Site icon Youth Ki Awaaz

कृषि उत्थान बिल: भारत में कोई किसान अपनी गरिमा के लिए संघर्ष ना करे

कृषि धन्य, कृषि मेध्य, जंतोनव जीवनम कृषि (कृषि संपत्ति और बुद्धि प्रदान करती है और मानव जीवन का आधार बनती है।)

2017-18 के इकॉनोमिक सर्वे के मुताबिक भारत की जीडीपी का मात्र 16% हिस्सा कृषि का है, जबकि रोज़गार में इसका हिस्सा 49% है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान होने के बावजूद आज भारत कृषि के क्षेत्र में कई गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है। इस मुद्दे पर मैंने कृषि उत्थान बिल के रूप में अपना प्राइवेट मेंबर बिल संसद के बजट सत्र में पेश किया। यह बिल किसानों को बेसिक इनकम प्रदान करेगा। इस लेख में आगे हम इस बिल की ज़रूरतों, फायदों, योजनाओं और ढांचे के बारे में बात करेंगे।

कृषि संकट पर एक नज़र

आज भारतीय कृषि क्षेत्र पारिस्थितिक और अर्थशास्त्रीय दोनों समस्याओं से जूझ रहा है। कृषि संबंधित संपत्ति का संरक्षण और खेती के कार्य को सस्टेनेबल और लाभदायक बनाना बड़ी चुनौती है। पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए उत्पादक क्षमता बढ़ाना समय की ज़रूरत है। इसलिए खेती अर्थशास्त्र के नज़रिए से लाभदायक होनी चाहिए।

किसानों की समस्याओं को समझने के लिए उनसे बात करना ज़रूरी है। बिना उनके साथ विचार, विमर्श किए उनके लिए कोई बिल नहीं बनाया जा सकता है। हम उनसे जितना ज़्यादा जुड़े रहेंगे, उतनी बेहतर तरीके से उनकी समस्याओं को समझ पाएंगे और उनके साथ मिलकर कोई हल निकाल पाएंगे।

बाज़ार और मौनसून आज किसानों के सामने दो सबसे बड़ी समस्या है। मौनसून की अनिश्चितता के कारण बाज़ार अस्थिर रहता है। इससे कृषि संकट पैदा होता है। कृषि संकट के कई कारण हैं, जिनमें सामाजिक, इकॉनोमिक, प्रौद्योगिकी, लैंगिक, इकोलॉजिकल समस्याएं शामिल हैं। इन सभी कारणों को ध्यान में रख कर योजनाएं बनाई जानी चाहिए। कृषि क्षेत्र का विकास सिर्फ पॉलिसी और टेक्नोलॉजी के मेल से होगा।

जैसा कि बिल के लक्ष्य और ज़रूरतों में ज़िक्र किया गया है, देश में किसानों की स्थिति बेहद गंभीर है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़े बेहद डराने वाले हैं। इन आंकड़ों के अनुसार 2015 में कृषि क्षेत्र से जुड़े 12,602 लोगों ने आत्महत्या कर ली, जो कि देश में होने वाली तमाम आत्महत्याओं का 9.4% था। इसके साथ ही 70% घरों के पास 1 हेक्टेयर से भी कम खेती लायक ज़मीन है। उनका प्रति महीना खर्च उनकी आय से अधिक है। इससे किसान कर्ज़ में डूब रहे हैं।

कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए पिछली सरकारों और वर्तमान सरकार ने भी कई ज़रूरी कदम उठाए हैं। किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए कई योजनाएं बनाई गई हैं। हालांकि चिंता की बात यह है कि वे योजनाएं सही तरीके से ज़मीन पर लागू नहीं हो पाती हैं और किसानों तक फायदा नहीं पहुंच पाता है।

