जंग नहीं था। यह मंच था मानव अधिकारों और लिंग समानताओं के मुद्दों को उठाने का। इस बार फुटबॉल जगत की महिलाओं ने वह सब कर दिखाया, जो अब तक केवल विमर्श में मौजूद था। वे मैदान में लड़-भिड़ रही थीं, मानव अधिकारों पर बोल रही थीं,अपनी समलैंगिक पहचान को स्वीकार रही थीं और समान वेतन की मांग कर रही थीं।

ऐश्लिन हैरिस,मेगन रेपिनो,एली क्रेगर। फोटो क्रेडिट : मेगन रेपिनो फेसबुक अकाउंट

समावेशी हो रहे हैं खेल

इस बार का टूर्नामेंट बताता है कि खेल एक संक्रमण के दौर या आसान भाषा में बदलाव से गुज़र रहा है। खेल अब अधिक समावेशी हो रहे हैं।

फीफा महिला विश्वकप का खिताब जीतने वाली अमेरिका की प्लेइंग 11 टीम से इस बार पांच लेस्बियन खिलाड़ी मैदान में थीं। 11 खिलाड़ियों की टीम वाले इस खेल में शायद ही ऐसा मौका देखने को मिलता हो, जब एक-दो नहीं बल्कि पांच खिलाड़ी LGBTQ+ सुमदाय से हो।

महिला फुटबॉल खिलाड़ियों की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ रही है। बावजूद इसके अगर भारत की बात करें, तो यहां अभी तक फुटबॉल को तवज्जो नहीं मिल पाई है। विश्व की 15 नंबर की खिलाड़ी मेगन और 10 नंबर की खिलाड़ी मार्ता द सिल्वा (ब्राजील) की टी-शर्ट खोज निकालना आज भी भारत में आसान काम नहीं है। भले ही आज इनकी लोकप्रियता अमेरिकी और यूरोपीय देशों में अधिक है लेकिन महिला फुटबॉल टूर्नामेंट की बढ़ती ऑडियंस के बाद वह दिन भी दूर नहीं, जब महिला फुटबॉल खिलाड़ी एक ग्लोबल पर्सनैलिटी होंगी।

खेल के मैदान के अंदर और बाहर हक की आवाज़

महिला फुटबॉल जगत की ऐसी ही एक दमदार खिलाड़ी मेगन रापिनो लाखों लोगों की प्रेरणा बन गई हैं। मेगन एक दमदार खिलाड़ी हैं, जो मैदान में प्रतिद्वंदियों के पसीने छुड़ा देती हैं। वह मैदान के अंदर और बाहर मानव अधिकारों के हक में जमकर आवाज़ उठाती हैं। फिर चाहे बात नस्लीय भेदभाव के खिलाफ खड़े होने की हो या फिर दुनिया के सबसे ‘पावरफुल’ देश के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के खिलाफ विरोध जताने की हो।

LGBTQ+ कम्युनिटी पर फोकस्ड स्पोर्ट्स वेबसाइट ‘आउटस्पोर्ट्स’ के अनुसार,

इस बार फीफा महिला विश्वकप में 40 लेस्बियन और बाइसेक्सुअल खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। वहीं 2015 के विश्वकप में LGBTQ+ समुदाय के केवल 20 खिलाड़ी इस टूर्नामेंट का हिस्सा थे।

मेगन ने हाल में ‘LGBTQ+ प्राइड मंथ’ के आखिर में कहा था,

गे खिलाड़ियों के बिना आप टूर्नामेंट नहीं जीत सकते हैं। इसमें सीधा-सीधा विज्ञान है।

मेगन जब खुलकर उन सभी मुद्दों पर बोलती हैं, जिनका सीधा आपसे और मुझसे सरोकार होता है, तब वह हम सबके भीतर बदलाव ला रही होती हैं। वह हमें बता रही होती हैं कि अपनी असली पहचान के साथ भी आप एक सम्मान भरी ज़िन्दगी जी सकते हैं। मेगन ने पितृसत्तात्मक समाज की जड़ों पर एक बार यह कहते हुए हमला किया था,

मेरा मानना है कि मर्दवादी समाज में एक पेशेवर खेल में मेरा बने रहना ही किसी विरोध से कम नहीं है।

अपनी पहचान को स्वीकार कर रही हैं 

अमेरिकी फुटबॉल टीम की दो स्टार खिलाड़ी अली क्रेगर और ऐश्लिन हैरिस ने भी इस साल मार्च में एक दूसरे के साथ रिश्ते में होने की आधिकारिक घोषणा की। टीम की कोच जिलियन इलिस ने सार्वजनिक रूप से स्वीकारा है कि वे लेस्बियन हैं।

इससे पहले भी महिला फुटबॉल जगत में ऐबी वॉम्बे समेत बड़े खिलाड़ियों ने अपनी समलैंगिक पहचान को स्वीकारा है पर यह पहली बार है जब इतनी अधिक संख्या में समलैंगिक खिलाड़ी किसी पॉपुलर खेल का हिस्सा रहें। यह समाज में आ रहे बदलाव की ओर इशारा करता है। मेगन, हैरिस, ऐली जैसे लोग इस बदलाव की शुरुआत कर रहे हैं।

हालांकि यह बदलाव जिस स्तर पर महिला खेलों में देखने को मिले, उतनी व्यापकता से पुरुष खेलों में यह बदलाव नहीं आया है। इससे पता चलता है कि पुरुषों पर पितृसत्ता की मार कम नहीं पड़ी है। बंद कमरों और पुरुष खिलाड़ियों के ड्रेसिंग रूम में आज भी समलैंगिक शब्द शायद एक गाली या मज़ाक बनकर रह गया है।

अब तक केवल तीन पुरुष फुटबॉल खिलाड़ियों ने सार्वजनिक रूप से अपनी समलैंगिक पहचान को स्वीकारा है,

2018 फीफा पुरुष विश्वकप में सार्वजनिक रूप से अपनी समलैंगिक पहचान स्वीकार करने वाले किसी भी खिलाड़ी ने हिस्सा नहीं लिया था।

पूर्व पेशेवर पुरुष फुटबॉल खिलाड़ी मैट हैटज्के ने साल 2015 में रिटायर होने से पहले अपनी समलैंगिक पहचान को सार्वजनिक रूप से स्वीकारा था। यह इस बात की ओर इशारा करता है कि हैटज्के की ही तरह कई समलैंगिक खिलाड़ी रिटायर होने तक अपनी पहचान छुपाकर रखते हैं।

समलैंगिक रोल मॉडल की कमी 

ऐसे में भले ही LGBTQ+ खिलाड़ी रेपिनो और अन्य खिलाड़ियों को आइकन के रूप में देखते हैं पर वे खुद को उनसे जोड़कर नहीं देख पाते हैं। वजह है अपने रोज़मर्रा के जीवन में समलैंगिक लोगों के रूप में रोल मॉडल की कमी।

ज़रूरत है विश्वभर में खेल नीतियों को अधिक समावेशी बनाने की। अगर हम अपने खेलों को एक बेहतर समावेशी मंच के रूप पर प्रस्तुत करना चाहते हैं, तो इन बदलावों को स्कूल-कॉलेज स्तर पर बढ़ावा देना होगा।

Exit mobile version