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डॉक्टर और ठेकेदारों की मिलीभगत से निकाले जा रहे थे बीड में महिला किसानों के गर्भ

पिछले तीन सालों में 4000 से ज़्यादा महिलाओं के गर्भाशय निकालने के प्रकरण में महाराष्ट्र राज्य स्थित बीड ज़िला कुछ महीनों से चर्चा में है। किसानों की आत्महत्या, कन्या भ्रूण हत्या और अब गैरकानूनी तरीके से महिलाओं के गर्भाशय निकालने का यह नया प्रकरण है। सवाल यह उठता है कि ये महिलाएं कौन हैं? ये अपने शरीर का हिस्सा निकलवाने के लिए कैसे तैयार हो गईं? ऐसी क्या मजबूरी रही होगी कि उन्हें इतना गंभीर निर्णय लेना पड़ा? इन सारे सवालों के जवाब जानने के लिए हमें बीड ज़िले की सामाजिक और पारिवारिक स्थितियों पर गौर करना पड़ेगा। 

बीड एक ऐसा ज़िला है, जहां 40% आबादी मराठा और 60% बंजारा और अनुसूचित वर्ग के लोगों की है। यहां जाति व्यवस्था पर बात करनी पड़ती है और जातियों के हिसाब से काम भी बंटे हुए हैं। बंजारा एक ऐसा समाज है, जिसे हमारी सामाजिक व्यवस्था ने हमेशा दरबदर भटकने पर मजबूर किया है। जाने कितने सालों से यह लोग अपना परिवार लेकर एक गाँव से दूसरे गाँव रोज़गार की तलाश में भटक रहे हैं।

आज की तारीख में मजदूरी के अलावा रोज़गार का और कोई साधन उनके पास नहीं है। बस जहां मजदूरों की ज़रुरत होती है, वहां चल पड़ते हैं। अब ज़रा बीड ज़िले पर गौर फरमाते हैं। इस ज़िले में गन्ने का उत्पादन ज़्यादा पैमाने पर होता है। जिनके गन्ने के खेत हैं, वे मराठा समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं और 2019 में भी उनके दिमाग से सवकारी प्रथा निकलने का नाम नहीं ले रही। भारी मात्रा में गन्ने के उत्पादन में अधिक मजदूरों की आवश्यकता होती है। 

खैर, इस विषय में फिर कभी चर्चा करेंगे। आज का मुद्दा है, गन्ना खेतों में काम करने वाले महिला मजदूरों का। इन महिलाओं को दिहाड़ी के हिसाब से पैसे दिए जाते हैं। माहवारी के कुछ दिन महिलाओं को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है और ऐसी महिला जो मजदूरी का काम कर रही हैं, उनका शारीरिक पोषण क्या होता होगा इसका अंदाज़ा हम लगा ही सकते हैं। माहवारी में जब शारीरिक पीड़ा परेशान करती है, तब खेतों में मजदूरी का काम करना बहुत ही कठिन हो जाता है और इन महिलाओं को छुट्टी लेनी पड़ती है। जितने दिन काम बंद उतने दिन दिहाड़ी नहीं मिलती और जिनका जीवन ही दिहाड़ी पर आधारित है, उनके घरों में तो रोटी के लाले पड़ जाते हैं।

माहवारी और गर्भधारण के समय महिलाओं का मानसिक स्वस्थ्य और ज्यादा अच्छा होना चाहिए, तो वहां इन महिलाओं को आर्थिक परेशानी के साथ पीड़ा भी सहनी पड़ती है। जिस वजह से ये महिलाएं माहवारी से नफरत करती हैं। माहवारी से नफरत का यह सिलसिला बस यही तक सिमित नहीं है। जैसा कि हम सब जानते हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में माहवारी के विषय पर खुलेआम बात करना भी गुनाह है इसीलिए इस विषय को घिनौनी बीमारी की तरह देखा जाता है। 

बच्चे होने के बाद माहवारी की ज़रूरत नहीं?