इस बिल के द्वारा किसानों की समस्याओं का समाधान निकालने की कोशिश की गई है, जिनमें भूमि खंडिकरण, मौनसून पर अत्यधिक निर्भरता, अस्थिर इनकम, और अत्यधिक कर्ज़ शामिल हैं। हम अगर इतिहास पर नज़र डालें तो किसानों के साथ सिर्फ अन्याय और अत्याचार हुआ है। उनकी स्थिति में सुधार लाने के लिए सरकार ने ईमानदार प्रयास नहीं किए। किसानों की मौजूदा हालत देख कर एक बात तो साफ है कि सरकार द्वारा वर्तमान में चलाई जा रही योजनाएं विफल साबित हो रही हैं।

कृषि संकट का समाधान

डॉ एमएम स्वामीनाथन ने बहुत खूब कहा है,

अगर कृषि क्षेत्र गलत दिशा में जा रहा है तो कुछ भी सही दिशा में नहीं जा सकता।

किसानों को धोखा देने का सरकारों का इतिहास रहा है। यहां ज़रूरी सवाल यह है कि क्या इस देश के रोज़गार क्षेत्र का 50% हिस्सा रखने वाले किसानों को पौष्टिक आहार खाने, और स्वस्थ एवं गरिमापूर्ण ज़िंदगी जीने का कोई हक नहीं है? इस देश के गरीब किसानों की हालत लगातार खराब होती जा रही है।

इस देश में कृषि संकट का समाधान निकालने के लिए हमें चार सूत्रीय कार्यक्रम बनाना होगा और उसका पालन करना होगा।

राज्य और केंद्र सरकारों को अपनी सभी पॉलिसी संबंधी, तकनीकी और कानूनी निर्णय इन चार सूत्रों के आधार पर लेना चाहिए। इस बिल के ज़रिए किसानों की असल समस्याओं का समाधान निकालने की भरपूर कोशिश की गई है।

किसानों पर हुए ऐतिहासिक अत्याचार को सुधारने के लिए यह बिल एक ईमानदार प्रयास है। यह बिल सहकारी संघवाद, लाभदायक खेती और किसानों की आत्महत्या रोकने के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ता है और किसानों का जीवन स्तर बेहतर बनाने का प्रयास करता है। यह बिल अर्थशास्त्र और पॉलिसी दोनों नज़रिए से किसानों के लिए पहले लाए गए बिलों से बेहतर है।

उदाहरण के लिए अगर हम किसानों की कर्ज़ माफी की बात करें तो इस पॉलिसी का हर तरफ से विरोध होता रहा है। यह बात सही है कि इससे कर्ज़ ना चुकाने की आदत को बढ़ावा मिलता है, जिससे क्रेडिट कल्चर भी प्रभावित होता है। इसके अलावा गरीब किसानों तक ये योजनाएं नहीं पहुंच पाती क्योंकि उनके पास कोई साधन नहीं है। वे इनफॉर्मल सेक्टर के कर्ज़ में डूबे रहते हैं।

इसके अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य की बात करें तो यह योजना भी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकी है। इस योजना का लाभ सिर्फ बड़े किसानों तक सीमित रह जाता है और गरीब किसानों तक नहीं पहुंच पाता। इसके साथ ही किसानों के फसल के चयन को प्रभावित करने के कारण बाज़ार में अस्थिरता पैदा होती है और सस्टेनेबिलिटी कम होती है।

Image Credit: Getty Images

यह बिल अपने आप में सबसे अलग है क्योंकि यह हर पहलू पर बराबर ध्यान देता है। इस बिल में किसानों को बेसिक इनकम प्रदान करने का प्रस्ताव रखा गया है। बेसिक इनकम के ज़रिए किसानों को कैश ट्रांसफर किया जाएगा जिससे उन्हें वित्तीय सुरक्षा मिलेगी और उन्हें सरकार द्वारा न्यूनतम आय दिया जा सकेगा। यह योजना विशेषज्ञों द्वारा सराही गई है।

इस बिल के प्रभावी और विश्वसनीय ढांचे के ज़रिए किसानों की समस्याओं को जड़ से खत्म करने के लक्ष्य को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। यह ढांचा स्थायित्व की विशेषता के साथ आता है जो निरंतर कार्रवाई और कार्यान्वयन की स्थिरता सुनिश्चित करता है, जैसा कि पिछली सरकारों की नीतियों द्वारा स्थापित किया गया है।

