सर्वप्रथम मैं आपसे यह पूछना चाहता हूं कि क्या भारत के लोग ज़िंदा हैं? मैं नहीं मानता कि यहां कोई ज़िंदा है, क्योंकि अगर ज़िंदा होते तो शायद सड़कों पर इंसाफ का झंडा लिए दिख जाते। आरक्षण के नाम पर सड़कों पर वाहन और टायर फूंक दिए जाते हैं, राम मंदिर और बाबरी मस्जिद की बात पर लोग हाथ में केसरिये और हरे रंग के झंडे उठाकर विरोध जताने लगते हैं। लेकिन जब बात एक रेप सर्वाइवर के इंसाफ की है तो कहां है यह भीड़?
उन्नाव में पहले लड़की के साथ रेप होता है, उसके बाद लड़की की FIR नहीं लिखी जाती, उसे कोर्ट की शरण लेनी पड़ती है। फिर लड़की के पिता को मरवा दिया जाता है, लड़की को मुकदमा वापस लेने के लिए मजबूर किया जाता है। जब लड़की मुकदमा वापस नहीं लेती, तो उसका एक्सीडेंट करवाया जाता है, एक्सीडेंट में लड़की और उसके वकील गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं, उसकी चाची और मौसी की मौत हो जाती है।
न्यूज़ चैनल दो दिन तक बहस करेंगे फिर यह खबर भूल जाएंगे। सरकार ने अभी तक ना तो विधायक साहब को निलंबित किया और ना ही इस मुद्दे का सही से संज्ञान लिया है।
अब ज़रा सोचिए कि प्रधानमंत्री ने इसपर संज्ञान क्यों नहीं लिया, ट्वीट क्यों नहीं किया और अपने आपको इस मुद्दे से क्यों नहीं जोड़ा? अरे साहब, आप भी ना, कहां प्रधानमंत्री को घसीट रहे हैं? उन्हें तो डिसकवरी का शो करने से फुर्सत नहीं मिलती तो वह देश के इन छुटभैये मुद्दों पर क्या नज़र डालेंगे। वैसे भी वह तो ऊंचे आदमी हैं साहब, वहां सिर्फ आम आदमी की अर्ज़ियां पहुंचती हैं, उम्मीदें नहीं।
जिन लोगों को हाथ में झंडे और पत्थर उठाने की आदत है, वे बैठकर सिर्फ तमाशा देखते हैं। मीडिया में दो-तीन दिन तक इस पर बहस होगी और मेरे जैसे कुछ लोग इस मुद्दे पर उग्र होकर फेसबुक या ट्वीटर पर बड़ी सी पोस्ट डालेंगे और मुद्दा उसी प्रकार गायब हो जाएगा, जिस प्रकार पानी में बर्फ गायब हो जाती है।
अब मुस्कुराइए की आप लोकतांत्रिक देश में रहते हैं। जहां सत्ताधारी पार्टी का विधायक कुछ इस कद्र आज़ाद है कि वह बलात्कार कर सकता है और किसी की भी जान ले सकता है।