माहवारी के समय महिलाओं को अछूत का दर्ज़ा दिया जाता है। लैंगिक शिक्षा का स्तर ना के सामान है। माहवारी क्या होती है, वह कितनी उपयुक्त है, उन चार दिनों के रक्तस्त्राव का क्या मतलब होता है और अगर माहवारी आना बंद हो जाए तो उससे औरत के शरीर पर कितने विपरीत परिणाम होते हैं? इन सारी बातों का ज्ञान इन महिलाओं तक अभी तक नहीं पहुंचा है। इन्हें बस इतना ही पता है कि माहवारी का सम्बन्ध बच्चे को जन्म देने से है, तो जिसके एक-दो बच्चे हो गए उसके बाद माहवारी किस लिए चाहिए? बस इसी अज्ञानता का फायदा गन्ना खेतों के ठेकेदार उठाते हैं। इन ठेकेदारों से और बीड जिले के प्राइवेट डॉक्टरों से महिलाओं को नया ज्ञान मिल रहा है कि अपना गर्भाशय ऑपरेशन करके निकाल दो। एक ही बार में सबसे बड़ी मुसीबत से छुटकारा।

डॉक्टर बताते हैं कि अगर गर्भाशय नहीं निकालोगे तो कैंसर हो जाएगा। कैंसर की समस्या से बचना है और रोज़ की दिहाड़ी चाहिए तो गर्भाशय निकाल दो। बस, कितना सहज इलाज है। अच्छा ऑपरेशन के इतने पैसे कहां से आएंगे? बस तभी गन्ना खेतों के ठेकेदार भगवान की तरह प्रकट हो जाते हैं और कहते हैं हम देंगे पैसे ऑपरेशन के लिए। बाद में तुम्हारी दिहाड़ी में से धीरे-धीरे काट लेंगे मगर हां, जब तक कर्ज़ा चुकता नहीं होता तब तक तुम्हें मेरे ही खेतों में मजदूरी करनी पड़ेगी। बस फिर क्या इन गरीब महिलाओं को तिनके का सहारा मिल जाता है और ये अपना गर्भाशय निकाल माहवारी की मुसीबत से छुटकारा पा लेती हैं।

कितनी आसान प्रक्रिया है ठेकेदारों और डॉक्टरों के लिए। एक को बंधुआ मजदूर मिल रहे हैं और दूसरे का धंधा भी चल रहा है। भाई मेडिकल की पढ़ाई में जितना खर्चा हुआ है, वह वसूलना भी तो है। गर्भाशय निकालने के बाद महिलाओं को और कितनी शारीरिक समस्याओं का सामना करना होगा, यह कोई नहीं बताता। सर्वे के अनुसार जोड़ों  और मांसपेशियों में दर्द, सीने में दर्द, असमान तरीके से दिल का धड़कना, इनसोम्निया, यूरीन संबंधित विकार, हार्ट की परेशानी और हार्मोनल असंतुलन आदि, इस तरह की कई गंभीर बीमारियां गर्भाशय निकालने के बाद तुरंत शुरू हो जाती हैं।

अभी की ताज़ा खबर के अनुसार बीड ज़िले के प्रशासन, महिला आयोग और स्वास्थ्य विभाग ने मिलकर गर्भाशय निकालने के लिए एक सूची तैयार की है। उस सूची के अनुसार गर्भाशय की किसी गंभीर बीमारी के होते ही ऑपरेशन करने की इजाज़त स्वस्थ्य विभाग को दी जाएगी। आंकड़ो के हिसाब से जहां हर महीने करीब 125 महिलाओं के गर्भाशय निकले जाते थे। वह प्रमाण घटकर आधे से कम तक आ गया है। अप्रैल से मई तक के एक महीने में गर्भाशय निकलने के 56 केसेस दर्ज़ किए गए हैं, जहां पिछले तीन सालों में करीब साढ़े चार हज़ार महिलाओं के गर्भाशय गैर कानूनी तरीके से निकले गए वहां यह कानून कुछ तो बदलाव लाएगा, यह आशा हम कर सकते हैं।

फोटो प्रतीकात्मक है। आभार- Getty Images

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