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क्या बच्चों के स्वास्थ्य का मुद्दा सरकार की प्राथमिकता नहीं है?

भारत और इंग्लैंड के बीच एजबेस्टन मैदान पर मैच के दौरान ICC क्रिकेट फॉर गुड और यूनिसेफ की साझेदारी में चलाए गए ‘वनडे फॉर चिल्ड्रन कैम्पेन‘ का प्रचार देखने को मिला। उसे देखते हुए मुझे बचपन का वह समय याद आ गया जब टीवी पर दूरदर्शन का दौर था। हमारी जमात के बच्चे रविवार के दिन फिल्मी गीतों के कार्यक्रम रंगोली में “बूट पॉलीस” फिल्म का गाना “नन्हे-मुन्हे बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है” पूरे जोश के साथ सुनते और गुनगुनाते थे और ऐसा सोचते थे कि हमारी मुठ्ठी में हमारी तकदीर है, जिससे हम देश के भाग्य को बदल सकते हैं।

मुज़फ्फरपुर में इंसेफेलाइटिस से पीड़ित बच्चा। फोटो सोर्स- Getty

अफसोस देश का भाग्य बदलने का मौका हमारी जमात में उन्हीं चंद बच्चों के हाथ लग सका, जिनकी मुट्ठी में तकदीर के साथ-साथ अनाज का दाना, पढ़ने-लिखने की हैसियत, बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच और कुछ कर गुज़रने की चाह थी। बच्चों की तकदीर बनाने के लिए ज़रूरी चीज़ों का बाज़ार ज़रूर खड़ा कर दिया गया पर ये सारी ज़रूरी चीज़ें देश के सभी बच्चों को पहले भी नसीब नहीं थीं और आज भी नसीब नहीं हैं। अब तक की आई तमाम केंद्र और राज्य सरकारों ने बच्चों के तमाम सपनों पर धूल झोंकने के अलावा और कुछ नहीं किया है।

कम-से-कम बच्चों का स्वास्थ्य और उनकी जीवन रक्षा किसी की प्राथमिकता नहीं है, सरकारी आंकड़ें तो यही कहते हैं। हालांकि कुछ राज्यों ने इस विषय पर बेहतर प्रदर्शन किया है, जो उम्मीद जगाता है कि बेहतर मुस्तैदी से राज्य बच्चों का भविष्य सुरक्षित कर सकता है।

नीति आयोग ने “हेल्दी स्टेट्स प्रोग्रेसिव इंडिया” रिपोर्ट में बच्चों की स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और लोगों तक उनकी पहुंच के कुछ संकेतक बनाए गए हैं। ये संकेतक हैं, नवजात की मौत, बाल मृत्यु, जन्म के वक्त शिशु का कम वज़न, जन्म का लिगांनुपात और पूर्ण टीकाकरण।

एक-दो राज्यों को छोड़कर शेष राज्य बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने में विफल साबित हुए हैं, जो यह बताने के लिए काफी है कि आने वाली नस्लों के स्वास्थ्य के लिए हमारी सरकारें कितनी चिंता कर रही हैं।

कल ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दिमागी बुखार से मरे बच्चों की मौत की ज़िम्मेदारी लेने में जिस तरह का राजनीतिक कौशल दिखाया है, वह आने वाले समय में नेताओं के लिए एक बेहतर मिसाल बनेगा। आश्चर्य है जिस मुख्यमंत्री ने भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेन्स की नीति अपना कर अपनी साख बनाई है, अपने ही प्रदेश के मासूमों की मौत पर उनकी सारी नीतियां हवाई साबित हुई हैं और किसी मंत्री से इस्तीफा तक नहीं मांगा। राज्य सरकारों को इस विभाजन रेखा को पाटने के साथ-साथ बेहतर स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने पर ध्यान देना होगा।

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