बिल के ढांचे की विशेषता

राष्ट्रीय कृषि परिषद

प्रस्तावित राष्ट्रीय कृषि परिषद को सहकारी संघवाद के आधुनिक उपकरण के रूप में जाना जाता है। जीएसटी परिषद की तरह ही राष्ट्रीय कृषि परिषद अपने संविधान, संरचना और वोटों के वजन के आधार पर केंद्र-राज्य संबंधों और साझा ज़िम्मेदारी की भावना पर अधिक ज़ोर देता है।

इस योजना में राज्यों को अधिनियम के अनुसार बराबर हक और हिस्सा दिया गया है। परिषद में निहित शक्ति और अधिकार विधेयक के जनादेश के अनुसार, प्रदर्शन की जाने वाली गतिविधियों को देखते हुए उपयुक्त हैं।

लाभ बंटवारा उपकर (CESS)

जैसा कि बिल के लक्ष्य और ज़रूरतों में ज़िक्र किया गया है, लाभ बंटवारा उपकर लगाने के पीछे मुख्य वजह यह थी कि किसानों को कई बार लागत से भी कम दाम में फसल बेचना पड़ता था। कम दाम में बिकने वाला आलू, चिप्स के रूप में अधिक दाम में बिकता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा कमाया गया भारी मुनाफा उन किसानों तक नहीं पहुंचता जो विपरित मौसम में कड़ी मेहनत करके कृषि उत्पादों को पैदा करते हैं।

कृषि जोखिम कोष

बिल के अनुसार उपकर (cess) द्वारा कमाया गया पैसा कृषि जोखिम कोष में जमा होगा। यहां से किसानों को बेसिक इनकम वितरित किया जाएगा। इस कोष से फायदा यह होगा कि सरकारी कोष पर वित्तीय बोझ कम होगा।

इस बिल के अनुसार किसानों को अनुपात में कोष का वितरण किया जाएगा। इससे छोटे और गरीब किसानों को लाभ मिलेगा। कृषि जोखिम कोष का इस्तेमाल प्राकृतिक आपदाओं से किसानों को होने वाले नुकसान के बाद उन्हें मुआवजा देने के लिए और इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के लिए भी किया जा सकता है।

मूल्य घाटा मुआवज़ा

न्यूनतम समर्थन मूल्य की मौजूदा व्यवस्था का कई बार गलत इस्तेमाल होता है और किसानों को इस मूल्य से कम दाम पर फसल बेचना पड़ता है। इस बिल के ज़रिए उन किसानों को मुआवजा दिया जाएगा जिन्हें अपनी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर बेचनी पड़ी। यह प्रावधान इसलिए किया गया है ताकि किसानों को उनकी फसल का एक निश्चित न्यूनतम दाम मिल सके।

निष्कर्ष

कृषि उत्थान विधेयक, 2019 में किसानों को बेसिक इनकम, मूल आय और मुनाफे के समान बंटवारे का प्रावधान है। भारत में गंभीर कृषि संकट को देखते हुए यह कहना सही होगा कि यह बिल देश की ज़रूरत है। मूल रूप से यह बिल किसानों को बेसिक इनकम और संकट से राहत की गारंटी प्रदान करके एक आत्मनिर्भर ढांचे का विकास करता है।

इस बिल के द्वारा भारतीय कृषि क्षेत्र में नए युग के लिए नींव रखी जा रही है, जहां किसान सशक्त, खुशहाल एवं आत्मनिर्भर हैं तथा बेहतर ज़िंदगी जीने में सक्षम हैं। यह बिल किसानों के लिए नई उम्मीद लेकर आया है, जिन्हें आज तक सरकारों से सिर्फ धोखा ही मिला है।

________________________________________________________________________________

नोट: निनांग एरिंग भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा में अरुणाचल पूर्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने संसद के बजट-सत्र में कृषि उत्थान विधेयक 2019 पेश किया।

(यह लेख ओरिजनल अंग्रेज़ी में लिखा गया है, जिसका यह हिंदी अनुवाद है।)

 

Exit mobile version